जेल जहां परिन्दे भी पर नहीं मारते वहां
जेल जहां परिन्दे भी पर नहीं मारते वहां
रसूख और पैसे का होता है खेल!
यूं अगर आप अपराध करो तो जेल में आपको बकायदा सुरक्षा गार्ड के साथ दाखिला मिल जायेगा लेकिन आम आदमी की तरह आप जेल जाना चाहें या जेल को भीतर से देखना चाहें, तो इतना आसान नहीं है। परमीशन लो और कई औपचारिकताओं को पूरा करो। फिर आप जेल के अंदर दाखिला ले सकते हो। आमतौर पर जेल में बंद बंदियों से मुलाकात भी इतना आसान नहीं है। कई साल पहले मुझे एक अवसर मिला जेल के भीतर घुसने का। अपराध करके नहीं! जेल में किसी मंत्री महोदय का कार्यक्रम था जिसकी रिपोर्टिगं करने का जिम्मा मुझे दिया गया था। मंत्री के साथ भीड़ में हालंाकि उस समय ज्यादा सेक्युरिटी नहीं थी। फिर भी थोड़ी बहुत औपचारिकता पूरी कर हम भी भीतर घुस गये। जेल का कार्यक्रम, मंत्री का भाषण, जेल में बंद कैदियों की व्यथा और अन्य आयोजन जो किसी मंत्री के कार्यक्रम के दौरान होता है, में समय लगा। इस दौरान वहां रायपुर में धारा 307 के तहत बंद एक कैदी से मेरी मुलाकात हो गई। परिचय हुआ और अच्छी दोस्ती हो गई तो उसने मुझे चुपके से जेल दिखाने की व्यवस्था कर दी। मुझे वह बैरक दिखाये जहां बंदी रखे जाते हैं। उसने जेल में मौजूद कई व्यवस्थाओं और अव्यवस्थाओं दोनों का परिचय कराया। इस कैदी का इतना जलवा था कि वह जहां से गुजरता, बाकी कैदी उसे झुककर आदर करते। जेल में उसकी हैसियत किसी नेता या मंत्री से कम नहीं थी। उसने मुझे बताया कि वह एक हत्या के प्रयास मामले में बंद है। अब उसकी सजा खत्म होने वाली है। बातें करते-करते हम जेल के आखिरी छोर तक पहुंच गये जहां फांसी दी जाती थी। इस दौरान कार्यक्रम खत्म हुआ, तो मंत्री महोदय और उनके साथ आये सभी लोग चले गये, मगर एक आदमी कम निकला । मेरी खोज बीन शुरू हुई। कुछ ही देर में मैं जेल अधीक्षक के कमरे मेंं पहुंच गया। तो उन्होंने मुझसे तो कुछ नहीं कहा लेकिन मेरे साथ आये कैदी की तरफ ऐसे देखा जैसे उसने बहुत बड़ा जुर्म किया हो। मुझे यहां पूर्ण खातिरदारी के बाद बाहर बकायदा फिर से एंट्री कर छोड़ा गया। मैने जो अनुभव किया कि जेल में पहुंच वाले कैदियों को उस समय भी सुविधाएं थी और उनका दबका पूरे जेल में छाया रहता था। यह बात आज जब अखबार में अबू सलेम को प्राप्त सुविधाओं के जिक्र के साथ आई तो मुझे जेल की सारी व्यवस्थाएं याद आ गई। जेल की एक अलग दुनिया है। बाहर सांस लेने वालों से एक अलग दुनियां यहां जिसके पास पैसा है वह आराम से अपने घर जैसा रह सकता है। किसी को भी खरीदा जा सकता है। वह बंदी को सारी सुविधाएं सुलभ करा देता है। इसमें जेल के बड़े से बड़े अधिकारी तक मिले रहते हैं। असल में यह सब होता इसलिये है कि जेल के बाहर की दुनिया में रहने वाले वे लोग जिनपर जेल की जिम्मेदारियां होती है। वे जेल की व्यवस्था देखने में हीन भावना महसूस करते हैं। जेल का प्रशासन इसका भरपूर फायदा उठाता है। समस्त किस्म की मनमानियां यहां होती है। गरीब व मध्यम वर्ग के कैदियों की कोई इज्जत नहीं। अदालत से छूटने के बाद भी वे कई दिनों तक जेल में सड़ते रहते हैं। जबकि पहुंच, पैसे वाले व प्रभावी कैदी उनके ऐशोआराम में कोई कमी नहीं रहती। अबू सलेम जैसा अंडरवल्ड डान जेल में फाइव स्टार जैसी सुविधा और कोई षडय़ंत्र रचे तो किसी को आश्चर्य नहीं करना चाहिये।
रसूख और पैसे का होता है खेल!
यूं अगर आप अपराध करो तो जेल में आपको बकायदा सुरक्षा गार्ड के साथ दाखिला मिल जायेगा लेकिन आम आदमी की तरह आप जेल जाना चाहें या जेल को भीतर से देखना चाहें, तो इतना आसान नहीं है। परमीशन लो और कई औपचारिकताओं को पूरा करो। फिर आप जेल के अंदर दाखिला ले सकते हो। आमतौर पर जेल में बंद बंदियों से मुलाकात भी इतना आसान नहीं है। कई साल पहले मुझे एक अवसर मिला जेल के भीतर घुसने का। अपराध करके नहीं! जेल में किसी मंत्री महोदय का कार्यक्रम था जिसकी रिपोर्टिगं करने का जिम्मा मुझे दिया गया था। मंत्री के साथ भीड़ में हालंाकि उस समय ज्यादा सेक्युरिटी नहीं थी। फिर भी थोड़ी बहुत औपचारिकता पूरी कर हम भी भीतर घुस गये। जेल का कार्यक्रम, मंत्री का भाषण, जेल में बंद कैदियों की व्यथा और अन्य आयोजन जो किसी मंत्री के कार्यक्रम के दौरान होता है, में समय लगा। इस दौरान वहां रायपुर में धारा 307 के तहत बंद एक कैदी से मेरी मुलाकात हो गई। परिचय हुआ और अच्छी दोस्ती हो गई तो उसने मुझे चुपके से जेल दिखाने की व्यवस्था कर दी। मुझे वह बैरक दिखाये जहां बंदी रखे जाते हैं। उसने जेल में मौजूद कई व्यवस्थाओं और अव्यवस्थाओं दोनों का परिचय कराया। इस कैदी का इतना जलवा था कि वह जहां से गुजरता, बाकी कैदी उसे झुककर आदर करते। जेल में उसकी हैसियत किसी नेता या मंत्री से कम नहीं थी। उसने मुझे बताया कि वह एक हत्या के प्रयास मामले में बंद है। अब उसकी सजा खत्म होने वाली है। बातें करते-करते हम जेल के आखिरी छोर तक पहुंच गये जहां फांसी दी जाती थी। इस दौरान कार्यक्रम खत्म हुआ, तो मंत्री महोदय और उनके साथ आये सभी लोग चले गये, मगर एक आदमी कम निकला । मेरी खोज बीन शुरू हुई। कुछ ही देर में मैं जेल अधीक्षक के कमरे मेंं पहुंच गया। तो उन्होंने मुझसे तो कुछ नहीं कहा लेकिन मेरे साथ आये कैदी की तरफ ऐसे देखा जैसे उसने बहुत बड़ा जुर्म किया हो। मुझे यहां पूर्ण खातिरदारी के बाद बाहर बकायदा फिर से एंट्री कर छोड़ा गया। मैने जो अनुभव किया कि जेल में पहुंच वाले कैदियों को उस समय भी सुविधाएं थी और उनका दबका पूरे जेल में छाया रहता था। यह बात आज जब अखबार में अबू सलेम को प्राप्त सुविधाओं के जिक्र के साथ आई तो मुझे जेल की सारी व्यवस्थाएं याद आ गई। जेल की एक अलग दुनिया है। बाहर सांस लेने वालों से एक अलग दुनियां यहां जिसके पास पैसा है वह आराम से अपने घर जैसा रह सकता है। किसी को भी खरीदा जा सकता है। वह बंदी को सारी सुविधाएं सुलभ करा देता है। इसमें जेल के बड़े से बड़े अधिकारी तक मिले रहते हैं। असल में यह सब होता इसलिये है कि जेल के बाहर की दुनिया में रहने वाले वे लोग जिनपर जेल की जिम्मेदारियां होती है। वे जेल की व्यवस्था देखने में हीन भावना महसूस करते हैं। जेल का प्रशासन इसका भरपूर फायदा उठाता है। समस्त किस्म की मनमानियां यहां होती है। गरीब व मध्यम वर्ग के कैदियों की कोई इज्जत नहीं। अदालत से छूटने के बाद भी वे कई दिनों तक जेल में सड़ते रहते हैं। जबकि पहुंच, पैसे वाले व प्रभावी कैदी उनके ऐशोआराम में कोई कमी नहीं रहती। अबू सलेम जैसा अंडरवल्ड डान जेल में फाइव स्टार जैसी सुविधा और कोई षडय़ंत्र रचे तो किसी को आश्चर्य नहीं करना चाहिये।
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