अंतत: डॉन का अंत,कोई नाटक काम नहीं आ पाया
अंतत: डॉन का अंत,कोई नाटक काम नहीं आ पाया
कैसे की 774 किमी की यात्रा, किसका था वरदहस्त?
बिल्कुल फिल्मी स्टाइल पर डॉन ढेर हो गया इसके पहले बहुत से साथी या तो मारे गये या पकड़ लिये गये.पूरे उत्तर प्रदेश में छै- सात दिनों तक चले इस सबसे बड़े नाटक का क्लाइमेक्स का अंत आज सुबह हो गया जब यह खबर लगी कि उसे ले जा रही गाड़ी के पलटने से उसने पुलिस की पिस्टल छीनकर मारने की कोशिश की और भागने की कोशिश में पुलिस के हाथों मारा गया. असल में एक के बाद एक अपराधियों को एनकाउंटर में मार देने या पकड़ लेने के बाद ऐसा लगा था कि शायद या तो विकास दुबे पुलिस के साथ एनकाउंटर में मारा जायेगा या पकड़ लिया जायेगा किन्तु आठ पुलिस कर्मियों को मारने वाले असली डान को पकडऩे के लिये सात राज्य, दस हजार पुलिसकर्मी, कानपुर के चालीस थानों की फोर्स, एसटीएफ की सौ टीमें लगने के बाद भी वह पुलिस के हाथ नहीं आया बल्कि बड़े नाटकीय ढंग से उसने अपने आपको एक निजी गार्ड के हवाले किया और इसका श्रेय लूटा हमारे पड़ौसी राज्य मध्यप्रदेश ने. देश में राजनीति के अपराधीकरण और उससे उपजे एक बड़े अपराध का यह एक जीता जागता उदाहरण है जो सबकों न केवल दिखाई दे रहा है बल्कि समझ में भी आ रहा है. पहुंच और वरदहस्त के चलते अपराधी कैसे बड़े से बड़े अपराध कर पतले रास्ते से निकल भागने में कैसे सफल हो जाते हैं इसका भी खुलासा अपने आप हो जाता है. उज्जेैन के महाकाल मंदिर में उसने अपने आपको समर्पण करने के लिये सिखा-सिखाया जाल फेका चिल्ला चिल्लकर कहा कि मैं कानुपर का विकास दुबे देखों वे मुझे पकड़ रहे हैं. उसकी इस बात में यह साफ झलक रहा थ कि कहीं पुलिस मुठभेड़ न दिखा दे इसका पूरा प्रबंध किसी के कहने पर कर दिया. एनकाउंटर से बचने के लिये और न्यायालय की शरण जाकर लम्बे समय तक अपने आपको बचाने का इससे अच्छा ओर तरीका क्या हो सकता था. इस अपराधी को गिरफतार कर यूपी पुलिस अपने राज्य ले जा रही थी कि किन्तु रास्त्ते में हुए एनकाउंटर में वह मारा गया. इससे पूर्व उसकी अर्धांगिनी रिचा को भी गिरफतार कर लिया गया. हैदराबाद दुष्कर्म कांड के बाद वहां एनकाउंटर में दुष्कर्मियों के मरने के बाद हैदराबाद की जनता ने पुलिस को हाथों हाथ उठा लिया था लेकिन उत्तर प्रदेश पुलिस अपने ही पुलिस कर्मियों की हत्या करने वाले व्यक्ति को न पकड़ सकी और न ही एनकाउंटर कर सकी बल्कि वह शान से उनकी नाक के नीचे से निकलकर उज्जैन के महाकाल मंदिर तक पहुंच गया. इससे अंदाज लगाया जा सकता है कि कितना बड़ा वरदान इसे अपने उन आकाओं से प्राप्त था जो उनके संरक्षण में करता रहा. क्या यह सही हो सकता है कि जिस विकास को पकडऩे के लिए उत्तर प्रदेश, हरियाणा, उत्तराखंड, दिल्ली, और मध्य प्रदेश में अलर्ट जारी करने के बावजूद विकास सीसी टीवी में नजर आने और लोकेशन मिलने के बाद भी सात दिनों तक सात राज्यों की पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ा. वह पुलिस को गुमराह करता रहा या किसी का हाथ उसके सर को पनाह दे रहा था? विकास दुबे की गिरफ्तारी के बाद हिरासत में लिए गए दो वकील, निजी गाड़ी से उज्जैन गए थे वकीलों को भी उज्जैन से पुलिस हिरासत में लिया गया है.