सीबीआई के पर कटे!
रायपुर दिनांक 10 अगस्त 2010
सीबीआई के पर कटे!
कुछ दिन पहले ही प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने यह कहा था कि सीबीआई को कांग्रेस जांच ब्यूरो न समझा जा ये। यह बयान उन्होंने अमित शाह मामले में सीबीआई के कथित दुरुपयोग के आरोप के बाद कहा था । इस बयान को अभी कुछ ही समय बीता होगा कि सरकार ने सीबीआई के संबंध में एक अहम निर्णय लेकर सभी को चैका दिया। सरकार ने निर्णय लिया है कि सीबीआई से दो महत्वपूर्ण अधिकार छीन लिये जायें। इसमें एक आतंकवादियों को आर्थिक मदद और दूसरा देश में जाली नोटों की सप्लाई का मामला है। इन दोनों ही मामलों मे सीबीआई को कोई सफलता हाथ नहीं लगी। इन मामलों की जांच का काम अब गृह मंत्रालय से सबंन्ध राष्ट्रीय जांच एजेंसी एनआईए को सौंपा गया है। इससे यह बात साबित हो रही हैं कि सरकार की नजर मे अब सीबीआई से बेहतर काम एनआईए कर रही है। आतंकवादियों को आर्थिक मदद का मामला जटिल है यह काम सीबीआई जैसी एजेंसी ही कर सकती थी लेकिन सीबीआई ने न इस काम कों पूरा किया बल्कि जाली नोटों की जांच का मामला भी सुस्त रहा। क्या हमारी यह एजेंसी अब इतनी सुस्त व निकम्मी हो गई है कि देश की आंतरिक सुरक्षा जैसे मामलो में भी पिछड़ गई। सीबीआई के पतन की शुरूआत बहुत पहले से हो गई थी जब क्राइम के मामले में भी उसे एक के बाद एक असफलता ही हाथ लगने लगी थी। देश के सर्वाधिक चर्चित नोयडा के आरूषि हत्याकांड का पर्दाफ़ाश करने में वह अब तक नाकाम साबित हुई। कुछ नहीं तो उसे विदेशी जांच एजेसिंयों से मदद की दर कार पड़ी। सरकार ने नकली नोटों के कारोबार का भांडा फोडने का दायित्व यह सोचकर दिया था कि वह निकट भविष्य में इसका बहुत बड़ा खुलासा करेगी लेकिन सीबीआई अपने गरूर के आगे कुछ नहीं कर सकी। दूसरी तरफ देश में आतंकवादियों को आर्थिक मदद पहुंचाने वाले तत्वों की खोजबीन के मामले में भी लम्बे समय तक विफलता ने सरकार को भी शायद यह एहसास दिला दिया कि यह एजेंसी अब नकारा साबित होने लगी है। एनआईए को नया दायित्व सौंपने के बाद अब यह देखना है कि यह इस जांच के मामले में कितना कारगर साबित होती है अगर उसे सफलता मिलती है तो आगे चलकर यह देश की नम्बर वन जांच एजेसीं बनने के करीब पहुंच सकती है वैसे भी देश में एक ऐसी जांच एजेंसी की जरूरत है जो भारत के राष्ट्रपति या मुख्य न्यायाधीश के प्रति जिम्मेदार हो और निष्पक्ष तरीके से सभी किस्म के मामलों की जांच कर निष्कर्ष तक पहुंचे।
सीबीआई के पर कटे!
कुछ दिन पहले ही प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने यह कहा था कि सीबीआई को कांग्रेस जांच ब्यूरो न समझा जा ये। यह बयान उन्होंने अमित शाह मामले में सीबीआई के कथित दुरुपयोग के आरोप के बाद कहा था । इस बयान को अभी कुछ ही समय बीता होगा कि सरकार ने सीबीआई के संबंध में एक अहम निर्णय लेकर सभी को चैका दिया। सरकार ने निर्णय लिया है कि सीबीआई से दो महत्वपूर्ण अधिकार छीन लिये जायें। इसमें एक आतंकवादियों को आर्थिक मदद और दूसरा देश में जाली नोटों की सप्लाई का मामला है। इन दोनों ही मामलों मे सीबीआई को कोई सफलता हाथ नहीं लगी। इन मामलों की जांच का काम अब गृह मंत्रालय से सबंन्ध राष्ट्रीय जांच एजेंसी एनआईए को सौंपा गया है। इससे यह बात साबित हो रही हैं कि सरकार की नजर मे अब सीबीआई से बेहतर काम एनआईए कर रही है। आतंकवादियों को आर्थिक मदद का मामला जटिल है यह काम सीबीआई जैसी एजेंसी ही कर सकती थी लेकिन सीबीआई ने न इस काम कों पूरा किया बल्कि जाली नोटों की जांच का मामला भी सुस्त रहा। क्या हमारी यह एजेंसी अब इतनी सुस्त व निकम्मी हो गई है कि देश की आंतरिक सुरक्षा जैसे मामलो में भी पिछड़ गई। सीबीआई के पतन की शुरूआत बहुत पहले से हो गई थी जब क्राइम के मामले में भी उसे एक के बाद एक असफलता ही हाथ लगने लगी थी। देश के सर्वाधिक चर्चित नोयडा के आरूषि हत्याकांड का पर्दाफ़ाश करने में वह अब तक नाकाम साबित हुई। कुछ नहीं तो उसे विदेशी जांच एजेसिंयों से मदद की दर कार पड़ी। सरकार ने नकली नोटों के कारोबार का भांडा फोडने का दायित्व यह सोचकर दिया था कि वह निकट भविष्य में इसका बहुत बड़ा खुलासा करेगी लेकिन सीबीआई अपने गरूर के आगे कुछ नहीं कर सकी। दूसरी तरफ देश में आतंकवादियों को आर्थिक मदद पहुंचाने वाले तत्वों की खोजबीन के मामले में भी लम्बे समय तक विफलता ने सरकार को भी शायद यह एहसास दिला दिया कि यह एजेंसी अब नकारा साबित होने लगी है। एनआईए को नया दायित्व सौंपने के बाद अब यह देखना है कि यह इस जांच के मामले में कितना कारगर साबित होती है अगर उसे सफलता मिलती है तो आगे चलकर यह देश की नम्बर वन जांच एजेसीं बनने के करीब पहुंच सकती है वैसे भी देश में एक ऐसी जांच एजेंसी की जरूरत है जो भारत के राष्ट्रपति या मुख्य न्यायाधीश के प्रति जिम्मेदार हो और निष्पक्ष तरीके से सभी किस्म के मामलों की जांच कर निष्कर्ष तक पहुंचे।
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