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नवंबर, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

जंगल में जवानों की मौत का ताण्‍डव कब तक? How long till death of jawans in jungle?കാട്ടിൽ ജവാൻ മരിക്കുന്നതുവരെ എത്ര കാലം?

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  जंगल में जवानों की मौत का ताण्‍डव कब तक ? सवाल यही है कि हमारे जंगलों में हमारे जवानों का खून बहने का सिलसिला आखिर कब खत्‍म होगा ? नक्‍सली समस्‍या शुरू होने के बाद से जवानो और कई बडे नेताओं सहित कितने ही लोगों का खून बह चुका है कि यह अगर सूख नहीं जाता तो एक नदी का रूप ले सकता था: यह सब जानते हुए भी खून बहने का सिलसिला जारी है और हम सिर्फ संवेदना व्‍यक्‍त कर रहे हैं , मुआवजा बाटकर पीडित परिवारों को खुशिया बांटने की कोशिश कर रहे हैं: इस गंभीर समस्‍या का ध्‍यान किसी और का गया हो या न गया हो लेकिन फिल्‍म इंण्‍डस्‍ट्रीज ने जरूर इसका बखान अच्‍छे ढंग से किया है: मलयालम फिल्‍म { उण्‍डा } ने यहां की वास्‍तविक स्थिति को बखूबी प्रदर्शित किया : बस्‍तर में फिल्‍माये गये   इस फिल्‍म के मुख्‍य अदाकार दक्षिण के सुपर स्‍टार मामूटी हैं नक्‍सल समस्‍या को लेकर जवानों को कितनी कठिनाइयों का सामना करना पडता है ऐसा पहली बार इस फिल्‍म में देखने को मिला है एक अहिन्‍दी भाषी क्षेत्र से आये जवानों को घने   जंगलों से भरे इलाके में पहुंचने के बाद कितनी कठिनाइयों का सामना करना पडता है यह इस फिल्‍म में दिखाया

वन नेशन वन इलेक्‍शन की लहर फिर चली

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  वन नेशन वन इलेक्‍शन की लहर फिर चली इलेक्शन कमीशन के मुताबिक , देश में सन 1952 में जब पहली बार लोकसभा चुनाव हुए थे , तब 10.52 करोड़ रुपए खर्च हुए थे , उसके बाद 1957 और 1962 के चुनाव में सरकार का खर्च कम हुआ था: लेकिन 1967 के चुनाव से हर साल केंद्र सरकार का खर्च बढ़ता ही गया: फिलहाल 2014 के लोकसभा चुनाव तक के ही खर्च का ब्यौरा है: 2014 में 3,870 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च हुए थे:प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी चुनाव के दौरान व चुनाव जीतने के बाद से लगातार यह कह रहे हैं कि   देश में एक चुनाव की जरूरत है: सवाल यह उठता है कि क्‍या ऐसा हो सकता है ? यह सवाल उस समय से सभी की जुबान पर था और समय के साथ इस बात पर किसी ने न ज्‍यादा ध्‍यान दिया और न ही उसपर कोई ज्‍यादा चर्चा हुई लेकिन नरेन्‍द्र मोदी ने इस बात पर पुन: बल देकर इस महत्‍वपूर्ण मु्द्वे को एक बार फिर बहस का विषय बना दिया है:इस बारे में   मोदी का यह तर्क सही लगता है कि लोकसभा- विधानसभा चुनाव साथ-साथ होने से खर्च कम होगा तथा विकास कार्य भी नहीं रूकेंगे: जबकि विपक्ष इसे मानने को तैयार नहीं है उनका कहना है कि इससे वोटर स्‍थानीय मुददो के बजाय

कांग्रेस में सब ठीक नहीं, क्‍या सोनिया कांग्रेस को बचा पायेंगी?All is not well in the Congress, will Sonia be able to save the Congress?

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  कांग्रेस में सब ठीक नहीं , क्‍या सोनिया कांग्रेस को बचा पायेंगी ? वरिष्‍ठो के आक्रोश ने पार्टी में सोच पैदा की एक साल से ददक रही चिंगारी अब आग का रूप लेने लगी क्‍या आपस में लडकर पार्टी दो फाड होगी ? क्‍या देश से कांग्रेस का अस्तित्‍व मिटाने का सपना साकार होने वाला है ?     “ सोनिया जी , पार्टी को महज इतिहास का हिस्सा बनकर रह जाने से बचा लें: परिवार के मोह से ऊपर उठकर काम करें: पार्टी की लोकतांत्रिक परंपराओं को फिर से स्थापित करें: यूपी में पार्टी अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है यह बात ओर किसी की नहीं बल्कि सोनिया गांधी की पार्टी के नेताओं की चिटठी का वह अंश है जो उन्‍होंने पिछले साल दल से निकालने के बाद एक चिटठी में उनको लिखी थी: ” बिहार चुनाव के बाद अब यही मुददा फिर बढचढकर बोल रहा है: सीनियर कांग्रेस नेता कपिल सिब्‍बल ने यह कहते हुए कि " बिहार के चुनावों और दूसरे राज्यों के उप-चुनावों में कांग्रेस की परफॉर्मेंस पर अब तक टॉप लीडरशिप की राय तक सामने नहीं आई है शायद उन्हें सब ठीक लग रहा है और इसे सामान्य घटना माना जा रहा है , मेरे पास सिर्फ लीडरशिप के आस-पास के ल