नौ वर्षाे तक एम्स का सपना देख
रायपुर मंगलवार
दिनांक 13 जुलाई 2010
नौ वर्षाे तक एम्स का सपना देख
कई लोग दुनिया से ही चले गये !
क्या कहें सरकारी योजनाओं पर! जिसे शुरू होने में ही नौ साल लग जाते हैं, उन्हें बनाने में कितना समय लगता होगा, इसका अंदाज लगाया जा सकता है। आज से नौ साल पहले केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री सुषमा स्वराज की पहल पर रायुपर के टाटीबंद में एम्स निर्माण की नींव रखी थी। तत्कालीन राज्य सरकार ने इसके लिये भूमि और अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराने में कोई कसर नहीं छोड़ी। भूमि आंवटन और अन्य सारी प्रक्रियाओं को राज्य ने प्राथमिकता से पूरा किया। कबीर नगर में डाक्टरों के रहने की व्यवस्था भी की। टीबी अस्पताल को वर्तमान स्थल से शिफट कर पंडरी ले जाया गया लेकिन केन्द्र की एम्स स्थापना की पहल को एक तरह से फाइलों के नीचे दबा दिया। हर बजट में इसके लिये नाम मात्र का प्रावधान किया जाता रहा ताकि जनता को लगे कि कुछ तो हो रहा है। अस्पताल निर्माण में हो रही देरी के परिप्रेक्ष्य में रायपुर की जनता ने के न्द्र पर दबाव भी बनाया। रायपुर के चिकित्सकों ने भी इस मामले में आवाज उठाई किन्तु केन्द्र से कोई रिस्पांस नहीं आया। केन्द्र में तत्कालीन भाजपा सरकार ने रायपुर के साथ कम से कम अन्य छह शहरों में एम्स स्थापना की घोषणा की थी। उनका क्या हश्र है यह तो नहीं पता लेकिन कुछ की स्थिति ऐसी है, यह सबको पता है। अब नौ साल बाद केन्द्र ने रायपुर में एम्स निर्माण के लिये वर्क आर्डर जारी किया है और इस पर काम शुरू हुआ है। यह पहले चरण का काम है जिसमें कालेज काम्पलेक्स , हास्टल आदि का निर्माण शामिल है।
जबकि दूसरे चरण में अस्पताल भवन, रिसर्च संस्थान और अन्य भवनों का निर्माण शुरू होगा। पहले चरण में 150 करोड़ और दूसरे चरण में 250 करोड़ रूपये का खर्चा आयेगा। पहला चरण खत्म होने के बाद ही दूसरे चरण के लिये वर्क आर्डर मिलेगा। इससे इस योजना को पूरा होने में और वक्त लगने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता लेकिन पहला चरण शुरू हो जाने से यह आशा तो बंध गई है, कि अब काम लगातार चलेगा और काम अपने निर्धारित समय पर पूरा हो जायेगा। जनहित के इस काम को शुरू करने में सरकार की भूमिका एक तरह से राजनीतिक रही है। सरकार इस योजना को शुरू करने में शायद इसलिये लगातार देरी करती रही चूंकि इस योजना को भाजपा ने शुरू कराया। केन्द्र सरकार भाजपा को यह श्रेय देना नहीं चाहती थी। आम लोगों की इस मामले में यही धारणा है कि संपूर्ण मामले को राजनीतिक चश्मे से देखने के कारण ही एम्स निर्माण कार्य शुरू करने में इतनी देरी हुई और ज्यादा विलम्ब होता तो शायद एम्स निर्माण की लागत वर्तमान लागत से दो गुनी हो जाती। केन्द्र में बनने वाली सरकारों को जनहित के कार्याे को राजनीतिक नजरिये से देखने की जगह उसे जनहित की दृष्टि से देखना चाहिये तभी वह जनता की आशाओं पर खरा उतर सकती है। रायपुर में एम्स स्थापना को अपनी आंखों से देखने की आस लेकर कितने ही लोग इन नौ वर्षाे में दुनियां से आंख मूंद कर चले गये। यह सिर्फ इसलिये हुआ चूंकि सरकार ने इसके निर्माण में व्यापक देरी कर दी!
दिनांक 13 जुलाई 2010
नौ वर्षाे तक एम्स का सपना देख
कई लोग दुनिया से ही चले गये !
क्या कहें सरकारी योजनाओं पर! जिसे शुरू होने में ही नौ साल लग जाते हैं, उन्हें बनाने में कितना समय लगता होगा, इसका अंदाज लगाया जा सकता है। आज से नौ साल पहले केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री सुषमा स्वराज की पहल पर रायुपर के टाटीबंद में एम्स निर्माण की नींव रखी थी। तत्कालीन राज्य सरकार ने इसके लिये भूमि और अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराने में कोई कसर नहीं छोड़ी। भूमि आंवटन और अन्य सारी प्रक्रियाओं को राज्य ने प्राथमिकता से पूरा किया। कबीर नगर में डाक्टरों के रहने की व्यवस्था भी की। टीबी अस्पताल को वर्तमान स्थल से शिफट कर पंडरी ले जाया गया लेकिन केन्द्र की एम्स स्थापना की पहल को एक तरह से फाइलों के नीचे दबा दिया। हर बजट में इसके लिये नाम मात्र का प्रावधान किया जाता रहा ताकि जनता को लगे कि कुछ तो हो रहा है। अस्पताल निर्माण में हो रही देरी के परिप्रेक्ष्य में रायपुर की जनता ने के न्द्र पर दबाव भी बनाया। रायपुर के चिकित्सकों ने भी इस मामले में आवाज उठाई किन्तु केन्द्र से कोई रिस्पांस नहीं आया। केन्द्र में तत्कालीन भाजपा सरकार ने रायपुर के साथ कम से कम अन्य छह शहरों में एम्स स्थापना की घोषणा की थी। उनका क्या हश्र है यह तो नहीं पता लेकिन कुछ की स्थिति ऐसी है, यह सबको पता है। अब नौ साल बाद केन्द्र ने रायपुर में एम्स निर्माण के लिये वर्क आर्डर जारी किया है और इस पर काम शुरू हुआ है। यह पहले चरण का काम है जिसमें कालेज काम्पलेक्स , हास्टल आदि का निर्माण शामिल है।
जबकि दूसरे चरण में अस्पताल भवन, रिसर्च संस्थान और अन्य भवनों का निर्माण शुरू होगा। पहले चरण में 150 करोड़ और दूसरे चरण में 250 करोड़ रूपये का खर्चा आयेगा। पहला चरण खत्म होने के बाद ही दूसरे चरण के लिये वर्क आर्डर मिलेगा। इससे इस योजना को पूरा होने में और वक्त लगने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता लेकिन पहला चरण शुरू हो जाने से यह आशा तो बंध गई है, कि अब काम लगातार चलेगा और काम अपने निर्धारित समय पर पूरा हो जायेगा। जनहित के इस काम को शुरू करने में सरकार की भूमिका एक तरह से राजनीतिक रही है। सरकार इस योजना को शुरू करने में शायद इसलिये लगातार देरी करती रही चूंकि इस योजना को भाजपा ने शुरू कराया। केन्द्र सरकार भाजपा को यह श्रेय देना नहीं चाहती थी। आम लोगों की इस मामले में यही धारणा है कि संपूर्ण मामले को राजनीतिक चश्मे से देखने के कारण ही एम्स निर्माण कार्य शुरू करने में इतनी देरी हुई और ज्यादा विलम्ब होता तो शायद एम्स निर्माण की लागत वर्तमान लागत से दो गुनी हो जाती। केन्द्र में बनने वाली सरकारों को जनहित के कार्याे को राजनीतिक नजरिये से देखने की जगह उसे जनहित की दृष्टि से देखना चाहिये तभी वह जनता की आशाओं पर खरा उतर सकती है। रायपुर में एम्स स्थापना को अपनी आंखों से देखने की आस लेकर कितने ही लोग इन नौ वर्षाे में दुनियां से आंख मूंद कर चले गये। यह सिर्फ इसलिये हुआ चूंकि सरकार ने इसके निर्माण में व्यापक देरी कर दी!
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