सजा-ए मौत
शुक्रवार दिनांक 7 मई 2010
सजा-ए मौत
फांसी पर लटकाना भी
तो इतना आसान नहीं
जहां तक हमारी जानकारी है देश में आखिरी फांसी कोलकत्ता में धनजंय को लगी थी जिसपर एक युवती से बलात्कार के बाद उसकी हत्या का आरोप था। उसे फांसी देने के लिये जल्लाद को बामुश्किल तैयार किया गया तत्श्चात उसने ऐलान कर दिया कि यह उसकी आखिरी फांसी है इसके बाद वह किसी को फांसी नहीं देगा। ऐसा नहंीं कि धनंजय की फांसी के बाद देश में अदालतों ने भी फांसी का निर्णय देना बंद कर दिया। 2009 दिसंबर को लोकसभा में गृह राज्य मंत्री मुल्लापल्ली रामचंन्द्रन द्वारा दी गई सूचना के अनुसार पूरे देश में 31 दिसंबर 2007 तक तीन सौ आठ लोग अदालतों से क्लियरेंस पाकर फंदे का इंताजार कर रहे थे। अब तक यह संख्या और बढ़ गई हो सकती है चूंकि इस अवधि में कई दोषियों को फांसी की सजा सुनाई जा चुकी है। हम यह बात हाल ही कसाब को दी गई फांसी के संदर्भ मेें बता रहे हैं। हालाकि मुम्बई के इस आंतकवादी को विशेष अदालत ने फांसी की सजा सुना दी है औैर लोग खुश भी हो रहे हैं कि इस दरिन्दे को फंासी की सजा हुई मगर फांसी की लम्बी सूची देखकर हम कह सकते हैं कि कसाब को इतनी आसानी से और जल्दी फांसी संभव नहीं है। अभी उसने यदि इस फैसले के खिलाफ अपील की तो हाईकोर्ट में मुकदमा जायेगा। हाईकोर्ट में अगर वह नहीं जाता तो उस स्थिति में भी मुम्बई हाईकोर्ट से विशेष अदालत के निर्णय पर ठप्पा लगावाना जरूरी होगा। हाईकोर्ट की मुहर के बाद कसाब इस फैसले के खिलाफ सूुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है। यहां से भी उसकी फांसी बरकरार रही तो वह राष्ट्रपति के पास मर्सी पेटीशन दायर कर सकता है। इस समय राष्ट्रपति के पास करीब 52 लोगों की क्षमा याचिका विचारार्थ पड़ी हुई हैं। यदि वह क्षमा याचिका दायर करता है तो संसद पर हमले पर फ ंांसी की सजा भुगत रहे अफजल गुरू की तरह कतार में लग जायेगा जिसका नम्बर अभी सत्ताईस है। वर्तमान में देश की सर्वाेच्च न्यायालय में कम से कम दो सौ छप्पन मामले ऐसे हैं जिनकों निचली अदालतो के फै सले के समर्थन का इंतजार है। इसमें अंडर वल्ड डान टाइगर मेनन का भाई याकूब मेनन भी है जिसें सन् 2006 में आंतकवाद निरोधी विशेष अदालत ने सजाए मौत की सजा सुनाई थी। राष्ट्रपति से क्षमादान नहीं मिलने वाले फांसी पर कब लटकाये जायेंगे इसका कोई जवाब नहीं है लेकिन अब तक ऐसा कोई मामला आया भी नहीं। गृह मंत्रालय का कहना है कि उसने याचिकाओं को गृृह मंत्री के पास भेज दिय है जबकि दूसरा पहलू यह भी है कि फांसी के लिये अभी जल्लाद का भी अकाल पड़ा हुआ है। ऐसे में फंासी की सजा पाए लोगों को बंदूक की गोली से भी तो मौत के घाट उतारा जा सकता है। कुछ भी हो ऐसे लोगों का त्वरित निपटारा ही पीड़ितों के प्रति सच्चा न्याय होगा।
सजा-ए मौत
फांसी पर लटकाना भी
तो इतना आसान नहीं
जहां तक हमारी जानकारी है देश में आखिरी फांसी कोलकत्ता में धनजंय को लगी थी जिसपर एक युवती से बलात्कार के बाद उसकी हत्या का आरोप था। उसे फांसी देने के लिये जल्लाद को बामुश्किल तैयार किया गया तत्श्चात उसने ऐलान कर दिया कि यह उसकी आखिरी फांसी है इसके बाद वह किसी को फांसी नहीं देगा। ऐसा नहंीं कि धनंजय की फांसी के बाद देश में अदालतों ने भी फांसी का निर्णय देना बंद कर दिया। 2009 दिसंबर को लोकसभा में गृह राज्य मंत्री मुल्लापल्ली रामचंन्द्रन द्वारा दी गई सूचना के अनुसार पूरे देश में 31 दिसंबर 2007 तक तीन सौ आठ लोग अदालतों से क्लियरेंस पाकर फंदे का इंताजार कर रहे थे। अब तक यह संख्या और बढ़ गई हो सकती है चूंकि इस अवधि में कई दोषियों को फांसी की सजा सुनाई जा चुकी है। हम यह बात हाल ही कसाब को दी गई फांसी के संदर्भ मेें बता रहे हैं। हालाकि मुम्बई के इस आंतकवादी को विशेष अदालत ने फांसी की सजा सुना दी है औैर लोग खुश भी हो रहे हैं कि इस दरिन्दे को फंासी की सजा हुई मगर फांसी की लम्बी सूची देखकर हम कह सकते हैं कि कसाब को इतनी आसानी से और जल्दी फांसी संभव नहीं है। अभी उसने यदि इस फैसले के खिलाफ अपील की तो हाईकोर्ट में मुकदमा जायेगा। हाईकोर्ट में अगर वह नहीं जाता तो उस स्थिति में भी मुम्बई हाईकोर्ट से विशेष अदालत के निर्णय पर ठप्पा लगावाना जरूरी होगा। हाईकोर्ट की मुहर के बाद कसाब इस फैसले के खिलाफ सूुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है। यहां से भी उसकी फांसी बरकरार रही तो वह राष्ट्रपति के पास मर्सी पेटीशन दायर कर सकता है। इस समय राष्ट्रपति के पास करीब 52 लोगों की क्षमा याचिका विचारार्थ पड़ी हुई हैं। यदि वह क्षमा याचिका दायर करता है तो संसद पर हमले पर फ ंांसी की सजा भुगत रहे अफजल गुरू की तरह कतार में लग जायेगा जिसका नम्बर अभी सत्ताईस है। वर्तमान में देश की सर्वाेच्च न्यायालय में कम से कम दो सौ छप्पन मामले ऐसे हैं जिनकों निचली अदालतो के फै सले के समर्थन का इंतजार है। इसमें अंडर वल्ड डान टाइगर मेनन का भाई याकूब मेनन भी है जिसें सन् 2006 में आंतकवाद निरोधी विशेष अदालत ने सजाए मौत की सजा सुनाई थी। राष्ट्रपति से क्षमादान नहीं मिलने वाले फांसी पर कब लटकाये जायेंगे इसका कोई जवाब नहीं है लेकिन अब तक ऐसा कोई मामला आया भी नहीं। गृह मंत्रालय का कहना है कि उसने याचिकाओं को गृृह मंत्री के पास भेज दिय है जबकि दूसरा पहलू यह भी है कि फांसी के लिये अभी जल्लाद का भी अकाल पड़ा हुआ है। ऐसे में फंासी की सजा पाए लोगों को बंदूक की गोली से भी तो मौत के घाट उतारा जा सकता है। कुछ भी हो ऐसे लोगों का त्वरित निपटारा ही पीड़ितों के प्रति सच्चा न्याय होगा।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें