पटरियों पर जिंदगी का कोई मोल
पटरियों पर जिंदगी का कोई मोल
नहीं, एक झटका और सब स्वाहा!
हममें से बहुत से लोगों ने सर्कस में मौत का कुआं देखा होगा। एक मोटर सायकिल सवार कुंए के भीतर की दीवारों पर अपनी बाइक चलाता हुआ ऊपर तक आता है और फिर वैसे ही नीचे चला जाता है। अगर कहीं थोड़ी सी चूक हो गई तो धड़ाम से नीचे और सदा सदा के लिये दुनिया से उसका खात्मा! आजकल आपको ऐसे खेल यूं ही पटरियों पर देखने को मिल जाते हैं। एक रेलगाड़ी छुक छुक करके दौड़ती है और धडाम से एक आवाज आती है और सैकड़ों जिंदगियां स्वाहा। आप उसे मूक दर्शक की तरह देख सक ते हैं। बस कर कुछ नहीं सकते, हां नेता लोग इस खेल पर गहरा शोक व्यक्त करते हैं। मरने वालों के परिवार को पैसा - नौकरी देते हैं और सहानुभूति के दो शब्द और फिर दूसरे खेल का इंतजार! पश्चिम बंगाल से बिहार, झारखंड, उडीसा तथा छत्त्तीसगढ़ की पटरियों पर ऐसा खेल अक्सर खेला जा रहा है, जहां खिलाने वाला रेलवे है और उसके कलाकार हम यात्री। जो लोग बच गये, वह भाग्यशाली वरना भारत के वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी के बयान के अनुसार दुर्घटना को कोई नहीं रोक सकता। भारतीय रेलवे की पटरियों पर मौत का खेल कोई नई बात नहीं है चाहे ललित नारायण मिश्र हो चाहे माधवराव सिंधिया, रामविलास पासवान अथवा लालू प्रसाद यादव या अबकी रेल मंत्री ममता बेनर्जी। इन सबके रेल मंत्री रहते रेल दुर्घटना आम बात है लेकिन माधव राव सिंधिया जैसे बहुत कम लोग ऐेसे हैं जो मौत का ताण्डव देख अपने ऊपर नैतिक जिम्मेदारी लेकर इस्तीफे की पहल करते हैं। ममता बेनर्जी के रेल मंत्री रहते अभी तक दो ऐसी बड़ी दुर्घटनाएं हुई जिसने रेलवे की सुरक्षा पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया। मिदनापुर और वीरभूमि जिले में हुई दुर्घटना में सैकड़ों यात्री मारे गये। करोड़ों रूपये की रेलवे संपत्ति को नुकसान हुआ और रेलवे की संपूर्ण कार्यप्रणाली पर प्रश्न चिन्ह लग गया। हम न रेल मंत्री के इस्तीफे की वकालत कर रहे हैं और न सरकार को उसकी सुरक्षा प्रणाली के लिये कोस रहे हैं लेकिन यह सिलसिला आखिर कब तक? आम आदमी यूं पैसे देकर अपनी मौत कब तक खरीदता रहेगा? क्यों इतनी बड़ी लापरवाही होती है? क्यों रेलवे सुरक्षा देने में लापरवाह है? मिदनापुर में ट्रेन हादसे को तोडफ़ोड की कार्रवाही बताया गया तो वीरभूमि का हादसा क्या है? क्या एक अकेला ड्रायवर इसके लिये जिम्मेदार है? और अगर हां तो ऐसे ड्रायवर को जिसे सिग्नल नहीं दिखता अकेले ट्रेन को चलाने व सैकड़ों लोगों की जिंदगी छिनने का लायसेंस किसने दिया? दो- ढाई महीने के भीतर ममता बेनर्जी के इलाके में ही दो दुर्घटना का विलन आखिर कौन है? क्या यह एक राजनीतिक खेल का नतीजा तो नहीं, जो ममता बेनर्जी को नीचा दिखाने के लिये खेला जा रहा है? मिदनापुर रेल हादसे के बाद से इस क्षेत्र में रेल गाडिय़ां यूं ही दहशत के साये में किन्तु सुरक्षित व पुलिस की सघन निगरानी में सतर्कता से चल रही है तब अचानक इस दुर्घटना का जन्म होना किस बात को इंगित करता है? बहरहाल इन सब बातों का पता लगाने का मुद्दा अब सुरक्षा एजेङ्क्षसयों का है। हमारा मतलब सिर्फ यात्रियों की सुरक्षा व रेल संपत्ति से है। सियासत में बैठे लोग व विपक्ष दोनों को दुर्घटनाओं के बाद एक दूसरे को नीचा दिखाने का खेल खेलने की जगह ऐसा कोई समाधान ढूंढना चाहिये जिससे यात्रियों को इस बात की गारंटी मिले कि वेे गंतव्य तक सुरक्षित पहुंच जायेंगे!
