वेस्ट वाटर और कचरे से सोना बनाने
वेस्ट वाटर और कचरे से सोना बनाने
पर भी तो सोचा जा सकता है !
शहरों का कचरा और वेस्ट पानी दोनों को प्रायरू फालतू समझकर या तो एक जगह एकत्रित किया जाता है या फिर यूं ही बह जाने दिया जाता है-इसका उपयोग करने का विचार जरूर किया जाता है लेकिन उसपर अमल नहीं होता। जिस ढंग से मौसम में बदलाव आ रहा है तथा प्रदूषण को खतरा हो रहा है। उससे इस कीमती वेस्ट को सोना बनाने पर विचार करने की जरूरत है। वर्षाे पूर्व रायपुर में जब अंडर ग्राउण्ड ड्रेनेज सिस्टम का काम शुरू किया गया तो उसमें प्रावधान था कि शहर से जो गंदा पानी निकल रहा है, उसे एक स्थान पर एकत्रित किया जाये और उसका उपयोग खेती व अन्य कार्याे के लिये किया जाए। अंडर ग्राउण्ड ड्रेनेज सिस्टम फलाप होने के बाद उसके साथ - साथ ही वेस्ट वाटर उपयोग की योजना भी दफन हो गई, फिर किसी ने इस पर ध्यान नहीं दिया और न ही पानी व कचरे को सोने में बदलने की कोई योजना पर किसी ने विचार किया। आज छंत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में जो पानी निस्तारी के लिये उपयोग में लाया जाता है, वह यूं ही नाली में बहकर या ड्राप होकर वहीं रह जाता है। ऐसे पानी की मात्रा लाखों- लीटर हो सकती है जिसका उपयोग अगर फिल्टर कर कि या जाये तो किसी विद्युत संयत्र या बड़े उद्योग को चलाने अथवा कई एकड़ कृषि भूमि को सिंचित करने के लिये किया जा सकता है। आधुनिकता की भागदौड़ में हम इस गंभीर मसले को भूल रहे हैं। गर्मी के दिनों मेंं सड़कों के डिवाइडर और सड़क किनारे लगे पौधों को पानी देने के लिये हमारे पास पानी नहीं रहता। क्या ऐसे में हम शहर के नालों से निकलने वाले पानी का संचय कर इसका उपयोग इन पौधों के लिये नहीं कर सकते?। आज विकास के नाम पर पूरे छत्तीसगढ़ में हमने छोटी- छोटी सड़कों का भी डामरीकरण और सीमेंटीकरण कर दिया। गांव के हरे- भरे खेतों में कांक्रीट के पेड़ बिछा दिये गये लेकिन इस बात का ध्यान नहीं रखा गया कि इससे धरती के भीतर पानी जाने के रास्ते बंद हो जायेंगे। अंधाधुन्ध पेड़ों की कटाई के बाद उनके स्थान पर नये पौधे नहीं लगाये गये। सड़कें जहां दोनों तरफ हरी- भरी दिखती थी वह अब गर्मी के दिनों में मरूस्थल की तरह दिखाई देने लगे हैं। शहरों के प्रायरू ड्रेनेज या तो ब्लाक हैं या फिर उन्हें पक्का बना देने से जमीन के भीतर पानी नहीं जा रहा है। मौसम की बेरूखी से अषाढ़ के महीने में गर्मी पड़ रही है व खण्ड वर्षा हो रही है। ऐसे हालात में यह जरूरी है कि हम जितना पानी हो सकें उसका बचाव करें। चाहे यह वेस्ट पानी ही क्यों न हो। वेस्ट वाटर के साथ कचरे की समस्या भी गांव ,शहर सभी जगह है। कई जगह इसका उपयोग उर्जा पैदा करने व अन्य कामों में किया जाता है। रायपुर जैसे शहर में प्रतिदिन लाखों टन कचरा निकलता है। इसका फिलहाल कोई उपयोग नहीं है? यह यहां वहां बिखेर दिया जाता है। इसका उपयोग भी खाद बनाने व अन्य कामों के लिये किया जा सकता है-ऐसे कार्य के लिये जो आगे आयें उन्हें मदद देने में भी कोई कोर कसर नहीं छोडऩी चाहिये।
पर भी तो सोचा जा सकता है !
