प्रकृति का कोप

रायपुर रविवार, दिनांक 8 अगस्त 2010
प्रकृति का कोप
हम अगर अपने सर पर ज्यादा बोझ ढोते हैं तो क्या होता है- या तो हमारी कमर झुक जायेगी या फिर हम बैठ जायेगें। इस सिद्वान्त से सभी परिचित है अब तक की वैज्ञानिक सोच की माने तो धरती के साथ भी कुछ ऐसा ही है जो एक धुरी पर टिकी हुई है। अगर यह धुरी टूट गई तो धरती का नामों निशान मिट जायेगा। अर्थ शास्त्र में माल्थस थ्योरी आफ पापुलेशन कुछ इसी सिद्वान्त पर आधारित है। जब जब धरती पर बोझ बढ़ता है वह ऐसी प्राकृतिक आपदाएं खड़ी कर देता है जिससे पृथ्वी का संतुलन बनाये रहे। मानव उस संतुलन को कायम करने के बारे में सोचता ही नहीं जबकि पृथ्वी को उसके अस्तित्व की ङ्क्षचता रहती है इसलिये वह कभी तूफान के रूप में तो कभी बाढ़ के रूप में तो कभी भूकंप के रूप में और कभी सुनामी के रूप में आपदाओं को जन्म देता है। बोझ को कम करने के लिये कई प्रकार की संपति तथा कइयों की जान चली जाती है। धरती के स्वर्ग के रूप में लेह और केरल दो क्षेत्र भारत में हैं जहां का प्राकृतिक सौंदर्य देखते ही बनता है लेकिन लेह को इस बार प्रकृति के कोप का भाजन बनना पड़ा है। हजारों या लाखों लोग यहां बादल फटने से प्रभावित हुए हैं। कइयों का अब भी कोई पता नहीं हैं। जो सेना के जवान बचाव कार्य में उतरे थे उनमें से भी कुछ का अता पता नहीं है। यह कहानी अकेले भारत की नहीं है हमारे पडौसी मुल्क पाकिस्तान, बंगला देश, चीन में भी प्राकृतिक कोप किसी से पूछकर नहीं पहुंचता न ही विदेशों में आने वाले तूफान, बाढ़ व अग्रि का कोप किसी को बताकर पहुंचते हैं। प्रकृति की इस अद्भुत लीला के बारे में सभी जानते हैं किन्तु कोई भी संतुलन बनाये रखने में पृथ्वी की मदद नहीं करता शायद यही कारण है कि सब कुछ इतनी तेजी से हो जाता है कि किसी को सोचने समझने व सम्हलने का मौका नहीं मिलता। प्रकृति की इस लीला से पछताने की जरूरत नहीं किन्तु सम्हलने की जरूरत है। प्रकृति पर संतुलन बनाये रखने के लिये जनसंख्या को नियंत्रित करने के साथ-साथ पर्यावरण को ज्यादा से ज्यादा महत्व देेने की जरूरत है। भारत, पाकिस्तान, चीन, नेपाल, सिक्किम सभी प्राकृतिक कोप का शिकार हैं। जनसंख्या का दबाव और पर्यावरण को जिस ढंग से इन देशों में पिछले वर्षाे के दौरान बलि चढ़ाई गई है वह अपने आप में ही यह बताती है कि प्रकृति पूरी तरह से उससे नाराज है। लेह की घटना दर्दनीय है-इसमें हम सिर्फ इतना ही कर सकते हैं कि मृतकों को श्रद्वांजलि और मृतक परिवारों के प्रति सहानुभूति लेकिन आगे के लिये यही कि मानव जाति प्रकृति के संतुलन को बनाये रखने में मदद करें।

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