करना उन्हैं हैं, कह हमसे रहे हैं!
रायपुर, शुक्रवार । दिनांक 7 अगस्त 2010।
सरकार हमसे कह रही है यह होना
चाहिये लेकिन करना तो उन्हें ही है!
दो ख़बरें आज शिक्षकों संबंधित दिखाई दी। एक यह कि छत्तीसगढ़ के शिक्षकों को भी गुजरात और महाराष्ट्र के शिक्षकों की तरह कोड़ नम्बर दिये जायेंगें तथा स्कूलों को कम्पयूटर से जोडा जायेगा अर्थात एक पूरा नेट वर्क तैयार किया जायेगा। दूसरी खबर केन्द्र से है, सरकार का कहना है कि पूरे देश में इस समय बारह लाख शिक्षकों की कमी है। क पिल सिब्बल ने यह बात लोकसभा में कही है। शिक्षा मंत्री के अनुसार देश में शिक्षकों की कमी का एक कारण बीएड शिक्षा प्राप्त युवकों का अभाव है जिसके कारण शिक्षको की भर्ती नहीं हो पा रही है। हम पूछना चाहते हैं सरकार से कि यह किसकी गलती है? भारत आजाद होने के बाद शुरू शुरू में शिक्षा और बुनियादी प्रशिक्षण महाविद्यालयों अर्थात पीजीबीटी कॉलेज को जितना महत्व दिया गया, उतना उसके बाद के वर्षा में क्यों नहीं दिया गया? इसके पीछे कारण क्या है? और कौन इसके लिये जिम्मेदार हैं! जब हम स्कूलों में पड़ते थे तब स्कूलों में प्रशिक्षु शिक्षक आया करते थे और वे हमें अपने कई प्रायोगिक कार्य सिखाया करते थे चूंकि उन्हें इसके लिये अपनी थीसिस तैयार करनी होती थी लेकिन आज यह व्यवस्था लगभग खत्म सी हो गई। बुनियादी प्रशिक्षण को पूर्व की तरह महत्व भी नहीं दिया जाता। सरकार के लोग जब केन्द्र व राज्यों में बैठकर यह कहते हैं कि ऐसा होना चाहिये या ऐसा करना चाहिये तो आम जनता के मुंह से यही निकलता है कि कौन करेगा? हमने तो आपको सत्ता में बिठा दिया आपके ही अधिकार क्षेत्र में सब कुछ है फिर जनता को मुखातिब होकर यह क्यों कहा जाता है कि ऐसा किया जाना चाहिये या ऐसा नहीं किया जाना चाहिये?- जनता को थोड़े ही यह सब करना है। हाल ही भारत के गृह मंत्री पी चिदंबरम ने भी कुछ ऐसे ही बयान दिये है जिसपर यही प्रतिक्रिया हुई कि जो आपको करना चाहिये वह आप जनता से क्यों कह रहे हो। बहरहाल त्रेसठ सालों बाद सरकार को होश तो आया कि देश के स्कूलों की दशा खराब है और उसमें शिक्षकों की कमी है। हम सरकार को यह भी बता दे कि देश के स्कूलों में न केवल शिक्षकों की कमी है बल्कि स्कूल भवनों, प्रयोगशालाओं, खेल मैदानों, फिजिकल इंस्ट्रक्टर तथा अन्य अनेक मूलभूत सुविधाओं की कमी है। एक अरब बीस करोड़ की आबादी में से बारह लाख शिक्षकों को तैयार कर निकालने में सरकार को नानी याद आ रही है तो उस सरकार को क्या कहा जायें। शिक्षकों की भर्ती में क्या क्या धांधली होती है यह किसी को बताने की जरूरत नहीं। दस साल पहले बने छत्तीसगढ़ राज्य की सरकार ने इस मामले में कुछ सुध ली है। इस कड़ी में उसने स्कूलों को कम्पयूटर से जोडऩे और शिक्षकों का कोड़ तैयार करने का निर्णय लिया है इससे सरकार को शिक्षक व स्कूलों में छात्रों की गतिविधियों आदि पर नियंत्रण करने में आसानी होगी। देर से ही सही सरकार का यह निर्णय स्वागत योग्य है। गुजरात और महाराष्ट्र में यह व्यवस्था पहले से ही जारी है।
सरकार हमसे कह रही है यह होना
चाहिये लेकिन करना तो उन्हें ही है!