शहरों का कचरा और वेस्ट पानी दोनों को प्रायरू फालतू समझकर या तो एक जगह एकत्रित किया जाता है या फिर यूं ही बह जाने दिया जाता है-इसका उपयोग करने का विचार जरूर किया जाता है लेकिन उसपर अमल नहीं होता। जिस ढंग से मौसम में बदलाव आ रहा है तथा प्रदूषण को खतरा हो रहा है। उससे इस कीमती वेस्ट को सोना बनाने पर विचार करने की जरूरत है। वर्षाे पूर्व रायपुर में जब अंडर ग्राउण्ड ड्रेनेज सिस्टम का काम शुरू किया गया तो उसमें प्रावधान था कि शहर से जो गंदा पानी निकल रहा है, उसे एक स्थान पर एकत्रित किया जाये और उसका उपयोग खेती व अन्य कार्याे के लिये किया जाए। अंडर ग्राउण्ड ड्रेनेज सिस्टम फलाप होने के बाद उसके साथ - साथ ही वेस्ट वाटर उपयोग की योजना भी दफन हो गई, फिर किसी ने इस पर ध्यान नहीं दिया और न ही पानी व कचरे को सोने में बदलने की कोई योजना पर किसी ने विचार किया। आज छंत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में जो पानी निस्तारी के लिये उपयोग में लाया जाता है, वह यूं ही नाली में बहकर या ड्राप होकर वहीं रह जाता है। ऐसे पानी की मात्रा लाखों- लीटर हो सकती है जिसका उपयोग अगर फिल्टर कर कि या जाये तो किसी विद्युत संयत्र या बड़े उद्योग को चलाने अथवा कई एकड़ कृषि भूमि को सिंचित करने के लिये किया जा सकता है। आधुनिकता की भागदौड़ में हम इस गंभीर मसले को भूल रहे हैं। गर्मी के दिनों मेंं सड़कों के डिवाइडर और सड़क किनारे लगे पौधों को पानी देने के लिये हमारे पास पानी नहीं रहता। क्या ऐसे में हम शहर के नालों से निकलने वाले पानी का संचय कर इसका उपयोग इन पौधों के लिये नहीं कर सकते?। आज विकास के नाम पर पूरे छत्तीसगढ़ में हमने छोटी- छोटी सड़कों का भी डामरीकरण और सीमेंटीकरण कर दिया। गांव के हरे- भरे खेतों में कांक्रीट के पेड़ बिछा दिये गये लेकिन इस बात का ध्यान नहीं रखा गया कि इससे धरती के भीतर पानी जाने के रास्ते बंद हो जायेंगे। अंधाधुन्ध पेड़ों की कटाई के बाद उनके स्थान पर नये पौधे नहीं लगाये गये। सड़कें जहां दोनों तरफ हरी- भरी दिखती थी वह अब गर्मी के दिनों में मरूस्थल की तरह दिखाई देने लगे हैं। शहरों के प्रायरू ड्रेनेज या तो ब्लाक हैं या फिर उन्हें पक्का बना देने से जमीन के भीतर पानी नहीं जा रहा है। मौसम की बेरूखी से अषाढ़ के महीने में गर्मी पड़ रही है व खण्ड वर्षा हो रही है। ऐसे हालात में यह जरूरी है कि हम जितना पानी हो सकें उसका बचाव करें। चाहे यह वेस्ट पानी ही क्यों न हो। वेस्ट वाटर के साथ कचरे की समस्या भी गांव ,शहर सभी जगह है। कई जगह इसका उपयोग उर्जा पैदा करने व अन्य कामों में किया जाता है। रायपुर जैसे शहर में प्रतिदिन लाखों टन कचरा निकलता है। इसका फिलहाल कोई उपयोग नहीं है? यह यहां वहां बिखेर दिया जाता है। इसका उपयोग भी खाद बनाने व अन्य कामों के लिये किया जा सकता है-ऐसे कार्य के लिये जो आगे आयें उन्हें मदद देने में भी कोई कोर कसर नहीं छोडऩी चाहिये।
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