अडियल कृषि मंत्री
रायपुर,शुक्रवार दिनांक 20 अगस्त 2010
अडियल कृषि मंत्री
मर जायेंगे, मिट जायेंगे मगर अपनी ज़मीन खाली नहीं करेंगे -यह अब तक सुनते आ रहे हैं लेकिन अब सरकार की तरफ से जो कहा जा रहा है वह है-गोदामों में पड़ा अनाज भले ही सड़ जायें और गरीब मर जा ये, फिर भी हम उसे फ्री में नहीं बांटेंगे। भारत की सर्वाेच्च न्यायालय द्वारा देश के गोदामों में खचाखच भरे अनाज को ग़रीबों में मुफ्त बांटने के निर्देश के बाद केन्द्रीय कृषि मंत्री शरद पवार का यह बयान आया है। माननीय पवार जी सुप्रीम कोर्ट के निर्देश को सरकार के लिये कोई आदेश नहीं मानते और कहते हैं कि अनाज गोदामों में पड़ा- पड़ा सड़ जा ये, मगर सरकार इसे मुफ्त में नहीं बांटेगी। केन्द्र के गोदामों में 608.79 लाख टन अनाज इस समय ठूंस ठूंस कर भरा हुआ है, इसमें से कुछ तो सडऩे भी लगा है। सरकार को इमर्जेंसी के लिये एक जुलाई तक केन्द्रीय पूल में 269 लाख टन अनाज होना चाहिये था। ऊपर दिखाये गये आंकड़े यह स्पष्ट बताते हैं कि इतना अनाज भरकर रख लिया गया है कि वह मुफ्त में बाँटा जा ये तो भी लेने वाले कम पड़ सकते हैं । फिर यह अनाज ग़रीबों और मध्यमवर्ग के लोगों को मुफत नहीं तो कम से कम सस्ते में बांटने में क्या हर्ज है? अब तक यह संभावना थी कि देश के कई इलाकों में बारिश नहीं होने या बाढ़ की स्थिति के कारण अनाज का संकट पैदा हो सकता है, लेकिन अब यह दोनों ही स्थिति टल चुकी है। ऐसे में सरकार को इसे बांटने में क्या परेशानी है? सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर सरकार का यह तर्क भी सही है कि वह अंत्योदय योजना के तहत सोलह रूपये में गेहूं खरीदकर लोगों को दो रूपये किलो पर गेहूं मुहैया करा रही है। पी डीएस में भी सरकारी अनाज कम दाम में ही उपभोक्ताओं को सुलभ करा रही है, किंतु सवाल यहां यह उठता है कि जब अनाज गोदामों में क्षमता से ज्यादा भरा पड़ा है, तो उसे गोदामों में रख कर क्यों सड़ाया जा रहा है? उसे खुले बाजार में बेचने के लिये क्यों नहीं दिया जा रहा। प्रति साल बारिश के दौरान बाहर रखा लाखों टन अनाज सड़ जाता है। न केवल सड़ता है बल्कि चूहे, दीमक और अन्य कीड़े- मकोड़े बर्बाद कर देते हैं। सरकार इस मामले में क्यों संवेदनशील नहीं है कि यह अनाज ऐसी स्थिति में पहुंचने से पहले आम लोगों के लिये खुले बाजार में बांटने के लिये दे दें। इसमें सरकार का बहुत ज्यादा नुकसान नहीं होने वाला? जबकि गोदामों में खुले पड़े अनाज के पानी में भींग ने और चूहों तथा कीड़े-मकोडों के खाने और सरकार के कतिपय कर्मचारियों के भ्रष्टाचार से जो नुकसान होता है। वह ग़रीबों व मध्यम वर्ग को बांटने के लिये कथित रूप से होने वाले नुकसान से कई गुना ज्यादा है। सरकार को सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करते हुए गोदामों में क्षमता से ज्यादा भरा पड़ा अनाज तुरंत आम जनता के लिये बाजार में उतारना चाहिये जिससे मंहगाई से राहत मिलेगी। साथ ही एक संतुलन भी बना रहेगा। जितना अनाज सरकार बाहर निकाले उससे कई गुना ताज़ा अनाज वह गोदामों में भी तो भर सकती है। अनाज को गोदामों में भरकर सड़ाने का औचित्य क्या है?
