राजनीति में अपराधी-कब लगेगी रोक?

राजनीति में अपराधी-कब लगेगी रोक?
भारत की सर्वोच्च न्यायालय ने 14 फरवरी, 2020 को एक महत्त्वपूर्ण फैसला सुनाया था जिसमें सभी राष्ट्र्रीय और क्षेत्रीय राजनीतिक दलों को आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों की सूची दल की वेबसाइट के साथ सोशल मीडिया व अन्य सार्वजनिक मंचों पर साझा करने का निर्देश दिया है. राजनीतिक दलों को ऐसे उम्मीदवारों की जानकारी सार्वजनिक कर, उम्मीदवार के चयन के 72 घंटों के अंदर इस संदर्भ में चुनाव आयोग को सूचित करने का आदेश है,यदि कोई राजनीतिक दल सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों का पालन नहीं करता है तो इसे न्यायालय की अवमानना माना जाएगा और चुनाव आयोग ऐसे राजनीतिक दलों पर कार्रवाई भी कर सकता है.राजनीति के अपराधीकरण के बारे में क्या देश की सर्वोच्च अदालत के इस आदेश का सभी राजनीतिक दल पालन कर रहे हैं? कानपुर पुलिस हत्याकांड मे लिप्त व्यक्ति के राजनीति  से संबन्ध के परिपे्रक्ष्य में इस फैसले का महत्व अब सामने आ रहा है चूंकि कई राजनीतिक दल इस आदेश के बावजूद आंखों में पट्टी और कानों में रूई ठूसे बैठे हैं. राजनीति अपराधीकरण ने भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्था को बहुत धक्का पहुंचाया है और आम लोगों के विश्वास को ठेस पहुंचाई है.इसमें प्रमुख भूमिका स्वंय राजनीतिक दलों के कतिपय नेता और कतिपय सरकारी अफसर ही निभा रहे हैं.सर्वोच्च न्यायालय ने यह कदम राजनीति में आपराधिक पृष्ठभूमि के लोगों की बढ़ती संख्या पर नियंत्रण, चुनावी पारदर्शिता और जनता के प्रति राजनीतिक दलों के उत्तरदायित्वों को सुनिश्चित करने के लिये उठाया है.इस आदेश के तहत राजनीतिक दलों (केंद्र व राज्य स्तर पर) को अपने चयनित उम्मीदवारों पर चल रहे आपराधिक मामलों की विस्तृत जानकारी अपने वेबसाइट पर साझा करनी होती है इसमें अपराध की प्रकृति, चार्टशीट, संबंधित न्यायालय का नाम और केस नंबर आदि जानकारियाँ शामिल हैं। देश की स्वतंत्रता के समय ब्रिटिश शासन द्वारा अनेक भारतीय नेताओं पर कई झूठे आपराधिक मामले दर्ज किये गए थे, अत: उस समय आपराधिक पृष्ठभूमि को चुनाव में भाग लेने की बाधा के तौर पर नहीं लिया गया परंतु देश की स्वतंत्रता के बाद से ही राजनीति में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों के संदर्भ में प्रश्न उठते रहे हैं और पिछले कुछ वर्षों में इनमें भारी वृद्धि देखी गई है. कानपुर की घटना ने एक बार फिर बाहुबलियों की राजनीतिक दलों और पुलिस प्रशासन के भीतर सांठगांठ को उजागर किया है. राजनीति में बड़ी भूमिका हासिल करने के लिए प्रयत्नशील इन बाहुबलियों पर अंकुश लगाने की आवश्यकता है और इसके लिए सभी राजनीतिक दलों को अपनी इच्छाशक्ति का परिचय देना होगा, अन्यथा वह दिन दूर नहीं जब लोकतंत्र की प्रत्येक संस्था पर बाहुबलियों और उनके गुर्गों का कब्जा होगा और नेताओं की भूमिका गौण हो जायेगी. कानपुर के एक छोटे से गांव में विकास दुबे और उसके गुर्गों द्वारा अंधाधुंध गोलियां चलाकर आठ पुलिसकर्मियों की हत्या करना उसके दुस्साहस की कहानी बताता है निश्चित ही कोई भी अपराधी राजनीतिक संरक्षण और पुलिस तथा प्रशासन में अपनी पैठ के बगैर इस तरह की वारदात नहीं कर सकता। इससे पहले भी अनेक ऐसी घटनायें हुई हैं, जिनमें आपराधिक गतिविधियों में संलिप्त व्यक्तियों के किसी न किसी राजनीतिक दल के साथ रिश्ते उजागर हुए थे, बाहुबलियों को अपने साथ रखने या अपने राजनीतिक दल में शामिल करने या फिर उन्हें चुनाव के मैदान में उतारने में लगभग सभी राजनीतिक दलों ने अपनी-अपनी तरह से भूमिका निभाई है। यह घटना एक बार फिर संगठित अपराधियों, माफिया, नेताओं और पुलिस तथा प्रशासन के लोगों की सांठगांठ की ओर इशारा करती है।  मुंबई में 1993 के सिलसिलेवार बम विस्फोट कांड के बाद जुलाई, 1993 में पूर्व गृह सचिव एनएन वोहरा की अध्यक्षता में गठित समिति की सिफारिशों की ओर ध्यान खींचती है। इस समिति का गठन संगठित अपराधियों और माफिया संगठनों की गतिविधियों के बारे में जानकारी एकत्र करना था, जिन्हें सरकारी अधिकारियों और नेताओं से संरक्षण मिलता था।वोहरा समिति की रिपोर्ट सार्वजनिक कराने के लिए राज्यसभा सांसद दिनेश त्रिवेदी ने उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था लेकिन उन्हें वहां से अपेक्षित राहत नहीं मिली। इसके साथ ही न्यायालय ने वोहरा समिति के निष्कर्षों की गहराई से जांच करने और इस तरह की गतिविधियों में संलिप्त व्यक्तियों पर कानूनी कार्रवाई सुनिश्चित करने के लिये एक उच्चस्तरीय समिति गठित करने की सिफारिश की थी। हालांकि, इसके बाद अनेक अवसरों पर शीर्ष अदालत राजनीति के अपराधीकरण पर चिंता व्यक्त कर चुकी है। उसने आपराधिक प्रवृत्ति वाले व्यक्तियों को लोकतांत्रिक प्रक्रिया से बाहर करने के लिये अनेक दिशा निर्देश भी दिये। लेकिन राजनीतिक लाभ-हानि को ध्यान में रखते हुए इस मुद्दे पर राजनीतिक दलों में आम राय नहीं बन पा रही है। इसी का ही नतीजा है कि कल तक नेताओं के साथ तस्वीर खिंचाने वाले संदिग्ध छवि के लोग आज खुद लोकतांत्रिक संस्थाओं में पहुंचने लगे हैं।

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