लंच में छिपकली, बच्चों की

लंच में छिपकली, बच्चों की
नीव इसी से रखी जा रही!
मानव मूल्यों का किस तेजी से पतन होता जा रहा है, इसका अंदाज मध्यप्रदेश के इन्दौर की उस घटना से लगाया जा सकता है जिसमें कुछ लोगों ने बच्चों के मध्याह्न भोजन में जहर मिलाकर मध्याह्न भोजन का ठेका अपने नाम करने का प्रयास किया। लोग पैसे के लिये कुछ भी करने से नहीं हिचकते। यह पैसा चाहे किसी से छीनकर कमाया जाये या गला काटकर। इस घटना का महत्वपूर्ण पहलू यह है कि इस पूूरे षडयंत्र में एक जनप्रतिनिधि भी शामिल था। इस घटना से एक बात यह भी स्पष्ट हो रही है कि इसका ठेका लेकर भी लोग मालामाल हो रहे हैं ओर बच्चों की जिंदगी से खिलवाड़ कर रहे हैं। इन्दौर की घटना में लिप्त लोगों पर पुलिस क्या कार्रवाई करती है, यह तो फिलहाल पता नहीं चला लेकिन मध्याह्न भोजन कार्यक्रम अब बच्चों के लिये खतरे की घंटी बनती जा रही है। हाल के दिनों में इस सबंन्ध में जो खबरंे आ रह हैं वह संपूर्ण सिस्टम की पोल खोल रहा है। छत्तीसगढ़ के विभिन्न क्षेत्रों से इस कार्यक्रम के बारे में जो खबरें मिली है, उसमें भी कम चैकाने वाले तथ्य नहीं थे। भोजन में इल्लियां और कीड़े मिलने की घटना तो मामूली है जबकि यहां कहीं छिपकली मिली है तो कही और भी विषैले जन्तु। कोरबा की खबर में कहा गया है कि यहां जो मध्याह्न भोजन तैयार किया जाता है। वह पशु चारे से भी बदतर है। बच्चों को परोसे जाने वाले खाने को कुत्ते व गाय भी सूंघकर आगे बढ़ जाते हैं। हम यह समझते थे कि छत्तीसगढ़ में ही ऐसा होता है लेकिन हाल के दिनों में बिहार की राजधानी पटना से मिली खबर में कहा गया कि वहां मध्याह्न भोजन में छिपकली की मिलावट होने से कम से कम दो सौ बच्चे बीमार पड़ गये। इन बच्चों को अस्पताल में भर्ती किया गया। ऐसा ही कुछ जयपुर में हुआ जहां दोपहर को बच्चों को खिलाये जाने वाले भोजन में छिपकली गिरने से सौ बच्चे बीमार पड़ गये। बच्चों के लिये बनने वाला भोजन किन हालातों में बनता है। इसका अंदाज भी इन दो घटनाओं से लगाया जा सकता है। अब यह बात समझ में नहीं आती कि सरकार बच्चों को पौष्टिक आहार खिलाने की जगह इस मिलावटी पदाथों पर ही क्यों बल देती है? सरकार अगर बच्चों व उसके परिवार की मदद करना चाहती है या उनके पढ़ाई के प्रति पूरी तरह गंभीर है। तो उसको चाहिये कि वह बच्चों को मध्याह्न भोजन के लिये जितनी राशि व्यय करती है। उतनी ही राशि का एक कोष कायम करें और वह राशि ऐसे बच्चों के नाम पर फिक्स डिपाजिट में जमा करें जो भविष्य में उनके काम आये। मध्याह्न भोजन का दूसरा विकल्प है कि यह काम किसी अच्छा खाना सप्लाई करने वाली एजेंसी को रेडीमेड पैक के रूप में देने का विकल्प खोजे। मध्याह्न भोजन कार्यक्रम भी अब घपले, घोटाले और लापरवाही की श्रेणी में शामिल हो गया। सरकार इस कार्यक्रम को चालू रखने के प्रति गंभीर है, तो उसे चाहिये कि वह इस कार्यक्रम पर गंभीरता दिखाये। वरना इन्दौर का षडय़ंत्र कई जगह चलाया जायेगा और सैकड़ों बच्चे इस षडय़ंत्र के शिकार हो जाये तो आश्चर्य नहीं। अभी मध्याह्न भोजन में भूल से छिपकली गिरती है लेकिन भविष्य में षडय़ंत्रकारी जहर की जगह दस छिपकलियों को मारकर खाने में मिला दे तो कोई क्या करेगा। इसे एक हादसा कहकर सब श्रद्वांजलि देंगे और सरकार पीड़ित परिवारों का मुआवजा देकर उनका मुंह बंद कर देगी।

टिप्पणियाँ

  1. हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
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