डाक्टरों पर शिकंजा!
डॉक्टरों पर शिकंजा!
मरीज़ों के परिवार को शीघ्र ही सरकार की तरफ से एक बहुत बड़ा तोहफ़ा मिलने जा रहा है। भविष्य में उन्हे अपने परिजनों के इलाज के लिये डॉक्टरों को मनमानी फ़ीस नहीं देनी पड़ेगी। सरकार यह तय करने जा रही है कि किस अॉपरेशन के लिये कितनी फ़ीस ज्यादा से ज्यादा ली जानी चाहिये। अगर किसी आदमी का गुर्दा बदलने के लिये या कोई कैंसर के इलाज के लिये दो लाख की जगह दस या पन्द्रह लाख रूपये मांगता है, तो यह अब नहीं चलेगा। अगर सरकार ने तय किया कि इस अॉपरेशन के लिये सिर्फ दो या पांच लाख रूपये ही लगेंगे तो मरीज़ो परिवार से चिकित्सक उससे ज्यादा की मांग नहीं कर सके गा। केन्द्र सरकार देश के सभी निजी अस्पतालों में अॉपरेशन और उपचार के लिये एक समान फीस तय करने जा रही है। डॉक्टरों की फ़ीस तय करने के लिये मेडिकल ट्रीटमेंट स्टैंडर्ड प्रोटोकॉल नाम से दिशा- निर्देश जारी किये जायेंगे। इसके बाद इस नियम का पालन सभी चिकित्सकों को करना होगा। डॉक्टरों की फ़ीस पर पिछले कई वर्षाे से बहस चली आ रही है,इसकी विभिन्नता ने हर आदमी को परेशान कर रखा है। सरकारी अस्पतालों की मनमानी और अव्यवस्था से तंग लोग निजी अस्पतालों की शरण लेते हैं। वहां उनसे सौदा उसी प्रकार होता है, जैसे किसी सब्जी मंडी या परचून दुकान में। आपका सौदा पटा तो ठीक वरना आगे कि दुकान में बढ़ जाओ-देश की गली- गली में नर्सिंग होम खुल गये हैं। कुछ तो अॉपरेशन में आदमी को चीरने के बाद मरीज़ से पैसा रखने को कहते हैं। कन्सलटेंटों का यह हाल है कि उनपर भी कोई लगाम नहीं है। मरीज के सबंन्धी की हैसियत देखकर पैसे की वसूली की जाती है। आज की परिस्थिति में इंसान सिर्फ तीन दुआएँ करता है-एक चिकित्सक के पास न जाना पड़े, दूसरा पुलिस के चक्कर में न पडऩा पड़े और किसी अदालत के चक्कर न काटना पड़े। यह तीनों ही उसकी जेब काटने वाले कारखाने हैं, जहां जाकर वह पिस जाता है। स्वास्थ्य केन्द्रों के पैथालाजी लैब,एनआरआई और अन्य स्कैनिंग टेस्ट भी अब सरकारी नियंत्रण में होंगे- इनमें भी जो मनमानी रकम वसूल की जाती है, उसपर इस नये दिशा- निर्देशों से अंकुश लगेगा। इन सबके बावजूद गरीब परिवारों को इन अस्पतालों के लेन देन से कैसे बचाया जाये इस पर फिलहाल कानून मौन है। किंतु वर्तमान दिशा- निर्देशों में कुछ ऐसा भी है कि जो नियम का पालन नहीं करेगा वह दंड संहिता के तहत सजा का हक़दार होगा।
मरीज़ों के परिवार को शीघ्र ही सरकार की तरफ से एक बहुत बड़ा तोहफ़ा मिलने जा रहा है। भविष्य में उन्हे अपने परिजनों के इलाज के लिये डॉक्टरों को मनमानी फ़ीस नहीं देनी पड़ेगी। सरकार यह तय करने जा रही है कि किस अॉपरेशन के लिये कितनी फ़ीस ज्यादा से ज्यादा ली जानी चाहिये। अगर किसी आदमी का गुर्दा बदलने के लिये या कोई कैंसर के इलाज के लिये दो लाख की जगह दस या पन्द्रह लाख रूपये मांगता है, तो यह अब नहीं चलेगा। अगर सरकार ने तय किया कि इस अॉपरेशन के लिये सिर्फ दो या पांच लाख रूपये ही लगेंगे तो मरीज़ो परिवार से चिकित्सक उससे ज्यादा की मांग नहीं कर सके गा। केन्द्र सरकार देश के सभी निजी अस्पतालों में अॉपरेशन और उपचार के लिये एक समान फीस तय करने जा रही है। डॉक्टरों की फ़ीस तय करने के लिये मेडिकल ट्रीटमेंट स्टैंडर्ड प्रोटोकॉल नाम से दिशा- निर्देश जारी किये जायेंगे। इसके बाद इस नियम का पालन सभी चिकित्सकों को करना होगा। डॉक्टरों की फ़ीस पर पिछले कई वर्षाे से बहस चली आ रही है,इसकी विभिन्नता ने हर आदमी को परेशान कर रखा है। सरकारी अस्पतालों की मनमानी और अव्यवस्था से तंग लोग निजी अस्पतालों की शरण लेते हैं। वहां उनसे सौदा उसी प्रकार होता है, जैसे किसी सब्जी मंडी या परचून दुकान में। आपका सौदा पटा तो ठीक वरना आगे कि दुकान में बढ़ जाओ-देश की गली- गली में नर्सिंग होम खुल गये हैं। कुछ तो अॉपरेशन में आदमी को चीरने के बाद मरीज़ से पैसा रखने को कहते हैं। कन्सलटेंटों का यह हाल है कि उनपर भी कोई लगाम नहीं है। मरीज के सबंन्धी की हैसियत देखकर पैसे की वसूली की जाती है। आज की परिस्थिति में इंसान सिर्फ तीन दुआएँ करता है-एक चिकित्सक के पास न जाना पड़े, दूसरा पुलिस के चक्कर में न पडऩा पड़े और किसी अदालत के चक्कर न काटना पड़े। यह तीनों ही उसकी जेब काटने वाले कारखाने हैं, जहां जाकर वह पिस जाता है। स्वास्थ्य केन्द्रों के पैथालाजी लैब,एनआरआई और अन्य स्कैनिंग टेस्ट भी अब सरकारी नियंत्रण में होंगे- इनमें भी जो मनमानी रकम वसूल की जाती है, उसपर इस नये दिशा- निर्देशों से अंकुश लगेगा। इन सबके बावजूद गरीब परिवारों को इन अस्पतालों के लेन देन से कैसे बचाया जाये इस पर फिलहाल कानून मौन है। किंतु वर्तमान दिशा- निर्देशों में कुछ ऐसा भी है कि जो नियम का पालन नहीं करेगा वह दंड संहिता के तहत सजा का हक़दार होगा।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें