कानूनी उलझन, पीडित को अपराधी
रायपुर दिनांक 5 अगस्त 2010
कानूनी उलझन, पीडित को अपराधी
की धमकी से कौन बचायें?
कानून उस स्थिति में क्या करें जब कोई मुलजिम किसी पीड़ित को हिरासत से वापस लौटने के बाद देख लेेने या जान से मार देने की धमकी देता है? हर आदमी के पीछे तो पुलिस लगाई नहीं जा सकती और हर आदमी को सुरक्षा प्रदान भी नहीं की जा सकती. ऐसे में पीड़ित क्या करें? अक्सर होता यह है कि लोग दादा किस्म के लोगों को गिरफतार तो करवा देते हैं किन्तु जब पुलिस उन्हें गिरफतार कर ले जाती है तो वे पुलिस के सामने ही चमकाते हुए कहते हैं -ठीक है अभी तूने मुझे पकड़वा दिया, कल छूटकर आने दे तब तुझे और तेरे सारे परिवार को देख लूंगा. यह देख लूंगा पूरे परिवार को ही दहशत में डाल देता है. उसे मानसिक रूप से इतनी प्रताडऩा मिलती है कि वह उसे सहन नहीं कर पाता. क्या यह सब हमारे कानून के लचीलेपन के कारण नहीं होता? देश भर में ऐसे बहुत से मामले सामने आये हैं जिसमे अपराधियों ने हिरासत में लेने अथवा गिरफतारी के तुरन्त बाद संबन्धित व्यक्ति को यह कहते हुए सुना है कि छूटकर आते ही तुझे देख लूंगा. कुछ ने अपनी इस कथनी को अंजाम भी दिया है। तत्काल पुलिस द्वारा इस संबन्ध में कोई कार्रवाई नहीं की जाती। यह हमारे कानून की खामी नहीं तो ओर क्या हो सकता है. अक्सर आम आदमी के साथ यही होता है. अगर हम किसी अपराधी को पकड़ाना चाहते हैं या अपनी बहादुरी दिखाना चाहते हैं तो हमारे सामने अपने व अपने परिवार की सुरक्षा का प्रशन सामने आ जाता है. अपराधी तो अपराधी है वह एक बार जेल जा चुका होता है दूसरी बार जाने में भी कोई डर उसे नहीं लगता. ऐसी परिस्थिति में वह किसी मोहल्ले में आकर जो भी दुरूसाहस करें क्या उसे सहन कर लिया जाये? या आम आदमी मोहल्ले में डंडे लेकर तैयार रहे कि-अगर वह बदला लेने आयेगा तो उसका मुंह तोड़ जवाब दिया जायेगा? समाज के साथ बड़ी दुविधाजनक स्थिति है. हमारे न्यायविदों को इस गंभीर प्रश्र का हल ढूंढना चाहिये. कानून साक्ष्य के आधार पर फैसला देता है. जब साक्ष्य न्यायालय में उपस्थित होता है तो उसके सामने कई किस्म के प्रलोभन व दहशत दोनों पैदा कर दिये जाते हैं. अपराधी को या तो न्यायालय से जमानत पर छोड़ दिया जाता है या ज्यादा से ज्यादा पन्द्रह दिन की हिरासत पर जेल भेज दिया जाता है. इस दौरान वह अपने वकील की मदद से छूटकर बाहर आ जाता है.ऐसे व्यक्ति के छूटकर बाहर आने का मतलब है पीड़ित परिवार की सिट्ड्ढटी बिट्ड्ढटी बंद हो जाना. कानून क्या करें? ऐसे मामले की बेबसता को दूर करने आज तक कोई प्रयास नहीं किये गये. ऐसे में होना यह चाहिये कि पीड़ितों को सुरक्षा देने के लिहाज से ऐसी व्यवस्था होनी चाहिये कि न्यायालय कथित अपराधी को यह आदेश दे कि उसे जमानत पर छोड़ा तो जा रहा है लेकिन अगर पीड़ित परिवार को खरोच भी आई या उसे मानसिक ठेस पहुंचाई गई अथवा उसके साथ कोई भी हादसा हुआ तो उसके लिये वह खुद जिम्मेदार रहेगा अर्थात उसकी व उसके परिवार की सुरक्षा की जिम्मेदारी उसकी रहेगी. ऐसे हालात में ही पीड़ित को सुरक्षा मिल सकेगी वरना अपराधी अपनी मनमर्जी चलाते रहेंगे और कोई प्रताड़ित किसी अपराधी को पकड़वाने सामने नहीं आयेगा.
कानूनी उलझन, पीडित को अपराधी
की धमकी से कौन बचायें?
कानून उस स्थिति में क्या करें जब कोई मुलजिम किसी पीड़ित को हिरासत से वापस लौटने के बाद देख लेेने या जान से मार देने की धमकी देता है? हर आदमी के पीछे तो पुलिस लगाई नहीं जा सकती और हर आदमी को सुरक्षा प्रदान भी नहीं की जा सकती. ऐसे में पीड़ित क्या करें? अक्सर होता यह है कि लोग दादा किस्म के लोगों को गिरफतार तो करवा देते हैं किन्तु जब पुलिस उन्हें गिरफतार कर ले जाती है तो वे पुलिस के सामने ही चमकाते हुए कहते हैं -ठीक है अभी तूने मुझे पकड़वा दिया, कल छूटकर आने दे तब तुझे और तेरे सारे परिवार को देख लूंगा. यह देख लूंगा पूरे परिवार को ही दहशत में डाल देता है. उसे मानसिक रूप से इतनी प्रताडऩा मिलती है कि वह उसे सहन नहीं कर पाता. क्या यह सब हमारे कानून के लचीलेपन के कारण नहीं होता? देश भर में ऐसे बहुत से मामले सामने आये हैं जिसमे अपराधियों ने हिरासत में लेने अथवा गिरफतारी के तुरन्त बाद संबन्धित व्यक्ति को यह कहते हुए सुना है कि छूटकर आते ही तुझे देख लूंगा. कुछ ने अपनी इस कथनी को अंजाम भी दिया है। तत्काल पुलिस द्वारा इस संबन्ध में कोई कार्रवाई नहीं की जाती। यह हमारे कानून की खामी नहीं तो ओर क्या हो सकता है. अक्सर आम आदमी के साथ यही होता है. अगर हम किसी अपराधी को पकड़ाना चाहते हैं या अपनी बहादुरी दिखाना चाहते हैं तो हमारे सामने अपने व अपने परिवार की सुरक्षा का प्रशन सामने आ जाता है. अपराधी तो अपराधी है वह एक बार जेल जा चुका होता है दूसरी बार जाने में भी कोई डर उसे नहीं लगता. ऐसी परिस्थिति में वह किसी मोहल्ले में आकर जो भी दुरूसाहस करें क्या उसे सहन कर लिया जाये? या आम आदमी मोहल्ले में डंडे लेकर तैयार रहे कि-अगर वह बदला लेने आयेगा तो उसका मुंह तोड़ जवाब दिया जायेगा? समाज के साथ बड़ी दुविधाजनक स्थिति है. हमारे न्यायविदों को इस गंभीर प्रश्र का हल ढूंढना चाहिये. कानून साक्ष्य के आधार पर फैसला देता है. जब साक्ष्य न्यायालय में उपस्थित होता है तो उसके सामने कई किस्म के प्रलोभन व दहशत दोनों पैदा कर दिये जाते हैं. अपराधी को या तो न्यायालय से जमानत पर छोड़ दिया जाता है या ज्यादा से ज्यादा पन्द्रह दिन की हिरासत पर जेल भेज दिया जाता है. इस दौरान वह अपने वकील की मदद से छूटकर बाहर आ जाता है.ऐसे व्यक्ति के छूटकर बाहर आने का मतलब है पीड़ित परिवार की सिट्ड्ढटी बिट्ड्ढटी बंद हो जाना. कानून क्या करें? ऐसे मामले की बेबसता को दूर करने आज तक कोई प्रयास नहीं किये गये. ऐसे में होना यह चाहिये कि पीड़ितों को सुरक्षा देने के लिहाज से ऐसी व्यवस्था होनी चाहिये कि न्यायालय कथित अपराधी को यह आदेश दे कि उसे जमानत पर छोड़ा तो जा रहा है लेकिन अगर पीड़ित परिवार को खरोच भी आई या उसे मानसिक ठेस पहुंचाई गई अथवा उसके साथ कोई भी हादसा हुआ तो उसके लिये वह खुद जिम्मेदार रहेगा अर्थात उसकी व उसके परिवार की सुरक्षा की जिम्मेदारी उसकी रहेगी. ऐसे हालात में ही पीड़ित को सुरक्षा मिल सकेगी वरना अपराधी अपनी मनमर्जी चलाते रहेंगे और कोई प्रताड़ित किसी अपराधी को पकड़वाने सामने नहीं आयेगा.
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