पटरी पर दहशत!
रायपुर , गुरूवार दिनांक 29 जुलाई 2010
पटरी पर दहशत!
छत्तीसगढ़ की पटरियां भी अब सुरक्षित नहीं हैं। पश्चिम बंगाल में दो हादसों के बाद अब छत्तीसगढ़ में रायपुर-नागपुर रेल लाइन को भी संवेदनशील घोषित कर दिया गया है। यहां पुलिस का भारी बल किसी अनहोनी घटना को टालने के लिये तैनात कर दिया गया है। अब तक यात्रा की दृष्टि से साउथ की तरफ जाने वाली ट्रेनों को ज्यादा सुरक्षित माना जाता रहा है। अब इन ट्रेनों पर भी दहशत के बादल छाने से यात्रियों को यात्रा करने में पूर्व दस बार सोचने के लिये विवश होना पड़ रहा है। नक्सली इस समय अपने जनक चारू मजूमदार की शहादत को शहीद सप्ताह के रूप में मना रहे हैं। वे इस दौरान कहां क्या कर डाले किसी को नहीं पता। लेकिन सरकार को जो जानकारी मिली है, वह चैका रही है कि रायपुर- नागपुर रेल लाइन पर सालेकसा-दर्रेकसा के घने जंगलों में रेलवे सुरंग को नक्सली उड़ा सकते हैं। सलेकसा-दर्रेकसा डोंगरगढ़ के आगे पड़ता है। यह घने जंगलों का क्षेत्र है तथा एकदम सुनसान है। यहां पहाड़ काटकर कम से कम दो या तीन सुरंगें बनाई गई हैं। रायपुर से साउथ और नार्थ की तरफ जाने वाला यह एकमात्र रेल मार्ग हैं। इस मार्ग को किसी प्रकार से बाधित होने से बचाने के लिये पुलिस व सुरक्षा बलों को पूरी तरह से चैकस रहना पड़ेगा। अब तक इतनी बड़ी- बड़ी घटनाओं को अंजाम देने के बाद भी केन्द्र सरकार नक्सली मामले में क्यों इतना नरम रूख अख्तियार किये हुए है, यह किसी की भी समझ में नहीं आ रहा। आंतरिक सुरक्षा के लिए बुरी तरह खतरा बने इस मामले में लापरवाही अब आम आदमी को भी चिंतित करने लगी है। नक्सलियों ने अब तक करोड़ों रूपये की संपत्ति को नुकसान पहुंचाया है। देश की पटरियों व सड़क पर दोनों जगह आम लोगों का जीवन खतरे में हैं। जो प्रयास अब तक नक्सलियों को खदेडऩे के लिये किये गये, वह सब विफल रहे हैं। अब नक्सली, सरकार को चुनौती देकर वारदात कर रहे हैं। नक्सलियों के खिलाफ सरकार का हवा में अब तक किया गया प्रयोग भी एक तरह से हवा -हवा हो गया है। जंगल में छिपे नक्सलियों की गतिविधियांं देखने के लिये सरकार ने आकाश में मानवरहित विमान छोड़ा, तो वे पाताल में घुस गये। विमान उड़ता रहा लेकिन जंगल में कहीं नक्सली दिखाई नहीं दिये। आखिर कहां छिपे रहते हैं नक्सली? क्या बड़े बड़े बंकर बना रखे हैं। जहां उनका पूरा कुनबा रहता है या वे वहां से निकलकर आते हैं, जहां भारत की सीमा नहीं हैं। सरकार को नक्सलियों से लडऩे के लिये यह सब पता लगाने की जरूरत है। वरना यह लड़ाई नासूर बनकर केंसर बन जायेगी, जिसका कोई इलाज अब तक नहीं है।
पटरी पर दहशत!
छत्तीसगढ़ की पटरियां भी अब सुरक्षित नहीं हैं। पश्चिम बंगाल में दो हादसों के बाद अब छत्तीसगढ़ में रायपुर-नागपुर रेल लाइन को भी संवेदनशील घोषित कर दिया गया है। यहां पुलिस का भारी बल किसी अनहोनी घटना को टालने के लिये तैनात कर दिया गया है। अब तक यात्रा की दृष्टि से साउथ की तरफ जाने वाली ट्रेनों को ज्यादा सुरक्षित माना जाता रहा है। अब इन ट्रेनों पर भी दहशत के बादल छाने से यात्रियों को यात्रा करने में पूर्व दस बार सोचने के लिये विवश होना पड़ रहा है। नक्सली इस समय अपने जनक चारू मजूमदार की शहादत को शहीद सप्ताह के रूप में मना रहे हैं। वे इस दौरान कहां क्या कर डाले किसी को नहीं पता। लेकिन सरकार को जो जानकारी मिली है, वह चैका रही है कि रायपुर- नागपुर रेल लाइन पर सालेकसा-दर्रेकसा के घने जंगलों में रेलवे सुरंग को नक्सली उड़ा सकते हैं। सलेकसा-दर्रेकसा डोंगरगढ़ के आगे पड़ता है। यह घने जंगलों का क्षेत्र है तथा एकदम सुनसान है। यहां पहाड़ काटकर कम से कम दो या तीन सुरंगें बनाई गई हैं। रायपुर से साउथ और नार्थ की तरफ जाने वाला यह एकमात्र रेल मार्ग हैं। इस मार्ग को किसी प्रकार से बाधित होने से बचाने के लिये पुलिस व सुरक्षा बलों को पूरी तरह से चैकस रहना पड़ेगा। अब तक इतनी बड़ी- बड़ी घटनाओं को अंजाम देने के बाद भी केन्द्र सरकार नक्सली मामले में क्यों इतना नरम रूख अख्तियार किये हुए है, यह किसी की भी समझ में नहीं आ रहा। आंतरिक सुरक्षा के लिए बुरी तरह खतरा बने इस मामले में लापरवाही अब आम आदमी को भी चिंतित करने लगी है। नक्सलियों ने अब तक करोड़ों रूपये की संपत्ति को नुकसान पहुंचाया है। देश की पटरियों व सड़क पर दोनों जगह आम लोगों का जीवन खतरे में हैं। जो प्रयास अब तक नक्सलियों को खदेडऩे के लिये किये गये, वह सब विफल रहे हैं। अब नक्सली, सरकार को चुनौती देकर वारदात कर रहे हैं। नक्सलियों के खिलाफ सरकार का हवा में अब तक किया गया प्रयोग भी एक तरह से हवा -हवा हो गया है। जंगल में छिपे नक्सलियों की गतिविधियांं देखने के लिये सरकार ने आकाश में मानवरहित विमान छोड़ा, तो वे पाताल में घुस गये। विमान उड़ता रहा लेकिन जंगल में कहीं नक्सली दिखाई नहीं दिये। आखिर कहां छिपे रहते हैं नक्सली? क्या बड़े बड़े बंकर बना रखे हैं। जहां उनका पूरा कुनबा रहता है या वे वहां से निकलकर आते हैं, जहां भारत की सीमा नहीं हैं। सरकार को नक्सलियों से लडऩे के लिये यह सब पता लगाने की जरूरत है। वरना यह लड़ाई नासूर बनकर केंसर बन जायेगी, जिसका कोई इलाज अब तक नहीं है।
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