अंतहीन समस्याएं!
रायपुर गुरूवार, दिनांक 5 अगस्त 2010
अंतहीन समस्याएं!
देश के अंदरूनी हालात भारत की विकास संभावनाओं पर घीरे धीरे बे्रक लगा रही है। कुछ समस्याएं अस्थाई न होकर स्थाई बन गई है जिससे यहां सरकार का पूरा ध्यान इन समस्याओं पर केन्द्रित होकर रह गया है। इन्हें हल करने की दिशा में उसका प्रयास नगण्य है फलस्वरूप यह समस्याएं और गंभीर होती जा रही हैं, इसमें चाहे छत्तीसगढ़ सहित कम से कम देश के ग्यारह राज्यों में फैलते नक्सलवाद की समस्या हो चाहे कश्मीर में हत्याओं के बाद उत्पन्न होने वाला विवाद या आंतकवाद अथवा उल्फा की असम में विध्वसंक कार्यवाहियां। इन सबने धीरे धीरे समस्याओं को गहन कर दिया है, इन सबके पीछे अगर कारण देखा जाये तो सरकारो की इन मामलों को निपटाने में ढिलाई और विपक्ष का गंभीर मसलों को छोड़ अन्य बेफालतू मुद्दो को लेकर संसद व सड़क पर हंगामा है। स्थाई समस्याओं के अलाव सरकार अस्थाई समस्याओं के प्रति भी लापरवाह है। अब जैसे तेलांगाना प्रांत का मामला। छोटे राज्यों में काम अच्छा हो रहा है। हाल के वर्षाे में बने छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, झारखंड ने अपनी पहचान बना ली है फिर चाहे वह तेलंगाना हो या विदर्भ उन्हें छोटे राज्यों में विकसित करने की छूट देने में क्या हर्ज? कम से कम रोज-रोज के आंदोलन से मुक्ति तो मिलेगी। कश्मीर और नक्सलवादी इस समय सबसे बड़ी और स्थाई समस्या के रूप में हमारे सामने हैं। कश्मीर सीमावर्ती राज्य होने के कारण हर हिंसा या वहां होने वाली गतिविधियों में पाकिस्तान का प्रत्यक्ष या परोक्ष हाथ रहता है। उसके नेता स्वयं कहते हैं कि वह कश्मीर की मांग नहीं छोड़ेंगेे और अब पिछले कम से कम एक महीने से वहां हत्याओं के बाद जो माहौल तैयार हुआ है वह यह साफ इंगित कर रहा है कि जनताा को भड़काने में पाकिस्तान से घुस आये लोगों का हाथ है। कश्मीर के अलावा भी देश में होने वाली अधिकाश्ंा समस्याओं की जड़ में पाकिस्तान के हाथ से इंकार नहीं किया जा सकता। इसके अलावा ग्यारह राज्यों मे फैल रहा नक्सलियों का हिंसक आंदोलन कभी कभी तो ऐसा लगता है कि यह किसी की शह या संरक्षण में चल रहा है। सेट लाइट और अन्य सुविधाएं होने के बावजूद भारत के जंगलों में छिपे खुंखार नक्सलियों को खोज निकालने में हमारी पुलिस नाकाम रही है। इस स्थाई समस्या के चलते कुछ राज्यों में विकास होने के बाद भी उसपर एक तरह से लगाम लग जाता है। तीसरा मुद्दा बाहरी आतंकवाद का है जो पिछले कुछ दिनों से शांत है किन्तु उनकी गतिविधियां यदा- कदा जारी है। ऐसे तत्वों को तो ढूंढ ढूंढ कर खत्म किया जा सकता है। इसमें भी सरकार की लाचारी ही नजर आती है। सरकार को चाहिये कि वह पहले अस्थाई समस्याओं को एक एक कर निपटाये फिर अन्य स्थाई समस्यआों को हल करें। शुरू में कश्मीर ही मात्र एक समस्या थी लेकिन अब समस्याओ की गिनती करना कठिन हो गया है चाहे वह नक्सलवाद हो, आंतकवाद हो, उल्फा की गतिविधियों हो, पृथकतावादी आंदोलन हो या अन्य समस्याएं जिसमें मंहगाई भी शामिल है।
अंतहीन समस्याएं!
देश के अंदरूनी हालात भारत की विकास संभावनाओं पर घीरे धीरे बे्रक लगा रही है। कुछ समस्याएं अस्थाई न होकर स्थाई बन गई है जिससे यहां सरकार का पूरा ध्यान इन समस्याओं पर केन्द्रित होकर रह गया है। इन्हें हल करने की दिशा में उसका प्रयास नगण्य है फलस्वरूप यह समस्याएं और गंभीर होती जा रही हैं, इसमें चाहे छत्तीसगढ़ सहित कम से कम देश के ग्यारह राज्यों में फैलते नक्सलवाद की समस्या हो चाहे कश्मीर में हत्याओं के बाद उत्पन्न होने वाला विवाद या आंतकवाद अथवा उल्फा की असम में विध्वसंक कार्यवाहियां। इन सबने धीरे धीरे समस्याओं को गहन कर दिया है, इन सबके पीछे अगर कारण देखा जाये तो सरकारो की इन मामलों को निपटाने में ढिलाई और विपक्ष का गंभीर मसलों को छोड़ अन्य बेफालतू मुद्दो को लेकर संसद व सड़क पर हंगामा है। स्थाई समस्याओं के अलाव सरकार अस्थाई समस्याओं के प्रति भी लापरवाह है। अब जैसे तेलांगाना प्रांत का मामला। छोटे राज्यों में काम अच्छा हो रहा है। हाल के वर्षाे में बने छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, झारखंड ने अपनी पहचान बना ली है फिर चाहे वह तेलंगाना हो या विदर्भ उन्हें छोटे राज्यों में विकसित करने की छूट देने में क्या हर्ज? कम से कम रोज-रोज के आंदोलन से मुक्ति तो मिलेगी। कश्मीर और नक्सलवादी इस समय सबसे बड़ी और स्थाई समस्या के रूप में हमारे सामने हैं। कश्मीर सीमावर्ती राज्य होने के कारण हर हिंसा या वहां होने वाली गतिविधियों में पाकिस्तान का प्रत्यक्ष या परोक्ष हाथ रहता है। उसके नेता स्वयं कहते हैं कि वह कश्मीर की मांग नहीं छोड़ेंगेे और अब पिछले कम से कम एक महीने से वहां हत्याओं के बाद जो माहौल तैयार हुआ है वह यह साफ इंगित कर रहा है कि जनताा को भड़काने में पाकिस्तान से घुस आये लोगों का हाथ है। कश्मीर के अलावा भी देश में होने वाली अधिकाश्ंा समस्याओं की जड़ में पाकिस्तान के हाथ से इंकार नहीं किया जा सकता। इसके अलावा ग्यारह राज्यों मे फैल रहा नक्सलियों का हिंसक आंदोलन कभी कभी तो ऐसा लगता है कि यह किसी की शह या संरक्षण में चल रहा है। सेट लाइट और अन्य सुविधाएं होने के बावजूद भारत के जंगलों में छिपे खुंखार नक्सलियों को खोज निकालने में हमारी पुलिस नाकाम रही है। इस स्थाई समस्या के चलते कुछ राज्यों में विकास होने के बाद भी उसपर एक तरह से लगाम लग जाता है। तीसरा मुद्दा बाहरी आतंकवाद का है जो पिछले कुछ दिनों से शांत है किन्तु उनकी गतिविधियां यदा- कदा जारी है। ऐसे तत्वों को तो ढूंढ ढूंढ कर खत्म किया जा सकता है। इसमें भी सरकार की लाचारी ही नजर आती है। सरकार को चाहिये कि वह पहले अस्थाई समस्याओं को एक एक कर निपटाये फिर अन्य स्थाई समस्यआों को हल करें। शुरू में कश्मीर ही मात्र एक समस्या थी लेकिन अब समस्याओ की गिनती करना कठिन हो गया है चाहे वह नक्सलवाद हो, आंतकवाद हो, उल्फा की गतिविधियों हो, पृथकतावादी आंदोलन हो या अन्य समस्याएं जिसमें मंहगाई भी शामिल है।
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