बैठक के बाद फिर बैठक लेकिन नतीजा शून्य
बैठक के बाद फिर बैठक लेकिन नतीजा शून्य
तारीख पर तारीख के बाद अब मीटिंग पर मीटिंग का दौर चल रहा है , सरकार और किसानों के बीच 8वें दौर की बातचीत में भी कोई नतीजा नहीं निकल पाया. दिल्ली के विज्ञान भवन में सोमवार को करीब 4 घंटे चली बैठक के बाद किसानों ने कहा कि हमने केंद्र के सामने कृषि कानूनों की वापसी की ही बात रखी. 30 दिसंबर को किसान संगठनों की केंद्र सरकार के साथ सातवें दौर की बैठक हुई थी. बैठक के बाद दोनों पक्षों की ओर से कहा गया था कि आधी बात बन गई है.किसानों ने अब साफ कह दिया है कि कानून वापसी नहीं तो घर वापसी भी नहीं. इधर, लगातार मीटिंगों में नतीजा न निकलने पर कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि ताली तो दोनों हाथ से बजती है, आठवें दौर की मीटिंग के बाद भी एमएसपी को कानूनी रूप देने के मुद्दे पर भी सहमति नहीं बन पाई, हालांकि, सरकार और किसान 8 जनवरी को फिर बातचीत करने पर राजी हो गए है अर्थात मीटिंग का दौर अब और भी चलेगा: कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ दिल्ली की सीमाओं पर किसानों का विरोध प्रदर्शन जारी है. सोमवार को हुई बैठक से पहले पंजाब के बड़े किसान संगठन भारतीय किसान यूनियन (उगराहां) (बीकेयू-यू) ने बीजेपी सरकार पर ज़िद्दी स्वभाव का आरोप लगाया था तथा कहा था कि कृषि क़ानूनों को रद्द करने को लेकर कोई रास्ता निकलने की बहुत कम उम्मीद है: उनके अनुसार “जिस तरह से सरकार में मौजूद नेता नए कृषि क़ानूनों के समर्थन में बयान दे रहे हैं और इसे किसानों के लिए फ़ायदेमंद बता रहे हैं तो हमे बातचीत से कोई सकारात्मक नतीजा आने की बहुत कम उम्मीद है. हमारा स्टैंड बिल्कुल साफ है- हम तीनों कृषि क़ानूनों को रद्द करने के अलावा न्यूनतम समर्थन मूल्य पर क़ानूनी गारंटी चाहते हैं. अगर हमारी मांगे नहीं मानी जाती हैं तो हम अपना विरोध प्रदर्शन अनिश्चितकाल तक जारी रखेंगे.” 30 दिसंबर को किसान संगठनों की केंद्र सरकार के साथ सातवें दौर की बैठक हुई थी. बैठक के बाद दोनों पक्षों की ओर से कहा गया था कि आधी बात बन गई है.पिछली बैठक में केंद्र सरकार ने बिजली क़ानून और पराली जलाने को लेकर जुर्माने के मामले में किसानों को आश्वासन दिया लेकिन किसान जब तक उनकी मुख्य मांग नहीं मानी जाती तब तक संघर्ष जारी रखने के प्रति संकल्पित हैं बल्कि आंदोलन को ओर तेज करने की बात कह रहे हें. ऐसे में सरकार के पास क्या रास्ता हो सकता है.अब आगे भी बात नहीं बनती है तो इस मामले में किसी न किसी को तो झुकना ही पडेगा. किसान मीटिंगों के बाद बार बार आंदोलन तेज करने की बात कह रहे हैं और सरकार है कि टस से मस नहीं हो रही हैं. पंजाब और हरियाणा में एपीएमसी के तहत मौजूदा मंडी सिस्टम बहुत अच्छी तरह काम कर रहा है तो सरकार को इसे और इसे चलते रहने में क्या यह हर्ज है किसान इसी बात पर डटे हैं और सरकार नये कानून लाने पर अडिग है: आगे आने वाले दिन महत्वपूर्ण रहेंगे: आंदोलन से लगता है किसान झुकने वाले नहीं है और सरकार के मंत्रियों के बयान से लगता है कि सरकार झुकने बिल्कुल तैयार नहीं है अब सीधे सीधे यह कानून से ज्यादा प्रतिष्ठा का प्रशन भी बनता जा रहा है: कांग्रेस की राष्टीय अध्यक्ष सोनिया गांधी के अनुसार देश की आजादी के बाद से पहली बार ऐसी अहंकारी सरकार सत्ता में आई है, जिसे अन्नदाताओं की पीड़ा दिखाई नहीं दे रही है साथ ही, उन्होंने नए कृषि कानूनों को बिना शर्त फौरन वापस लेने की मांग की जबकि किसान संगठनो का कहना है कि सरकार ये कहते हुए नए क़ानूनों को सही ठहरा रही है कि कई किसान संगठनों ने इसका समर्थन किया है लेकिन ये सिर्फ़ हमारे आंदोलन को कमज़ोर करने की कोशिश है. जो सगंठन कृषि क़ानूनों का समर्थन कर रहे हैं वो सिर्फ़ कागजों पर हैं. असल में उनका कोई वजूद नहीं. सरकार बस एक समानांतर मंच बनाकर मौजूदा विरोध प्रदर्शन को कमज़ोर करना चाहती है.
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