हल तो हमें ही खोजना होगा?
रायपुर शनिवार।
दिनांक 28 अगस्त 2010
हल तो हमें ही खोज ना होगा?
अभी कुछ दिन पहले ही हमारे मंत्रीगण और यहां तक कि राष्ट्रपति ने भी चीन की यात्रा की थी। चीन से प्रेम मोहब्बत की बात हुई और अंतत: उसने फिर अपना असली रूप दिखा ही दिया। पाकिस्तान और चीन के बारे में हम क्यों उनकी असलियत को नहीं समझते। यह वही चीन है जिसके प्रधानमंत्री चाउ-एन-लाई ने सन् 1962 में भारत का दौरा कर हिन्दी चीनी भाई भाई का नारा दिया था और वापस चीन जाकर भारत पर हमला कर हमारी हजारों एकड़ ज़मीन को हड़प लिया। यह ज़मीन आज भी उसके कब्ज़े में हैं। इसे न हम उससे छुड़ा सकते हैं और न इसकी ताकत हमारी सरकार के पास है। यही हाल पाकिस्तान का है- उसके प्रधानमंत्री ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो जिन्हें पाकिस्तान की सरकार ने बाद में फाँसी पर लटका दिया भारत के खिलाफ सौ वर्षो तक लड़ाई लड़ने की बात करते रहे। पाकिस्तान के हुक्मरानों के मुंह से निकलने वाली हर बात भारत में जहर का काम करती है। क्यों हम ऐसे लोगों से शांति और दोस्ती की उम्मीद करें?चीन ने हमारे जनरल को वीजा नहीं दिया तो कोई आश्चर्य नहीं करना चाहिये वह इससे भी बढ़कर कुछ भी कर सकता है चूंकि पीठ में छुरा भोंकने की आदत उसमें हैं। पाक और चीन को दोस्ती का पैगाम देते देते हमारी कई पीडिय़ां निकल गई। क्यों नहीं समझते हमारे लोग? क्यों बार बार उनके झांसे में आते हैं और उनके बहकावे पर इन देशों की सैर करने चले जाते हैं। जिनके मुंह में सांप के विषैले दाँत छिपे हों उससे दोस्ती नहीं उनके वार को झेलने के लिये तैयार रहना चाहिये। भारत सरकार चीन से संबंध सुधारने के लाख दावे करें लेकिन हकीक़त यही है कि चीन या पाकिस्तान दोनों कभी भारत के हो ही नहीं सकते। अरुणाचल में भारतीय सीमा पर लगातार चीनी गतिविधियाँ जारी हैं। सरकार यह जानते हुए भी चीन के प्रति नरम रूख अपना ये हुए हैं। असल में अब वह समय आ गया है जब हमें अपने पड़ोसी देशों के प्रति रवैये को स्थाई रूप से सख्त करने की जरूरत है। यह बात साबित हो चुकी है कि यह दोनों ही मुल्क हर समय हमारी छाती पर बंदूक ताने बैठै हैं तो हमें भी सोचना चाहिये कि हम इनसे बचाव के लिये कौनसा तरीका अख्तियार करें। यह रास्ता विश्व में नये दोस्त बनाकर उनसे ज्यादा से ज्यादा समर्थन जुटाकर भी किया जा सकता है क्योंकि एक समय ऐसा आ सकता है जब चीन और पाकिस्तान मिलकर हमारी एकता और अखंडता को ललकार सकते हैं- इससे पहले इस स्थिति से निपटने पूरे एहतियाती कदम उठाने की जरूरत है।
दिनांक 28 अगस्त 2010
हल तो हमें ही खोज ना होगा?
अभी कुछ दिन पहले ही हमारे मंत्रीगण और यहां तक कि राष्ट्रपति ने भी चीन की यात्रा की थी। चीन से प्रेम मोहब्बत की बात हुई और अंतत: उसने फिर अपना असली रूप दिखा ही दिया। पाकिस्तान और चीन के बारे में हम क्यों उनकी असलियत को नहीं समझते। यह वही चीन है जिसके प्रधानमंत्री चाउ-एन-लाई ने सन् 1962 में भारत का दौरा कर हिन्दी चीनी भाई भाई का नारा दिया था और वापस चीन जाकर भारत पर हमला कर हमारी हजारों एकड़ ज़मीन को हड़प लिया। यह ज़मीन आज भी उसके कब्ज़े में हैं। इसे न हम उससे छुड़ा सकते हैं और न इसकी ताकत हमारी सरकार के पास है। यही हाल पाकिस्तान का है- उसके प्रधानमंत्री ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो जिन्हें पाकिस्तान की सरकार ने बाद में फाँसी पर लटका दिया भारत के खिलाफ सौ वर्षो तक लड़ाई लड़ने की बात करते रहे। पाकिस्तान के हुक्मरानों के मुंह से निकलने वाली हर बात भारत में जहर का काम करती है। क्यों हम ऐसे लोगों से शांति और दोस्ती की उम्मीद करें?चीन ने हमारे जनरल को वीजा नहीं दिया तो कोई आश्चर्य नहीं करना चाहिये वह इससे भी बढ़कर कुछ भी कर सकता है चूंकि पीठ में छुरा भोंकने की आदत उसमें हैं। पाक और चीन को दोस्ती का पैगाम देते देते हमारी कई पीडिय़ां निकल गई। क्यों नहीं समझते हमारे लोग? क्यों बार बार उनके झांसे में आते हैं और उनके बहकावे पर इन देशों की सैर करने चले जाते हैं। जिनके मुंह में सांप के विषैले दाँत छिपे हों उससे दोस्ती नहीं उनके वार को झेलने के लिये तैयार रहना चाहिये। भारत सरकार चीन से संबंध सुधारने के लाख दावे करें लेकिन हकीक़त यही है कि चीन या पाकिस्तान दोनों कभी भारत के हो ही नहीं सकते। अरुणाचल में भारतीय सीमा पर लगातार चीनी गतिविधियाँ जारी हैं। सरकार यह जानते हुए भी चीन के प्रति नरम रूख अपना ये हुए हैं। असल में अब वह समय आ गया है जब हमें अपने पड़ोसी देशों के प्रति रवैये को स्थाई रूप से सख्त करने की जरूरत है। यह बात साबित हो चुकी है कि यह दोनों ही मुल्क हर समय हमारी छाती पर बंदूक ताने बैठै हैं तो हमें भी सोचना चाहिये कि हम इनसे बचाव के लिये कौनसा तरीका अख्तियार करें। यह रास्ता विश्व में नये दोस्त बनाकर उनसे ज्यादा से ज्यादा समर्थन जुटाकर भी किया जा सकता है क्योंकि एक समय ऐसा आ सकता है जब चीन और पाकिस्तान मिलकर हमारी एकता और अखंडता को ललकार सकते हैं- इससे पहले इस स्थिति से निपटने पूरे एहतियाती कदम उठाने की जरूरत है।
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