छत्तीसगढ़ में क्रिमिनल्स की बाढ़
रायपुर,सोमवार दिनांक 30 अगस्त 2010
छत्तीसगढ़ में क्रिमिनल्स की
बाढ़, किसने प्रोत्साहन दिया?
नोएडा में आरूषी-हेमराज हत्याकांड के बाद जितने भी संदिग्ध हिरासत में लिये गये थ,े उनमें से अधिकांश नेपाल के नागरिक थे। इस हत्याकांड का खुलासा आज तक नहीं हुआ। रायपुर में शनिवार को डीआरसीएल लाजेस्टिक लिमिटेड में सात लाख इकसठ हजार की चोरी मामले में जिन लोगों को पकड़ा गया है, वे सभी नेपाली नागरिक हैं तथा यहां विभिन्न मोहल्लों में अपने आप ही अपाइंट होकर चौकीदारी कर रहे थे। इसमें जो प्रमुख आरोपी है वही मात्र ट्रांसपोर्ट कं पनी से संलग्न रहा हैं। इस कांड के बाद विदेशी नागरिकों व बाहरी राज्यों से आकर यहां बसने वाले कतिपय लोगों की गतिविधियां फिर संदेह के दायरे में आ गई है। असल में यह पूरा किस्सा लोगो की लापरवाही व पुलिस की ऐसे लोगो के प्रति निष्क्रियता का ही परिणाम है, जिसके चलते इनके हौसले बुलंदी पर हैं। हमको अति विश्वास है कि यह विदेशी नागरिक अपनी खुखरी और डंडे के बल पर सी टी बजाकर हमारी सुरक्षा करने का दायित्व बखूबी निभाते हैं मगर असलियत क्या यही है? मैं अपने इन्हीं कालमों में कई बार यह प्रश्न उठाता आया हूं कि कालोनियों में अचानक प्रकट होने वाले चौकीदार क्यों नहीं पुलिस की निगरानी में आते? प्राय: हर कालोनी में एक दो महीने की आड़ में एक नया नेपाली चौकीदार उस क्षेत्र के निवासियों की गेट के सामने पैसे मांगते हुए दिखाई देता है। जिसे कालोनी के लोग जानते तक नहीं फिर भी लोग उससे यह तक नहीं पूछते कि उसके पास कोई पुलिस वेरीफिकेशन सर्टिफ़िकेट या आइडेंटी कार्ड है कि नहीं? उसे पैसे दे दिया जाता है। मुश्किल से दस बीस रूपये हर माह वह कालोनी के एक घर से वसूल करता है। इससे उसका घर या परिवार जो भी है जहां भी रहता है कैसे चलता होगा? इसका अंदाज़ लगाया जा सकता है। पुलिस कहीं भी चोरी होती है या डकैती पड़ती है तो सबसे पहले कालोनी के इस अनधिकृत चौकीदार को ढूंढती है। वह जो बताता है उससे संतुष्टि कर आगे की कार्रवाई की जाती है लेकिन अब तक पुलिस ने ऐसे अनधिकृत लोगों के बारे में कोई संज्ञान क्यों नहीं लिया? यह अपने आप में रहस्य पूर्ण है। रायपुर की हर कालोनी में वर्षो से ऐसे लोग आते जाते हैं और चौकीदार बनकर रहते तथा कुछ दिन बाद चले जाते हैं। मगर पुलिस ने कभी इन लोगों से यह नहीं कहा कि वे पुलिस थाने में आकर अपनी आमद दे तथा अपना आइडेंटी कार्ड या अथारटी लेटर लें-क्या डीएआर सीएल में चोरी के पीछे यही कारण तो नहीं है? यह तत्व इतने घातक हथियार अपने साथ रखे हुए थे जिसे लेकर वे किसी की हत्या करने से भी नहीं चूकते। पुलिस जांच में भी यह बात सामने आई है। चोरी या हत्या के तत्काल बाद यह नेपाल भाग जाते तो पुलिस हाथ ग़लती रह जाती। पुलिस को अब भी चेत जाना चाहिये-हाल ही उसने हर थाने में यह पता लगाने का प्रयास किया है कि उसके थाना क्षेत्र में कितने पत्रकार रहते हैं और वे क्या करते हैं। बाहर से आकर रहने वालों की बनिस्बत क्या पुलिस को पत्रकारों से खतरा महसूस हो रहा है? जो लोग यहां वर्षो से मीडिया काम में लगे हैं उनको संदेह के नज़रिये से क्यों देखा गया? पुलिस को चाहिये कि वह बुद्विजीवियों के पीछे पढने की जगह ऐसे लोगों का पता लगा ये जो वास्तव में क्राइम कर रहे हैं। अकेले नेपाली ही नहीं राजधानी रायपुर सहित छत्तीसगढ़ के अधिकांश शहरों में ट्रकों,बसों और ट्रेनों के माध्यम से काफी संख्या में अपराधी आकर पनाह ले रहे हैं। इसके अलावा हवाई जहाज़ से भी हाई प्रो फाइल सफ़ेदपोश अपराधियों का आना- जाना जारी है। जब तक पु्रलिस इन सब पर सख्त नहीं होगी, उसे ऐसे कई अपराध और अपराधियों से सामना करना होगा।
छत्तीसगढ़ में क्रिमिनल्स की
बाढ़, किसने प्रोत्साहन दिया?
नोएडा में आरूषी-हेमराज हत्याकांड के बाद जितने भी संदिग्ध हिरासत में लिये गये थ,े उनमें से अधिकांश नेपाल के नागरिक थे। इस हत्याकांड का खुलासा आज तक नहीं हुआ। रायपुर में शनिवार को डीआरसीएल लाजेस्टिक लिमिटेड में सात लाख इकसठ हजार की चोरी मामले में जिन लोगों को पकड़ा गया है, वे सभी नेपाली नागरिक हैं तथा यहां विभिन्न मोहल्लों में अपने आप ही अपाइंट होकर चौकीदारी कर रहे थे। इसमें जो प्रमुख आरोपी है वही मात्र ट्रांसपोर्ट कं पनी से संलग्न रहा हैं। इस कांड के बाद विदेशी नागरिकों व बाहरी राज्यों से आकर यहां बसने वाले कतिपय लोगों की गतिविधियां फिर संदेह के दायरे में आ गई है। असल में यह पूरा किस्सा लोगो की लापरवाही व पुलिस की ऐसे लोगो के प्रति निष्क्रियता का ही परिणाम है, जिसके चलते इनके हौसले बुलंदी पर हैं। हमको अति विश्वास है कि यह विदेशी नागरिक अपनी खुखरी और डंडे के बल पर सी टी बजाकर हमारी सुरक्षा करने का दायित्व बखूबी निभाते हैं मगर असलियत क्या यही है? मैं अपने इन्हीं कालमों में कई बार यह प्रश्न उठाता आया हूं कि कालोनियों में अचानक प्रकट होने वाले चौकीदार क्यों नहीं पुलिस की निगरानी में आते? प्राय: हर कालोनी में एक दो महीने की आड़ में एक नया नेपाली चौकीदार उस क्षेत्र के निवासियों की गेट के सामने पैसे मांगते हुए दिखाई देता है। जिसे कालोनी के लोग जानते तक नहीं फिर भी लोग उससे यह तक नहीं पूछते कि उसके पास कोई पुलिस वेरीफिकेशन सर्टिफ़िकेट या आइडेंटी कार्ड है कि नहीं? उसे पैसे दे दिया जाता है। मुश्किल से दस बीस रूपये हर माह वह कालोनी के एक घर से वसूल करता है। इससे उसका घर या परिवार जो भी है जहां भी रहता है कैसे चलता होगा? इसका अंदाज़ लगाया जा सकता है। पुलिस कहीं भी चोरी होती है या डकैती पड़ती है तो सबसे पहले कालोनी के इस अनधिकृत चौकीदार को ढूंढती है। वह जो बताता है उससे संतुष्टि कर आगे की कार्रवाई की जाती है लेकिन अब तक पुलिस ने ऐसे अनधिकृत लोगों के बारे में कोई संज्ञान क्यों नहीं लिया? यह अपने आप में रहस्य पूर्ण है। रायपुर की हर कालोनी में वर्षो से ऐसे लोग आते जाते हैं और चौकीदार बनकर रहते तथा कुछ दिन बाद चले जाते हैं। मगर पुलिस ने कभी इन लोगों से यह नहीं कहा कि वे पुलिस थाने में आकर अपनी आमद दे तथा अपना आइडेंटी कार्ड या अथारटी लेटर लें-क्या डीएआर सीएल में चोरी के पीछे यही कारण तो नहीं है? यह तत्व इतने घातक हथियार अपने साथ रखे हुए थे जिसे लेकर वे किसी की हत्या करने से भी नहीं चूकते। पुलिस जांच में भी यह बात सामने आई है। चोरी या हत्या के तत्काल बाद यह नेपाल भाग जाते तो पुलिस हाथ ग़लती रह जाती। पुलिस को अब भी चेत जाना चाहिये-हाल ही उसने हर थाने में यह पता लगाने का प्रयास किया है कि उसके थाना क्षेत्र में कितने पत्रकार रहते हैं और वे क्या करते हैं। बाहर से आकर रहने वालों की बनिस्बत क्या पुलिस को पत्रकारों से खतरा महसूस हो रहा है? जो लोग यहां वर्षो से मीडिया काम में लगे हैं उनको संदेह के नज़रिये से क्यों देखा गया? पुलिस को चाहिये कि वह बुद्विजीवियों के पीछे पढने की जगह ऐसे लोगों का पता लगा ये जो वास्तव में क्राइम कर रहे हैं। अकेले नेपाली ही नहीं राजधानी रायपुर सहित छत्तीसगढ़ के अधिकांश शहरों में ट्रकों,बसों और ट्रेनों के माध्यम से काफी संख्या में अपराधी आकर पनाह ले रहे हैं। इसके अलावा हवाई जहाज़ से भी हाई प्रो फाइल सफ़ेदपोश अपराधियों का आना- जाना जारी है। जब तक पु्रलिस इन सब पर सख्त नहीं होगी, उसे ऐसे कई अपराध और अपराधियों से सामना करना होगा।
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