नहीं, एक झटका और सब स्वाहा!
हममें से बहुत से लोगों ने सर्कस में मौत का कुआं देखा होगा। एक मोटर सायकिल सवार कुंए के भीतर की दीवारों पर अपनी बाइक चलाता हुआ ऊपर तक आता है और फिर वैसे ही नीचे चला जाता है। अगर कहीं थोड़ी सी चूक हो गई तो धड़ाम से नीचे और सदा सदा के लिये दुनिया से उसका खात्मा! आजकल आपको ऐसे खेल यूं ही पटरियों पर देखने को मिल जाते हैं। एक रेलगाड़ी छुक छुक करके दौड़ती है और धडाम से एक आवाज आती है और सैकड़ों जिंदगियां स्वाहा। आप उसे मूक दर्शक की तरह देख सक ते हैं। बस कर कुछ नहीं सकते, हां नेता लोग इस खेल पर गहरा शोक व्यक्त करते हैं। मरने वालों के परिवार को पैसा - नौकरी देते हैं और सहानुभूति के दो शब्द और फिर दूसरे खेल का इंतजार! पश्चिम बंगाल से बिहार, झारखंड, उडीसा तथा छत्त्तीसगढ़ की पटरियों पर ऐसा खेल अक्सर खेला जा रहा है, जहां खिलाने वाला रेलवे है और उसके कलाकार हम यात्री। जो लोग बच गये, वह भाग्यशाली वरना भारत के वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी के बयान के अनुसार दुर्घटना को कोई नहीं रोक सकता। भारतीय रेलवे की पटरियों पर मौत का खेल कोई नई बात नहीं है चाहे ललित नारायण मिश्र हो चाहे माधवराव सिंधिया, रामविलास पासवान अथवा लालू प्रसाद यादव या अबकी रेल मंत्री ममता बेनर्जी। इन सबके रेल मंत्री रहते रेल दुर्घटना आम बात है लेकिन माधव राव सिंधिया जैसे बहुत कम लोग ऐेसे हैं जो मौत का ताण्डव देख अपने ऊपर नैतिक जिम्मेदारी लेकर इस्तीफे की पहल करते हैं। ममता बेनर्जी के रेल मंत्री रहते अभी तक दो ऐसी बड़ी दुर्घटनाएं हुई जिसने रेलवे की सुरक्षा पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया। मिदनापुर और वीरभूमि जिले में हुई दुर्घटना में सैकड़ों यात्री मारे गये। करोड़ों रूपये की रेलवे संपत्ति को नुकसान हुआ और रेलवे की संपूर्ण कार्यप्रणाली पर प्रश्न चिन्ह लग गया। हम न रेल मंत्री के इस्तीफे की वकालत कर रहे हैं और न सरकार को उसकी सुरक्षा प्रणाली के लिये कोस रहे हैं लेकिन यह सिलसिला आखिर कब तक? आम आदमी यूं पैसे देकर अपनी मौत कब तक खरीदता रहेगा? क्यों इतनी बड़ी लापरवाही होती है? क्यों रेलवे सुरक्षा देने में लापरवाह है? मिदनापुर में ट्रेन हादसे को तोडफ़ोड की कार्रवाही बताया गया तो वीरभूमि का हादसा क्या है? क्या एक अकेला ड्रायवर इसके लिये जिम्मेदार है? और अगर हां तो ऐसे ड्रायवर को जिसे सिग्नल नहीं दिखता अकेले ट्रेन को चलाने व सैकड़ों लोगों की जिंदगी छिनने का लायसेंस किसने दिया? दो- ढाई महीने के भीतर ममता बेनर्जी के इलाके में ही दो दुर्घटना का विलन आखिर कौन है? क्या यह एक राजनीतिक खेल का नतीजा तो नहीं, जो ममता बेनर्जी को नीचा दिखाने के लिये खेला जा रहा है? मिदनापुर रेल हादसे के बाद से इस क्षेत्र में रेल गाडिय़ां यूं ही दहशत के साये में किन्तु सुरक्षित व पुलिस की सघन निगरानी में सतर्कता से चल रही है तब अचानक इस दुर्घटना का जन्म होना किस बात को इंगित करता है? बहरहाल इन सब बातों का पता लगाने का मुद्दा अब सुरक्षा एजेङ्क्षसयों का है। हमारा मतलब सिर्फ यात्रियों की सुरक्षा व रेल संपत्ति से है। सियासत में बैठे लोग व विपक्ष दोनों को दुर्घटनाओं के बाद एक दूसरे को नीचा दिखाने का खेल खेलने की जगह ऐसा कोई समाधान ढूंढना चाहिये जिससे यात्रियों को इस बात की गारंटी मिले कि वेे गंतव्य तक सुरक्षित पहुंच जायेंगे!
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