दो ख़बरें आज शिक्षकों संबंधित दिखाई दी। एक यह कि छत्तीसगढ़ के शिक्षकों को भी गुजरात और महाराष्ट्र के शिक्षकों की तरह कोड़ नम्बर दिये जायेंगें तथा स्कूलों को कम्पयूटर से जोडा जायेगा अर्थात एक पूरा नेट वर्क तैयार किया जायेगा। दूसरी खबर केन्द्र से है, सरकार का कहना है कि पूरे देश में इस समय बारह लाख शिक्षकों की कमी है। क पिल सिब्बल ने यह बात लोकसभा में कही है। शिक्षा मंत्री के अनुसार देश में शिक्षकों की कमी का एक कारण बीएड शिक्षा प्राप्त युवकों का अभाव है जिसके कारण शिक्षको की भर्ती नहीं हो पा रही है। हम पूछना चाहते हैं सरकार से कि यह किसकी गलती है? भारत आजाद होने के बाद शुरू शुरू में शिक्षा और बुनियादी प्रशिक्षण महाविद्यालयों अर्थात पीजीबीटी कॉलेज को जितना महत्व दिया गया, उतना उसके बाद के वर्षा में क्यों नहीं दिया गया? इसके पीछे कारण क्या है? और कौन इसके लिये जिम्मेदार हैं! जब हम स्कूलों में पड़ते थे तब स्कूलों में प्रशिक्षु शिक्षक आया करते थे और वे हमें अपने कई प्रायोगिक कार्य सिखाया करते थे चूंकि उन्हें इसके लिये अपनी थीसिस तैयार करनी होती थी लेकिन आज यह व्यवस्था लगभग खत्म सी हो गई। बुनियादी प्रशिक्षण को पूर्व की तरह महत्व भी नहीं दिया जाता। सरकार के लोग जब केन्द्र व राज्यों में बैठकर यह कहते हैं कि ऐसा होना चाहिये या ऐसा करना चाहिये तो आम जनता के मुंह से यही निकलता है कि कौन करेगा? हमने तो आपको सत्ता में बिठा दिया आपके ही अधिकार क्षेत्र में सब कुछ है फिर जनता को मुखातिब होकर यह क्यों कहा जाता है कि ऐसा किया जाना चाहिये या ऐसा नहीं किया जाना चाहिये?- जनता को थोड़े ही यह सब करना है। हाल ही भारत के गृह मंत्री पी चिदंबरम ने भी कुछ ऐसे ही बयान दिये है जिसपर यही प्रतिक्रिया हुई कि जो आपको करना चाहिये वह आप जनता से क्यों कह रहे हो। बहरहाल त्रेसठ सालों बाद सरकार को होश तो आया कि देश के स्कूलों की दशा खराब है और उसमें शिक्षकों की कमी है। हम सरकार को यह भी बता दे कि देश के स्कूलों में न केवल शिक्षकों की कमी है बल्कि स्कूल भवनों, प्रयोगशालाओं, खेल मैदानों, फिजिकल इंस्ट्रक्टर तथा अन्य अनेक मूलभूत सुविधाओं की कमी है। एक अरब बीस करोड़ की आबादी में से बारह लाख शिक्षकों को तैयार कर निकालने में सरकार को नानी याद आ रही है तो उस सरकार को क्या कहा जायें। शिक्षकों की भर्ती में क्या क्या धांधली होती है यह किसी को बताने की जरूरत नहीं। दस साल पहले बने छत्तीसगढ़ राज्य की सरकार ने इस मामले में कुछ सुध ली है। इस कड़ी में उसने स्कूलों को कम्पयूटर से जोडऩे और शिक्षकों का कोड़ तैयार करने का निर्णय लिया है इससे सरकार को शिक्षक व स्कूलों में छात्रों की गतिविधियों आदि पर नियंत्रण करने में आसानी होगी। देर से ही सही सरकार का यह निर्णय स्वागत योग्य है। गुजरात और महाराष्ट्र में यह व्यवस्था पहले से ही जारी है।
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