तालमेल का अभाव!
रायपुर गुरूवार।दिनांक 2 सितंबर 2010
तालमेल का अभाव!
लोग कहने लगे हैं कांग्रेस को यह क्या हो गया? उसके नेताओं के बयान एक दूसरे से मेल नहीं खाते। एक मंत्री कुछ कहता है तो दूसरा कुछ। यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी और प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की इन मामलों में चुप्पी के संबंध में भी लोग यही कहते हैं कि या तो ऐसे मामलों में वे या तो मजा लेते रहते हैं या चुप्पी साधे रहना ही उचित समझते हैं। यह नहीं कि कांग्रेस ही इस रोग से पीड़ित है, विपक्ष विशेष कर भाजपा को भी यही बीमारी लगी है। अरूण जेटली और सुषमा स्वराज के बीच भी मतभेद अक्सर उभरकर सामने आ जाते हैं। भाजपा के बीच जो मतभेद पैदा होते हैं, उसे कई हद तक सार्वजनिक होने के पहले ही दबा दिया जाता है। जबकि कांग्रेस में ऐसा नहीं है। उसके नेताओं के वक्तव्य एक मुंह से निकलने के बाद गली- कूचों में घूमने लगता है। केन्द्रीय गृह मंत्री पी चिदंबरम और मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के बीच ऐसी कौन सी टसल है कि चिदंबरम का कोई बयान आया नहीं कि दिग्विजय सिह अपना आपा खो बैठते हैं। भगवा आतंकवाद के मामले में चिंदबरम के वक्तव्य का पहले दिग्विजय सिंह ने एक तरह से समर्थन किया किन्तु, दूसरे ही दिन उन्होने इस बयान में संशोधन कर दूसरे ढंग से पेश कर चिदंबरम को आड़े हाथ लेने का प्रयास किया। पी चिंदबरम और दिग्विजय सिंह के बीच वाक बयानबाज़ी शुरू हुए एक लंबा अरसा हो गया लेकिन इसपर न कांग्रेस नत़त्व ने कुछ कहा और न ही प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने। छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद का मुद्दा और भोपाल गैस ट्रेजड़ी पर आये फ़ैसलों पर भी इन दोनों नेताओं के बयानों का जनता ने जमकर मजा लिया। जहां तक मंत्रिमंडल के अन्य कतिपय सदस्यों की बात है। वे भी एक के बाद एक बयानबाज़ी में उलझते रहे हैं। चाहे वह जय राम रमेश हो, चाहे कपिल सिब्बल या अन्य मंत्री। कुछ मंिित्रयों के बयान ने तो सरकार तक का परेशानी में डाल दिया। इसके बावजूद न तो प्रधानमंत्री ने कोई संज्ञान लिया और न ही कांग्रेस की ओर से कोई कार्रवाई इन बयानों के मामले में की गई। चीन में एक मंत्री के विवादास्पद बयान के बाद प्रधानमंत्री को हस्तक्षेप करना पड़ा था। हालांकि विपक्ष भी तालमेल की कमी से जूझ रहा है किन्तु अवसर मिलने पर वे मंत्रियों के बीच तालमेल के अभाव का फायदा उठाने लगते हैं। संसद में शिक्षा अधिकरण के गठन का बिल, पुलिस हिरासत में अत्याचार रोकने का बिल और परमाणु जनादित्य बिल इस समय विपक्ष के टारगेट पर है। तीन बिल तो गृह मंत्री पी चिदंबरम के मंत्रालय से संबंधित हैं। जिसपर तालमेल का अभाव है। विपक्ष मंत्रियों में तालमेल नहीं बैठने की स्थिति को भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा। ऐसे में शीर्ष सत्ता की खामोशी विवादों को और सुलझाने का ही काम कर रही है।
तालमेल का अभाव!
लोग कहने लगे हैं कांग्रेस को यह क्या हो गया? उसके नेताओं के बयान एक दूसरे से मेल नहीं खाते। एक मंत्री कुछ कहता है तो दूसरा कुछ। यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी और प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की इन मामलों में चुप्पी के संबंध में भी लोग यही कहते हैं कि या तो ऐसे मामलों में वे या तो मजा लेते रहते हैं या चुप्पी साधे रहना ही उचित समझते हैं। यह नहीं कि कांग्रेस ही इस रोग से पीड़ित है, विपक्ष विशेष कर भाजपा को भी यही बीमारी लगी है। अरूण जेटली और सुषमा स्वराज के बीच भी मतभेद अक्सर उभरकर सामने आ जाते हैं। भाजपा के बीच जो मतभेद पैदा होते हैं, उसे कई हद तक सार्वजनिक होने के पहले ही दबा दिया जाता है। जबकि कांग्रेस में ऐसा नहीं है। उसके नेताओं के वक्तव्य एक मुंह से निकलने के बाद गली- कूचों में घूमने लगता है। केन्द्रीय गृह मंत्री पी चिदंबरम और मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के बीच ऐसी कौन सी टसल है कि चिदंबरम का कोई बयान आया नहीं कि दिग्विजय सिह अपना आपा खो बैठते हैं। भगवा आतंकवाद के मामले में चिंदबरम के वक्तव्य का पहले दिग्विजय सिंह ने एक तरह से समर्थन किया किन्तु, दूसरे ही दिन उन्होने इस बयान में संशोधन कर दूसरे ढंग से पेश कर चिदंबरम को आड़े हाथ लेने का प्रयास किया। पी चिंदबरम और दिग्विजय सिंह के बीच वाक बयानबाज़ी शुरू हुए एक लंबा अरसा हो गया लेकिन इसपर न कांग्रेस नत़त्व ने कुछ कहा और न ही प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने। छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद का मुद्दा और भोपाल गैस ट्रेजड़ी पर आये फ़ैसलों पर भी इन दोनों नेताओं के बयानों का जनता ने जमकर मजा लिया। जहां तक मंत्रिमंडल के अन्य कतिपय सदस्यों की बात है। वे भी एक के बाद एक बयानबाज़ी में उलझते रहे हैं। चाहे वह जय राम रमेश हो, चाहे कपिल सिब्बल या अन्य मंत्री। कुछ मंिित्रयों के बयान ने तो सरकार तक का परेशानी में डाल दिया। इसके बावजूद न तो प्रधानमंत्री ने कोई संज्ञान लिया और न ही कांग्रेस की ओर से कोई कार्रवाई इन बयानों के मामले में की गई। चीन में एक मंत्री के विवादास्पद बयान के बाद प्रधानमंत्री को हस्तक्षेप करना पड़ा था। हालांकि विपक्ष भी तालमेल की कमी से जूझ रहा है किन्तु अवसर मिलने पर वे मंत्रियों के बीच तालमेल के अभाव का फायदा उठाने लगते हैं। संसद में शिक्षा अधिकरण के गठन का बिल, पुलिस हिरासत में अत्याचार रोकने का बिल और परमाणु जनादित्य बिल इस समय विपक्ष के टारगेट पर है। तीन बिल तो गृह मंत्री पी चिदंबरम के मंत्रालय से संबंधित हैं। जिसपर तालमेल का अभाव है। विपक्ष मंत्रियों में तालमेल नहीं बैठने की स्थिति को भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा। ऐसे में शीर्ष सत्ता की खामोशी विवादों को और सुलझाने का ही काम कर रही है।
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