आन लाइन के साथ लाउड स्पीकर ....शिक्षा का नया रूप!
आन लाइन के साथ लाउड स्पीकर ....शिक्षा का नया रूप!
कोरोना महामारी ने हमारे जीवन को बहुत कुछ बदल दिया. बच्चों की शिक्षा अब तक पटरी पर नहीं आई है. छत्तीसगढ़़ में कोरोना संक्रमण को देखते हुए अब लाउडस्पीकर से स्कूलों में पढ़ाई कराई जाएगी.स्कूल शिक्षा मंत्री डॉ. प्रेमसाय सिंह टेकाम ने सभी जिलों की प्रत्येक पंचायत में कम से कम एक स्कूल में इस योजना को उपलब्ध संसाधनों के माध्यम से प्रारंभ करने के निर्देश दिए हैं. बस्तर जिले में लाउडस्पीकर से 56 पंचायतों में पढ़ाई प्रारंभ हो चुकी है. यह एक अच्छा प्रयास है लेकिन लाउड स्पीकर की आवाज इतनी तेज भी न हो कि आसपास रहने वालों के लिये यह परेशानी का सबब बन जाये जैसा कि आजकल कुछ आस्था केन्द्रों से होता है.शिक्षा विभाग शायद इस मामले में ध्यान देगी और बच्चों की पढ़ाई जारी रखेगी. छत्तीसगढ़ में कोविड-19 के दौरान बच्चों की पढ़ाई जारी रखने यह मॉडल बनेगा,एैसा शिक्षा मंत्री का दावा है- यह ऑनलाईन पढ़ाई की वैकल्पिक व्यवस्था है.बच्चो को आन लाइन सीखना पड़ रहा है. मगर ऐसे बच्चे जिनके घरों मे न कम्पूयटर है और न लेपटाप और न ही मोबाइल वे क्या करें?पहले टीचर्स के फ़ोन नंबर तक बच्चों की पहुँच बहुत कम होती थी, जो भी बात करनी हो वो स्कूल में होगी, लेकिन अब शिक्षको के नंबर स्टूडेंट्स के साथ-साथ उनके भाई-बहनों तक पहुँच गए हैं. शिक्षकों को स्टूडेंट्स के दिन-रात फ़ोन आते हैं और कई बार बच्चों के भाई-बहन गुड मॉर्निंग-गुड नाइट मैसेज भी भेजते हैं. ऐसा बदलाव आने की कल्पना करोना काल से पहले तक किसी ने नहीं की होगी.कोरोना महामारी के दौरान बच्चों के स्कूल बंद हैं और सरकारी से लेकर निजी स्कूलों तक, बच्चों की ज़ूम, गूगल मीट और माइक्रोसॉफ्ट टीम्स जैसे ऐप्स के ज़रिये ऑनलाइन क्लासें चल रही हैं जो सिर्फ़ ऑनलाइन क्लास रूम तक सीमित न रहकर, शिक्षकों की निजी जिंदगी तक पहुँच गई हैं. दिसंबर के आखरी सप्ताह में कोराना का विस्फोट दुनिया में शुरू हो गया था उसके बाद नया साल लगा किन्तु जनवरी के आखिर तक कोरोना की दस्तक विदेशो से भारत पहुंच चुकी थी, केरल में इसकी दस्तक हुई और यह मार्च तक देश के प्राय: राज्यों में फैलने लगा इसके बाद नौबत लाक डाउन की आ गई लाक डाउन और अनलाक दोनो का सिलसिला अभी भी जारी है. कोराना कई राज्यों में अब अपने चरम पर है और स्कूल खुलने के कोई चांसेज फिलहाल तो नजर नहीं आ रहे .बच्चों या उनके माता-पिता तक सूचनाएं पहुँचाने के लिए शिक्षकों ने अलग-अलग कक्षाओं के वॉट्सऐप ग्रुप बनाये हुए हैं. लेकिन जिस मोबाइल से बच्चे क्लास लेते हैं या फिर वॉट्सऐप के ज़रिये बात करते हैं, वो उनके माता-पिता या भाई-बहन का होता है.इसी वजह से शिक्षकों का नंबर बच्चों के अलावा उनके परिवार वालों तक भी पहुँच रहा है. कुछ शिक्षको का कहना है कि आन लाइन का असर क्या है यह इसी से पता चल जाता है कि हमारे पास रात के डेढ़ या दो बजे भी फ़ॉरवर्डेड मैसेज आए हैं रात को टीचर ऑनलाइन है तो मैसेज कर देते हैं. कई बार डीपी देखते हैं तो उसे लेकर कमेंट कर देते हैं. ये मैसेज बड़ी बात भले ना हों, पर ये डर ज़रूर रहता है कि हमारे नंबर का आगे क्या इस्तेमाल होगा! शिक्षकों के साथ सिर्फ़ यही परेशानी नहीं है, बल्कि पढ़ाई के इस नए तरीक़े ने उनके सामने भी चुनौतियों का एक पिटारा खोल दिया है. शिक्षकों का काम अब सिर्फ़ पढ़ाने तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि हर बच्चे को क्लास में बुलाना, उनसे असाइंमेंट और बाकी एक्टिविटी करवाना भी है जिस वजह से काम और काम के घंटे, दोनों बढ़ गये हैं. स्कूल खोलना तो पड़ेगा ही मगर कैसे इसपर भी विचार विमर्श जारी है. सिलेबस छोटा करें या न करें इसका निर्णय भी लेना पड़ेेगा वहीं बच्चो को कितने घंटे स्मार्ट फोन इस्तेमाल करने की इजाजत दे इस पर चर्चा हो रही है. स्कूलों में ऑनलाइन क्लास से कितना होगा बच्चों को फ़ायदा इस पर भी विचार हो रहा है .कई किस्म की समस्याएं आज स्कूल शिक्षा पर है. सरकारी व प्रायवेट दोनों इस समस्या से जूझ रहे हैं.आन लाइन पढ़ाई पालकों के लिये उतनी ही कठिन है जितनी बच्चो के लिये.कई बच्चों के घरवाले आन लाइन पढ़ाई के दौरान उनके साथ बैठे होते हैं. कभी उन्हें टीचर के बोलने का अंदाज पसंद नहीं आता तो कभी वो बच्चों पर सवाल पूछने के लिए दबाव डालते रहते हैं.वर्तमान में स्थिति यह है कि ऑनलाइन क्लास में बच्चों के पढऩे का तरीक़ा बदला है उसी तरह शिक्षकों के पढ़ाने का तरीक़ा बदल गया है.वर्चुअल क्लास का ये सेटअप असल क्लास से बिल्कुल अलग है. इसमें क्लास तो चल रही होती है, मगर सामने बच्चे नहीं दिखते. बच्चे क्या कर रहे हैं और कितना समझ रहे हैं, इसका भी कम ही पता चल पाता है. ऐसे में बच्चों की दिलचस्पी बनाये रखना और उनसे संवाद करना, दोनों एक बड़ी चुनौती बन जाते हैं.यह देखना दिलचस्प रहेगा कि आगे आने वाले समय में और क्या क्या प्रयोग बच्चों पर किये जाने वाले हैं!
कोरोना महामारी ने हमारे जीवन को बहुत कुछ बदल दिया. बच्चों की शिक्षा अब तक पटरी पर नहीं आई है. छत्तीसगढ़़ में कोरोना संक्रमण को देखते हुए अब लाउडस्पीकर से स्कूलों में पढ़ाई कराई जाएगी.स्कूल शिक्षा मंत्री डॉ. प्रेमसाय सिंह टेकाम ने सभी जिलों की प्रत्येक पंचायत में कम से कम एक स्कूल में इस योजना को उपलब्ध संसाधनों के माध्यम से प्रारंभ करने के निर्देश दिए हैं. बस्तर जिले में लाउडस्पीकर से 56 पंचायतों में पढ़ाई प्रारंभ हो चुकी है. यह एक अच्छा प्रयास है लेकिन लाउड स्पीकर की आवाज इतनी तेज भी न हो कि आसपास रहने वालों के लिये यह परेशानी का सबब बन जाये जैसा कि आजकल कुछ आस्था केन्द्रों से होता है.शिक्षा विभाग शायद इस मामले में ध्यान देगी और बच्चों की पढ़ाई जारी रखेगी. छत्तीसगढ़ में कोविड-19 के दौरान बच्चों की पढ़ाई जारी रखने यह मॉडल बनेगा,एैसा शिक्षा मंत्री का दावा है- यह ऑनलाईन पढ़ाई की वैकल्पिक व्यवस्था है.बच्चो को आन लाइन सीखना पड़ रहा है. मगर ऐसे बच्चे जिनके घरों मे न कम्पूयटर है और न लेपटाप और न ही मोबाइल वे क्या करें?पहले टीचर्स के फ़ोन नंबर तक बच्चों की पहुँच बहुत कम होती थी, जो भी बात करनी हो वो स्कूल में होगी, लेकिन अब शिक्षको के नंबर स्टूडेंट्स के साथ-साथ उनके भाई-बहनों तक पहुँच गए हैं. शिक्षकों को स्टूडेंट्स के दिन-रात फ़ोन आते हैं और कई बार बच्चों के भाई-बहन गुड मॉर्निंग-गुड नाइट मैसेज भी भेजते हैं. ऐसा बदलाव आने की कल्पना करोना काल से पहले तक किसी ने नहीं की होगी.कोरोना महामारी के दौरान बच्चों के स्कूल बंद हैं और सरकारी से लेकर निजी स्कूलों तक, बच्चों की ज़ूम, गूगल मीट और माइक्रोसॉफ्ट टीम्स जैसे ऐप्स के ज़रिये ऑनलाइन क्लासें चल रही हैं जो सिर्फ़ ऑनलाइन क्लास रूम तक सीमित न रहकर, शिक्षकों की निजी जिंदगी तक पहुँच गई हैं. दिसंबर के आखरी सप्ताह में कोराना का विस्फोट दुनिया में शुरू हो गया था उसके बाद नया साल लगा किन्तु जनवरी के आखिर तक कोरोना की दस्तक विदेशो से भारत पहुंच चुकी थी, केरल में इसकी दस्तक हुई और यह मार्च तक देश के प्राय: राज्यों में फैलने लगा इसके बाद नौबत लाक डाउन की आ गई लाक डाउन और अनलाक दोनो का सिलसिला अभी भी जारी है. कोराना कई राज्यों में अब अपने चरम पर है और स्कूल खुलने के कोई चांसेज फिलहाल तो नजर नहीं आ रहे .बच्चों या उनके माता-पिता तक सूचनाएं पहुँचाने के लिए शिक्षकों ने अलग-अलग कक्षाओं के वॉट्सऐप ग्रुप बनाये हुए हैं. लेकिन जिस मोबाइल से बच्चे क्लास लेते हैं या फिर वॉट्सऐप के ज़रिये बात करते हैं, वो उनके माता-पिता या भाई-बहन का होता है.इसी वजह से शिक्षकों का नंबर बच्चों के अलावा उनके परिवार वालों तक भी पहुँच रहा है. कुछ शिक्षको का कहना है कि आन लाइन का असर क्या है यह इसी से पता चल जाता है कि हमारे पास रात के डेढ़ या दो बजे भी फ़ॉरवर्डेड मैसेज आए हैं रात को टीचर ऑनलाइन है तो मैसेज कर देते हैं. कई बार डीपी देखते हैं तो उसे लेकर कमेंट कर देते हैं. ये मैसेज बड़ी बात भले ना हों, पर ये डर ज़रूर रहता है कि हमारे नंबर का आगे क्या इस्तेमाल होगा! शिक्षकों के साथ सिर्फ़ यही परेशानी नहीं है, बल्कि पढ़ाई के इस नए तरीक़े ने उनके सामने भी चुनौतियों का एक पिटारा खोल दिया है. शिक्षकों का काम अब सिर्फ़ पढ़ाने तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि हर बच्चे को क्लास में बुलाना, उनसे असाइंमेंट और बाकी एक्टिविटी करवाना भी है जिस वजह से काम और काम के घंटे, दोनों बढ़ गये हैं. स्कूल खोलना तो पड़ेगा ही मगर कैसे इसपर भी विचार विमर्श जारी है. सिलेबस छोटा करें या न करें इसका निर्णय भी लेना पड़ेेगा वहीं बच्चो को कितने घंटे स्मार्ट फोन इस्तेमाल करने की इजाजत दे इस पर चर्चा हो रही है. स्कूलों में ऑनलाइन क्लास से कितना होगा बच्चों को फ़ायदा इस पर भी विचार हो रहा है .कई किस्म की समस्याएं आज स्कूल शिक्षा पर है. सरकारी व प्रायवेट दोनों इस समस्या से जूझ रहे हैं.आन लाइन पढ़ाई पालकों के लिये उतनी ही कठिन है जितनी बच्चो के लिये.कई बच्चों के घरवाले आन लाइन पढ़ाई के दौरान उनके साथ बैठे होते हैं. कभी उन्हें टीचर के बोलने का अंदाज पसंद नहीं आता तो कभी वो बच्चों पर सवाल पूछने के लिए दबाव डालते रहते हैं.वर्तमान में स्थिति यह है कि ऑनलाइन क्लास में बच्चों के पढऩे का तरीक़ा बदला है उसी तरह शिक्षकों के पढ़ाने का तरीक़ा बदल गया है.वर्चुअल क्लास का ये सेटअप असल क्लास से बिल्कुल अलग है. इसमें क्लास तो चल रही होती है, मगर सामने बच्चे नहीं दिखते. बच्चे क्या कर रहे हैं और कितना समझ रहे हैं, इसका भी कम ही पता चल पाता है. ऐसे में बच्चों की दिलचस्पी बनाये रखना और उनसे संवाद करना, दोनों एक बड़ी चुनौती बन जाते हैं.यह देखना दिलचस्प रहेगा कि आगे आने वाले समय में और क्या क्या प्रयोग बच्चों पर किये जाने वाले हैं!
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