सुरक्षा सुपरवाइजर की हत्या,परदे के पीछे आखिर क्या हुआ था ?

रायपुर दिनांक 15 sept

सुरक्षा सुपरवाइजर की हत्या,परदे
के पीछे आखिर क्या हुआ था ?
किसके इशारे पर पुलिस कर्मियों ने बिलासपुर में सुरक्षा सुपरवाइजर पर हमला किया था? क्या यह स्वस्फूर्र्त एक आकस्मिक आवेश में हुआ हमला था या किसी के निर्देश पर इसे अंजाम दिया गया? हांलाकि बिलासपुर में पुलिस कर्मियों द्वारा सुरक्षा सुपरवाइजर की हत्या मामले की दंडाधिकारी जांच का आदेश हुआ है लेकिन कई तथ्य ऐसे हैं जिसका भेद कभी न खुले। यह हत्याकांड हमें बताता है कि हम कानून के आगे कैसे बे बस हैं? यह दर्शाने के लिये यूं तो कई उदाहरण है लेकिन रविवार को फिल्म दबंग देखने पहुंचे पुलिस अधिकारी के लोगों ने एक सुरक्षा सुपरवाइजर को सिर्फ इसलिये पीट- पीट कर मार डाला चूंकि उसने साहब को पहचाना नहीं और उनसे कथित रूप से बदसलूकी कर डाली। बदसलूकी के बाद पुलिस अधीक्षक तो अपने रास्ते चल दिये लेकिन अचानक पुलिस कर्मियों में अपने अफ़सर पर इतना प्रेम कैसे उमड़ पड़ा कि उन्होंने उस व्यक्ति को पीट- पीट कर मार डाला। क्या यह आदेश पुलिस अफ़सर के जाने के बाद पीछे से वायरलेस या मोबाइल से आया था कि जिसने हमारे एसपी के साथ बदसलूकी की है,उसे अच्छा सबक सिखा दिया जा ये। चूंकि हमारी पुलिस इतनी स्वामी भक्त भी नहीं है कि वह अपने से होकर ऐसा निर्णय ले सके। कई ऐसे मामले हैं जिनमें आम लोगों के साथ बदसलूकी होती रही है और पुलिस खड़े- खड़े सारा माजरा मूक दर्शक की तरह देखती रही है। रायपुर में फ्रेण्ड्स डे पर महिलाओं के साथ जो कुछ हुआ। उसे लोग अभी भूले नहीं होंगे। बिलासपुर में आम लोगों के सामने सुरक्षा सुपरवाइजर को पीटा गया। इसके अनेक गवाह हैं लेकिन जो पोस्ट मार्टम रिपोर्ट आई वह यह कह रही है कि मृतक के शरीर पर चोट के कोई निशान नहीं है। फिर इस व्यक्ति की मौत कैसे हुई? कई पुलिस वालों ने सरेराह पीटा किन्तु चोट के एक भी निशान नहीं हैं। इस कांड के आरोपियों के लिये सिर्फ इतना ही काफी है कि वह हत्या के आरोप से बरी हो जायें। सवाल यह उठता है कि आखिर अहम साक्ष्य को मिटाने के लिये यह सब कैसे किया गया और कैसे- कैसे हथकण्डे किसके कहने पर अपनाये गये? ऐसे सैकड़ों मामले हैं जिनमें प्रत्यक्ष अपनी आंखों से देखने वाले गवाह मौजूद रहते हैं। फिर भी अपराधी पतली गली से निकल कर बाहर आ जाते हैं। पैसे और प्रभाव के आगे काननू बेबस है। पुलिस जो अत्याचार आम लोगों पर करती है, उसमें किस ढंग से मामले को दबाया जाता है। वह बिलासपुर कांड से अपने आप स्पष्ट हो जाता है। पुलिस ने यद्यपि इस मामले में दो पुलिस वालों को गिरफ़्तार कर अपनी निष्पक्षता को दर्शाने का प्रयास किया है लेकिन क्या इस हत्याकांड में सिर्फ दो ही पुलिस कर्मी थे? प्रशासन ने इस पूरे मामले को बड़े सहज ढंग से सलटाने का प्रयास किया। एसपी ने इस पूरे कांड से हाथ खींच लिया। कलेक्टर ने तुरन्त दण्डाधिकारी जांच के आदेश देकर मामले को आसानी से ठंडा करने का प्रयास किया। क्योंकि दण्डाधिकारीय जांच प्रशासन का एक ऐसा हथियार है जो जनता के गुस्से को ठंडा करने के लिये वर्षो से इस्तेमाल किया जाता है। पोस्टमार्टम करने वालों ने संपूर्ण मामले को दबाने का भरपूर प्रयास किया,यह सब किसने करवाया? पूरा मामला दिलचस्प किंतु गंभीर है। अब यह भी खबर है कि सरकार ने मामले की न्यायिक जांच कराने का फैसला किया है। अगर गहराई से छानबीन की जा ये तो कई तथ्यों से पर्दा हटेगा।

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