जूता है महान...बड़े बडों को इसने
रायपुर सोमवार, दिनांक 9 अगस्त 2010
जूता है महान...बड़े बड़ों को इसने
शोहरत दिलाई...और अब...
जूते का आविष्कार जिस महान ने भी किया उसने कभी कल्पना भी नहीं की होगी कि लोगों के पैरों के लिये बनाया गया जूता किसी दिन इतना महान हो जायेगा कि वह बड़े से बड़े नेताओं के ऊपर बरसेगा। चाहे वह पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी हो या भारत के गृह मंत्री पी चिदंबरम अथवा अमरीका के पूर्व शक्तिशाली राष्ट्रपति जार्ज डब्ल्यू बुश यह अब उन महान नेताओं में शुमार हो गये हैं, जिन्हें जूते खाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ,और भी कितने नेता जूता खा चुके होंगे इसका रिकार्ड नहीं लेकिन कई ऐसे भी हैं जिन्होंने कभी न कभी किसी से चप्पल या जूता जरूर खाया होगा। नेता कैसे महान बनता है, यह जूता खाने के बाद ही पता चलता है। जूता खाने के बाद नेता तो सुर्खियों मे आ ही जाते हैं मारने वाला तो उससे भी बड़ा बन जाता है। जूता न केवल नेताओं पर ही बरसा है वरन् कई जजो को भी इसे खाने का शुभ अवसर मिला है इसलिये अब कोई यह कह भी दे कि तू यार जूते खाने का काम कर रहा है तो उसे इसका बुरा नहीं लगता -वह यह सोचता है कि क्या मैं बुश चिदंबरम या जरदारी सरीका बड़ा हो गया हूं जो यह मुझसे जूता खाने की बात करता है। जूते की महानता के परिप्रेक्ष्य में अब हमें भी यह सोचना पड़ेगा कि कोई हमारे घर आये तो उससे कहे कि आप जूता मत उतारे- जूता साहब को भी अपने साथ भीतर ले आये ताकि उनका भरपूर आदर किया जा सकें। नेताओं पर जूता बरसाने वालों की विश्व में खूब डिमांड हो गई है। बुश को जिसने जूता मारा, उसका नाम मुन्ताधर-अल-जेदी है जो एक टीवी पत्रकार है। उसने बुश पर जूता इराक में अमरीकी बम मारी के खिलाफ फेका थ। जूता फेंकने के इस कारनामे पर उसके देश के लोगों ने उसे हाथों हाथ उठा लिया। उसकी मूर्ति बन गई, उसके द्वारा फेकें गये जूते को सम्हालकर रखा गया यह बताने के लिये कि इस जूते साहब ने ही विश्व के शक्तिशाली राष्ट्रपति की कुटाई की थी। जूते पैदा करने वाली कंपनियों ने भी इसका भरपूर फायदा उठाया। इसके बाद भारत के गृह मंत्री पी चिदंबरम पर भ्री एक हिन्दी अख़बार के पत्रकार जरनेल सिंह ने सिक्खों पर हमले में जगदीश टाइटलर को सीबीआई द्वारा क्लीन चिट के विरोध में अपना जूता उतारकर फेंक दिया तो उस पत्रकार की अपने संस्थान से तो नौकरी चली गई लेकिन उसके जूते की कदर हो गई। चिंदबरम के विरोधियों ने उसके जूते को हीरो बना दिया। नौकरी गई तो क्या हुआ दो लाख रूपये का इनाम इस पत्रकार को मिला....वाकई मे जूता और उसको बनाने वाले दोनों महान है। जूता बनाने वाले दो किस्म के जूते तैयार करते हैं -एक नर व दूसरा मादा। एक पुरूष पहनते हैं, दूसरा महिलाएं जो चप्पल के रूप में इस्तेमाल करती हैं। जूता मुश्किल से व जरूरत पडऩे पर ही बरसता है लेकिन चप्पल हमेशा बरसने के लिये तैयार रहता है। बस छेड़छाड़ हुई नहीं कि वह अपना काम शुरू कर देती है। पति ने भी ज्यादा चू चपड़ की तो उसपर भी कभी कभी यह उठ जाती है। नर-मादा दोनों जूतों की महानता को समझते हुए ही अभी कल लंदन में वहां के प्रधानमंत्री कैमरन की झिड़कियों के बाद वहां पहुंचे पाकिस्तान के प्रधानमंत्री आसिफ अली जरदारी को अपने ही देश के एक बन्धें शमीम खान से जूता खाना पड़ा। अब जरदारी भी महान हो गये....इससे ज्यादा महान है जूता जो किसी को कुछ नहीं समझता।
जूता है महान...बड़े बड़ों को इसने
शोहरत दिलाई...और अब...
जूते का आविष्कार जिस महान ने भी किया उसने कभी कल्पना भी नहीं की होगी कि लोगों के पैरों के लिये बनाया गया जूता किसी दिन इतना महान हो जायेगा कि वह बड़े से बड़े नेताओं के ऊपर बरसेगा। चाहे वह पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी हो या भारत के गृह मंत्री पी चिदंबरम अथवा अमरीका के पूर्व शक्तिशाली राष्ट्रपति जार्ज डब्ल्यू बुश यह अब उन महान नेताओं में शुमार हो गये हैं, जिन्हें जूते खाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ,और भी कितने नेता जूता खा चुके होंगे इसका रिकार्ड नहीं लेकिन कई ऐसे भी हैं जिन्होंने कभी न कभी किसी से चप्पल या जूता जरूर खाया होगा। नेता कैसे महान बनता है, यह जूता खाने के बाद ही पता चलता है। जूता खाने के बाद नेता तो सुर्खियों मे आ ही जाते हैं मारने वाला तो उससे भी बड़ा बन जाता है। जूता न केवल नेताओं पर ही बरसा है वरन् कई जजो को भी इसे खाने का शुभ अवसर मिला है इसलिये अब कोई यह कह भी दे कि तू यार जूते खाने का काम कर रहा है तो उसे इसका बुरा नहीं लगता -वह यह सोचता है कि क्या मैं बुश चिदंबरम या जरदारी सरीका बड़ा हो गया हूं जो यह मुझसे जूता खाने की बात करता है। जूते की महानता के परिप्रेक्ष्य में अब हमें भी यह सोचना पड़ेगा कि कोई हमारे घर आये तो उससे कहे कि आप जूता मत उतारे- जूता साहब को भी अपने साथ भीतर ले आये ताकि उनका भरपूर आदर किया जा सकें। नेताओं पर जूता बरसाने वालों की विश्व में खूब डिमांड हो गई है। बुश को जिसने जूता मारा, उसका नाम मुन्ताधर-अल-जेदी है जो एक टीवी पत्रकार है। उसने बुश पर जूता इराक में अमरीकी बम मारी के खिलाफ फेका थ। जूता फेंकने के इस कारनामे पर उसके देश के लोगों ने उसे हाथों हाथ उठा लिया। उसकी मूर्ति बन गई, उसके द्वारा फेकें गये जूते को सम्हालकर रखा गया यह बताने के लिये कि इस जूते साहब ने ही विश्व के शक्तिशाली राष्ट्रपति की कुटाई की थी। जूते पैदा करने वाली कंपनियों ने भी इसका भरपूर फायदा उठाया। इसके बाद भारत के गृह मंत्री पी चिदंबरम पर भ्री एक हिन्दी अख़बार के पत्रकार जरनेल सिंह ने सिक्खों पर हमले में जगदीश टाइटलर को सीबीआई द्वारा क्लीन चिट के विरोध में अपना जूता उतारकर फेंक दिया तो उस पत्रकार की अपने संस्थान से तो नौकरी चली गई लेकिन उसके जूते की कदर हो गई। चिंदबरम के विरोधियों ने उसके जूते को हीरो बना दिया। नौकरी गई तो क्या हुआ दो लाख रूपये का इनाम इस पत्रकार को मिला....वाकई मे जूता और उसको बनाने वाले दोनों महान है। जूता बनाने वाले दो किस्म के जूते तैयार करते हैं -एक नर व दूसरा मादा। एक पुरूष पहनते हैं, दूसरा महिलाएं जो चप्पल के रूप में इस्तेमाल करती हैं। जूता मुश्किल से व जरूरत पडऩे पर ही बरसता है लेकिन चप्पल हमेशा बरसने के लिये तैयार रहता है। बस छेड़छाड़ हुई नहीं कि वह अपना काम शुरू कर देती है। पति ने भी ज्यादा चू चपड़ की तो उसपर भी कभी कभी यह उठ जाती है। नर-मादा दोनों जूतों की महानता को समझते हुए ही अभी कल लंदन में वहां के प्रधानमंत्री कैमरन की झिड़कियों के बाद वहां पहुंचे पाकिस्तान के प्रधानमंत्री आसिफ अली जरदारी को अपने ही देश के एक बन्धें शमीम खान से जूता खाना पड़ा। अब जरदारी भी महान हो गये....इससे ज्यादा महान है जूता जो किसी को कुछ नहीं समझता।
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