उत्तर प्रदेश पुलिस को चकमा देते हुए विकास मध्य प्रदेश कैसे पहुंच गया ये बड़ा सवाल ह ैपुलिस उसके गुर्गों का सफाया करने में लगी रही और विकास दुबे उज्जैन पहुंच गया सवाल यही है कि वहां तक पहुंचने में विकास की मदद कौन कर रहा था.आखिर राज्यों की सीमा और टोल नाकों पर तैनात पुलिसकर्मी और सीसीटीवी कैमरे क्या केवल खानापूर्ति के लिए अथवा सीधे साधे लोगों को तंग करने के लिये लगाये जाते हैं? बुधवार तक विकास दुबे की लोकेशन फरीदाबाद और एनसीआर बताई जा रही थी लेकिन यहां से वो उज्जैन कैसे पहुंचा? ये सवाल अब भी अनसुलझा है. फरीदाबाद से उज्जैन तक का सफर सड़क मार्ग से करने पर कम से कम 14 घंटे का समय लगता है. दोनों शहरों के बीच की दूरी लगभग 774 किलोमीटर है. अब इस सवाल का जवाब या तो पुलिस दे सकती है या फिर खुद विकास..सवाल यह भी उठ रहा है कि विकास दुबे को अब तक एक भी केस में सजा नहीं मिली; एनकाउंटर से तो बच गया, लेकिन क्या उम्रकैद और फांसी से बच पाएगा? अभी उसकी गिरफतारी पर पर राजनीति भी गर्म है.कांग्रेस,समाजवादी पार्टी उसकी नाटकीय गिरफ्तारी पर सवाल उठा रही है, लेकिन सवाल यह भी है कि अब आगे क्या होगा? क्या यह गिरफ्तारी या सरेंडर, विकास दुबे को एनकाउंटर से बचा लेगा? क्या उसकी जान बची रहेगी? आम जनता और पुलिसकर्मियों के बीच गैंगस्टर विकास दुबे के एनकाउंटर की मांग उठ रही है लेकिन यह संभव नहीं है संविधान का आर्टिकल 21 हर एक को जीने का अधिकार देता है. एक अपराधी को भी विकास दुबे के एनकाउंटर की मांग के बारे में सुप्रीम कोर्ट की डिविजन बैंच के एक्स्ट्रा-ज्युडिशियल हत्याओं यानी एनकाउंटर पर 2014 में दिए फैसले का अपना महत्व है. पीयूसीएल बनाम महाराष्ट्र्र केस में पीपुल्स यूनियन ऑफ सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) ने मुंबई पुलिस के 1995 से 1997 के बीच हुए एनकाउंटर्स में 90 अपराधियों की हत्या की वैधता पर सवाल उठाए थे. इसी तरह की याचिका 2018 में यूपी पुलिस के एनकाउंटर्स के खिलाफ भी दाखिल हुई है तब के चीफ जस्टिस आरएम लोढ़ा और जस्टिस आरएफ नरीमन ने 23 सितंबर, 2014 को फैसले में कहा था कि संविधान के आर्टिकल 21 के तहत हर व्यक्ति को जीने का अधिकार है सरकार भी उससे उसका यह अधिकार नहीं छीन सकती.कानपुर जेल पहुंच गया तो विकास दुबे का एनकाउंटर नहीं हो सकेगा. उज्जैन पहुंचना और नाटकीय रूप से गिरफ्तार होना साफ तौर पर जान बचाने के लिए सरेंडर है. ऐसे में पुलिस किसी का भी एनकाउंटर नहीं कर सकेगी? लेकिन अब एनकाउटंर भी हो गया. सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में पुलिस एनकाउंटरों के संबंध में दिशा-निर्देश जारी किए थे. हर एनकाउंटर की जांच जरूरी है. जांच खत्म होने तक इसमें शामिल पुलिसकर्मियों को प्रमोशन या वीरता पुरस्कार नहीं मिलता.एनकाउंटर आमतौर पर दो तरह के होते हैं- पहला, जिसमें कोई अपराधी पुलिस की हिरासत से भागने की कोशिश करता है. दूसरा, जब पुलिस किसी अपराधी को पकडऩे जाती है और वो जवाबी हमला कर देता है.
कैसे की 774 किमी की यात्रा, किसका था वरदहस्त?
बिल्कुल फिल्मी स्टाइल पर डॉन ढेर हो गया इसके पहले बहुत से साथी या तो मारे गये या पकड़ लिये गये.पूरे उत्तर प्रदेश में छै- सात दिनों तक चले इस सबसे बड़े नाटक का क्लाइमेक्स का अंत आज सुबह हो गया जब यह खबर लगी कि उसे ले जा रही गाड़ी के पलटने से उसने पुलिस की पिस्टल छीनकर मारने की कोशिश की और भागने की कोशिश में पुलिस के हाथों मारा गया. असल में एक के बाद एक अपराधियों को एनकाउंटर में मार देने या पकड़ लेने के बाद ऐसा लगा था कि शायद या तो विकास दुबे पुलिस के साथ एनकाउंटर में मारा जायेगा या पकड़ लिया जायेगा किन्तु आठ पुलिस कर्मियों को मारने वाले असली डान को पकडऩे के लिये सात राज्य, दस हजार पुलिसकर्मी, कानपुर के चालीस थानों की फोर्स, एसटीएफ की सौ टीमें लगने के बाद भी वह पुलिस के हाथ नहीं आया बल्कि बड़े नाटकीय ढंग से उसने अपने आपको एक निजी गार्ड के हवाले किया और इसका श्रेय लूटा हमारे पड़ौसी राज्य मध्यप्रदेश ने. देश में राजनीति के अपराधीकरण और उससे उपजे एक बड़े अपराध का यह एक जीता जागता उदाहरण है जो सबकों न केवल दिखाई दे रहा है बल्कि समझ में भी आ रहा है. पहुंच और वरदहस्त के चलते अपराधी कैसे बड़े से बड़े अपराध कर पतले रास्ते से निकल भागने में कैसे सफल हो जाते हैं इसका भी खुलासा अपने आप हो जाता है. उज्जेैन के महाकाल मंदिर में उसने अपने आपको समर्पण करने के लिये सिखा-सिखाया जाल फेका चिल्ला चिल्लकर कहा कि मैं कानुपर का विकास दुबे देखों वे मुझे पकड़ रहे हैं. उसकी इस बात में यह साफ झलक रहा थ कि कहीं पुलिस मुठभेड़ न दिखा दे इसका पूरा प्रबंध किसी के कहने पर कर दिया. एनकाउंटर से बचने के लिये और न्यायालय की शरण जाकर लम्बे समय तक अपने आपको बचाने का इससे अच्छा ओर तरीका क्या हो सकता था. इस अपराधी को गिरफतार कर यूपी पुलिस अपने राज्य ले जा रही थी कि किन्तु रास्त्ते में हुए एनकाउंटर में वह मारा गया. इससे पूर्व उसकी अर्धांगिनी रिचा को भी गिरफतार कर लिया गया. हैदराबाद दुष्कर्म कांड के बाद वहां एनकाउंटर में दुष्कर्मियों के मरने के बाद हैदराबाद की जनता ने पुलिस को हाथों हाथ उठा लिया था लेकिन उत्तर प्रदेश पुलिस अपने ही पुलिस कर्मियों की हत्या करने वाले व्यक्ति को न पकड़ सकी और न ही एनकाउंटर कर सकी बल्कि वह शान से उनकी नाक के नीचे से निकलकर उज्जैन के महाकाल मंदिर तक पहुंच गया. इससे अंदाज लगाया जा सकता है कि कितना बड़ा वरदान इसे अपने उन आकाओं से प्राप्त था जो उनके संरक्षण में करता रहा. क्या यह सही हो सकता है कि जिस विकास को पकडऩे के लिए उत्तर प्रदेश, हरियाणा, उत्तराखंड, दिल्ली, और मध्य प्रदेश में अलर्ट जारी करने के बावजूद विकास सीसी टीवी में नजर आने और लोकेशन मिलने के बाद भी सात दिनों तक सात राज्यों की पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ा. वह पुलिस को गुमराह करता रहा या किसी का हाथ उसके सर को पनाह दे रहा था? विकास दुबे की गिरफ्तारी के बाद हिरासत में लिए गए दो वकील, निजी गाड़ी से उज्जैन गए थे वकीलों को भी उज्जैन से पुलिस हिरासत में लिया गया है.उत्तर प्रदेश पुलिस को चकमा देते हुए विकास मध्य प्रदेश कैसे पहुंच गया ये बड़ा सवाल ह ैपुलिस उसके गुर्गों का सफाया करने में लगी रही और विकास दुबे उज्जैन पहुंच गया सवाल यही है कि वहां तक पहुंचने में विकास की मदद कौन कर रहा था.आखिर राज्यों की सीमा और टोल नाकों पर तैनात पुलिसकर्मी और सीसीटीवी कैमरे क्या केवल खानापूर्ति के लिए अथवा सीधे साधे लोगों को तंग करने के लिये लगाये जाते हैं? बुधवार तक विकास दुबे की लोकेशन फरीदाबाद और एनसीआर बताई जा रही थी लेकिन यहां से वो उज्जैन कैसे पहुंचा? ये सवाल अब भी अनसुलझा है. फरीदाबाद से उज्जैन तक का सफर सड़क मार्ग से करने पर कम से कम 14 घंटे का समय लगता है. दोनों शहरों के बीच की दूरी लगभग 774 किलोमीटर है. अब इस सवाल का जवाब या तो पुलिस दे सकती है या फिर खुद विकास..सवाल यह भी उठ रहा है कि विकास दुबे को अब तक एक भी केस में सजा नहीं मिली; एनकाउंटर से तो बच गया, लेकिन क्या उम्रकैद और फांसी से बच पाएगा? अभी उसकी गिरफतारी पर पर राजनीति भी गर्म है.कांग्रेस,समाजवादी पार्टी उसकी नाटकीय गिरफ्तारी पर सवाल उठा रही है, लेकिन सवाल यह भी है कि अब आगे क्या होगा? क्या यह गिरफ्तारी या सरेंडर, विकास दुबे को एनकाउंटर से बचा लेगा? क्या उसकी जान बची रहेगी? आम जनता और पुलिसकर्मियों के बीच गैंगस्टर विकास दुबे के एनकाउंटर की मांग उठ रही है लेकिन यह संभव नहीं है संविधान का आर्टिकल 21 हर एक को जीने का अधिकार देता है. एक अपराधी को भी विकास दुबे के एनकाउंटर की मांग के बारे में सुप्रीम कोर्ट की डिविजन बैंच के एक्स्ट्रा-ज्युडिशियल हत्याओं यानी एनकाउंटर पर 2014 में दिए फैसले का अपना महत्व है. पीयूसीएल बनाम महाराष्ट्र्र केस में पीपुल्स यूनियन ऑफ सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) ने मुंबई पुलिस के 1995 से 1997 के बीच हुए एनकाउंटर्स में 90 अपराधियों की हत्या की वैधता पर सवाल उठाए थे. इसी तरह की याचिका 2018 में यूपी पुलिस के एनकाउंटर्स के खिलाफ भी दाखिल हुई है तब के चीफ जस्टिस आरएम लोढ़ा और जस्टिस आरएफ नरीमन ने 23 सितंबर, 2014 को फैसले में कहा था कि संविधान के आर्टिकल 21 के तहत हर व्यक्ति को जीने का अधिकार है सरकार भी उससे उसका यह अधिकार नहीं छीन सकती.कानपुर जेल पहुंच गया तो विकास दुबे का एनकाउंटर नहीं हो सकेगा. उज्जैन पहुंचना और नाटकीय रूप से गिरफ्तार होना साफ तौर पर जान बचाने के लिए सरेंडर है. ऐसे में पुलिस किसी का भी एनकाउंटर नहीं कर सकेगी? लेकिन अब एनकाउटंर भी हो गया. सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में पुलिस एनकाउंटरों के संबंध में दिशा-निर्देश जारी किए थे. हर एनकाउंटर की जांच जरूरी है. जांच खत्म होने तक इसमें शामिल पुलिसकर्मियों को प्रमोशन या वीरता पुरस्कार नहीं मिलता.एनकाउंटर आमतौर पर दो तरह के होते हैं- पहला, जिसमें कोई अपराधी पुलिस की हिरासत से भागने की कोशिश करता है. दूसरा, जब पुलिस किसी अपराधी को पकडऩे जाती है और वो जवाबी हमला कर देता है.
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