दावे कई लेकिन दुनिया को नहीं मिला अब तक कोरोना का तोड़ !

दावे कई लेकिन दुनिया को नहीं मिला अब तक कोरोना का तोड़ !


कोरोनावायरस को भारत में पैदा हुए  7 महीने बीतने को है,30,643 लोग अपनी जान गवा चुके हैं,देश में चौबीस घंटे के अंदर 755 लोगों की जान चली गई.बीमारी से  संक्रमित मरीजों की संख्या विश्व में 1.192915 करोड़ के पार पहुंच गई है दुख इस बात का कि  अभी तक कोरोना का कोई असरदार इलाज या दवा  नहीं मिल सकी है.सभी स्तर पर यह कहा जा रहा है कि अभी कोई वेक्सीन मिलने महीनो का वक्त लगेगा.इस बात की पुष्टि दुनिया की सबसे बड़ी स्वास्थ्य संस्था डब्लयू एच ओ ने भी कर दी है. यूरोप सहित दुनिया में कोरोना वैक्सीन का पहला ट्रायल ब्रिटेन के ऑक्सफ़ोर्ड में शुरू हुआ था. अप्रैल महीने में ही यहाँ कोरोना वायरस संक्रमण की वैक्सीन के लिए इंसानों पर परीक्षण शुरू हुआ.शुरुआती चरण के लिए यहाँ 800 लोगों को बतौर वॉलेंटियर चुना गया. कोरोना को फैलने से रोकने के लिए कई देशों ने लॉकडाउन लगाया, लेकिन सिर्फ लॉकडाउन ही काफी नहीं है क्योंकि, जिन 10 देशों ने कोरोना पर काबू पाया है, वहां न सिर्फ ज्यादा से ज्यादा टेस्टिंग हुई, बल्कि सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क पहनना भी जरूरी किया गया. कई देशो ने मास्क लगाना अनिवार्य किया. नहीं लगाने वालों पर सीमा से ज्यादा का अर्थदंड का प्रावधान किया गया. भारत के झारखंड में तो ऐसे लोगों पर एक लाख रूपये तक का प्रावधान किया गया. दिसंबर के आखिर में चीन के हुबेई प्रांत के वुहान शहर के लोगों में नई बीमारी देखी गई थी बाद में यही कोरोनावायरस बना. पहला केस आने के 7 हफ्ते बाद वुहान को लॉकडाउन किया गया.76 दिन बाद 8 अप्रैल को वुहान से लॉकडाउन हटा. 24-25 जनवरी के बीच चीन के शंघाई, हैनान, जियांग्सु समेत कई प्रांतों में हुबेई से लौटने वाले लोगों के लिए 14 दिन का क्वारैंटाइन जरूरी कर दिया गया. एक फरवरी को हुबेई के हुआनगैंग शहर में भी कर्फ्यू लगा दिया गया और हर परिवार से सिर्फ एक ही व्यक्ति को हर दो दिन में जरूरी सामान खरीदने के लिए बाहर निकलने की इजाजत दी गई. चीन ने कोरोना को फैलने से रोकने के लिए पूरे देश में लॉकडाउन नहीं लगाया जिस इलाके में कोरोना का एक भी मरीज मिला, उसे पूरी तरह लॉकडाउन कर वहां के हर नागरिक का कोरोना टेस्ट किया गया जैसे- मई में वुहान में कोरोना के 6 मरीज मिले तो अगले 10 दिन में वहां की एक करोड़ 10 लाख आबादी का टेस्ट हुआ.चीन ने करोना पर वेक्सीन से नहीं बल्कि अपने बंदिशों से कोरोना पर काबू पाया.विश्व के अधिकांश देश आज कोरोना वैक्सीन का इंतज़ार कर रहे हैं यह इंतजार कब ख़त्म होगा सही तौर पर कोई नहीं कह सकता.ऐसा दावा रूस की तरफ से किया जा रहा है कि उसने कोरोना वायरस की पहली वैक्सीन बना ली है!भारत जो अमरीका के बाद इस समय विश्व में कोविड 19 से सर्वाधिक प्रभावित है वेक्सीन को अपने पाले में करने प्रयासरत है इस कड़ी में टेस्ट के लिए दिल्ली-एनसीआर के लोगों से वॉलेंटियर करने की अपील की गई थी. रजिस्ट्रेशन कराने वालों के लिए अपना कोरोना टेस्ट और लीवर टेस्ट कराना ज़रूरी था.इस वैक्सीन की दो डोज़ दी जाएँगी. पहली डोज़ के दो सप्ताह के बाद दूसरी डोज़ दी जाएगी. ये वैक्सीन इंजेक्शन के ज़रिए दिया जाएगा.भारत बायोटेक इंटरनेशनल लिमिटेड और जायडस कैडिला भारत में कोरोना की वैक्सीन बनाने की दिशा में आगे हैं. भारत बायोटैक इंटरनेशनल लिमिटेड की वैक्सीन का नाम कोवैक्सीन है.इसके अलावा तकऱीबन आधा दर्जन भारतीय कंपनियां कोविड-19 के वायरस के लिए वैक्सीन विकसित करने में जुटी हुई हैं.इन कंपनियों में से एक सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंडिया है. वैक्सीन के डोज़ के उत्पादन और दुनिया भर में बिक्री के लिहाज़ से यह दुनिया की सबसे बड़ी वैक्सीन कंपनी है.जून के महीने में भारत में बनी फ़ैबीफ़्लू दवा को लेकर दावे किए गए कि यह कोरोना का तोड़ है. ग्लेनमार्क फ़ार्मा कंपनी की यह दवा एक रीपरपस्ड दवा है.इस दवा को बनाने वाली फ़ार्मास्युटिकल कंपनी ग्लेनमार्क ने दावा किया है कि कोविड-19 के माइल्ड और मॉडरेट मरीज़ों पर इसका इस्तेमाल किया जा सकता है और परिणाम सकारात्मक आए हैं.ग्लेनमार्क कंपनी का दावा है कि ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ़ इंडिया(डीसीजीआई) ने इस दवा के ट्रायल के लिए सशर्त मंज़ूरी दी है.रूस, जापान और चीन में भी इस दवा पर स्टडी की गई और दावा किया गया कि इसका असर साकारात्मक रहा है.लेकिन अब भारत में इस दवा को लेकर विवाद खड़ा हो गया है.एक न्यूज़ एजेंसी  की ख़बर के मुताबिक़, ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ़ इंडिया ने फ़ैबीफ़्लू को लेकर किए जा रहे दावों और उसकी क़ीमत को लेकर कंपनी से स्पष्टीकरण मांगा है.रेमडेसिविर के बारे में यह कहा जा रहा है कि यह कोरोना की दवा नहीं इसके क्लीनिकल ट्रायल से पता चला है कि इससे गंभीर तौर पर बीमार रोगी जल्दी ठीक हो सकते हैं. हालाँकि, इससे लोगों के बचने की संभावना बहुत बढ़ जाती हो, ऐसा नहीं देखा गया.जानकारों ने चेतावनी दी है कि इस दवा को कोरोना वायरस से बचने का रामबाण नहीं समझा जाना चाहिए.इधर व्रिटेन का  दावा  है कि ऑक्सफ़ोर्ड की वैक्सीन का पहला ह्यूमन ट्रायल क़ामयाब रहा है लेकिन वैक्सीन कहां?अगर आगे भी सबकुछ ठीक रहता है, तो संभव है कि बहुत जल्दी ही कोरोना वायरस की एक कारगर वैक्सीन तैयार कर ली जाएगी.इसी प्रकार अमरीका में टेस्ट की गई पहली कोविड-19 वैक्सीन से लोगों के इम्यून को वैसा ही फ़ायदा पहुँचा है, जैसा वैज्ञानिकों ने उम्मीद की थी.अब इस वैक्सीन का ट्रायल किया जाना है.रूस की समाचार एजेंसी स्पुतनिक ने अनुसार इंस्टिट्यूट फ़ॉर ट्रांसलेशनल मेडिसिन एंड बायोटेक्नोलॉजी के डायरेक्टर वादिम तरासोव ने कहा दुनिया की पहली कोरोना वैक्सीन का क्लीनिकल ट्रायल सफलतापूर्वक पूरा कर लिया गया है.उनके अनुसार  मॉस्को स्थित सरकारी मेडिकल यूनिवर्सिटी से चेनोफऩे ये ट्रायल किए और पाया कि ये वैक्सीन इंसानों पर सुरक्षित है.चीन भी पीछे नहीं.चीन ने मई महीने में ही साल के अंत तक वैक्सीन ईजाद कर लेने का दावा किया था.चीन के एसेट्स सुपरविजऩ एंड एडमिनिस्ट्रेशन कमिशन ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट में कहा था कि चीन में बनी कोरोना वायरस की वैक्सीन इस साल के अंत तक वितरण के लिए मार्केट में आ सकती है.हालांकि अभी तक किसी प्रमाणिक वैक्सीन को ईजाद कर लेने की जानकारी चीन से भी नहीं है. लेकिन बांग्लादेश ने चीन के सिनोवेक वैक्सीन के तीसरे चरण के ट्रायल को मंज़ूरी दे दी है..बांग्लादेश में कोविड19 के लिए काम कर रही नेशनल टेक्नीकल एडवाइजऱी कमेटी के एक सदस्य ने बताया कि सिनोवैक को चीन के बाहर वॉलेंटियर्स की ज़रूरत थी क्योंकि चीन में कोरोना वायरस संक्रमितों की संख्या घट गई है.बांग्लादेश की इंटरनेशनल सेंटर फ़ॉर डायरियल डिज़ीज़ रिसर्च  अगले महीने इसका परीक्षण शुरू करेगा.


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