अडियल कृषि मंत्री
मर जायेंगे, मिट जायेंगे मगर अपनी ज़मीन खाली नहीं करेंगे -यह अब तक सुनते आ रहे हैं लेकिन अब सरकार की तरफ से जो कहा जा रहा है वह है-गोदामों में पड़ा अनाज भले ही सड़ जायें और गरीब मर जा ये, फिर भी हम उसे फ्री में नहीं बांटेंगे। भारत की सर्वाेच्च न्यायालय द्वारा देश के गोदामों में खचाखच भरे अनाज को ग़रीबों में मुफ्त बांटने के निर्देश के बाद केन्द्रीय कृषि मंत्री शरद पवार का यह बयान आया है। माननीय पवार जी सुप्रीम कोर्ट के निर्देश को सरकार के लिये कोई आदेश नहीं मानते और कहते हैं कि अनाज गोदामों में पड़ा- पड़ा सड़ जा ये, मगर सरकार इसे मुफ्त में नहीं बांटेगी। केन्द्र के गोदामों में 608.79 लाख टन अनाज इस समय ठूंस ठूंस कर भरा हुआ है, इसमें से कुछ तो सडऩे भी लगा है। सरकार को इमर्जेंसी के लिये एक जुलाई तक केन्द्रीय पूल में 269 लाख टन अनाज होना चाहिये था। ऊपर दिखाये गये आंकड़े यह स्पष्ट बताते हैं कि इतना अनाज भरकर रख लिया गया है कि वह मुफ्त में बाँटा जा ये तो भी लेने वाले कम पड़ सकते हैं । फिर यह अनाज ग़रीबों और मध्यमवर्ग के लोगों को मुफत नहीं तो कम से कम सस्ते में बांटने में क्या हर्ज है? अब तक यह संभावना थी कि देश के कई इलाकों में बारिश नहीं होने या बाढ़ की स्थिति के कारण अनाज का संकट पैदा हो सकता है, लेकिन अब यह दोनों ही स्थिति टल चुकी है। ऐसे में सरकार को इसे बांटने में क्या परेशानी है? सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर सरकार का यह तर्क भी सही है कि वह अंत्योदय योजना के तहत सोलह रूपये में गेहूं खरीदकर लोगों को दो रूपये किलो पर गेहूं मुहैया करा रही है। पी डीएस में भी सरकारी अनाज कम दाम में ही उपभोक्ताओं को सुलभ करा रही है, किंतु सवाल यहां यह उठता है कि जब अनाज गोदामों में क्षमता से ज्यादा भरा पड़ा है, तो उसे गोदामों में रख कर क्यों सड़ाया जा रहा है? उसे खुले बाजार में बेचने के लिये क्यों नहीं दिया जा रहा। प्रति साल बारिश के दौरान बाहर रखा लाखों टन अनाज सड़ जाता है। न केवल सड़ता है बल्कि चूहे, दीमक और अन्य कीड़े- मकोड़े बर्बाद कर देते हैं। सरकार इस मामले में क्यों संवेदनशील नहीं है कि यह अनाज ऐसी स्थिति में पहुंचने से पहले आम लोगों के लिये खुले बाजार में बांटने के लिये दे दें। इसमें सरकार का बहुत ज्यादा नुकसान नहीं होने वाला? जबकि गोदामों में खुले पड़े अनाज के पानी में भींग ने और चूहों तथा कीड़े-मकोडों के खाने और सरकार के कतिपय कर्मचारियों के भ्रष्टाचार से जो नुकसान होता है। वह ग़रीबों व मध्यम वर्ग को बांटने के लिये कथित रूप से होने वाले नुकसान से कई गुना ज्यादा है। सरकार को सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करते हुए गोदामों में क्षमता से ज्यादा भरा पड़ा अनाज तुरंत आम जनता के लिये बाजार में उतारना चाहिये जिससे मंहगाई से राहत मिलेगी। साथ ही एक संतुलन भी बना रहेगा। जितना अनाज सरकार बाहर निकाले उससे कई गुना ताज़ा अनाज वह गोदामों में भी तो भर सकती है। अनाज को गोदामों में भरकर सड़ाने का औचित्य क्या है?
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें