राज्यपाल सीएम को नहीं बुलाया गया?
रायपुर दिनांक 30 सितंबर 2010
एक्ट की बात सही, किंतु कौन से कारण थे
जो राज्यपाल सी एम को नहीं बुलाया गया?
राज्यपाल, मुख्यमंत्री और प्रदेश के नेताओं को एन आईटी के कार्यक्रम में क्यों नहीं बुलाया गया? कौन से ऐसे कारण थे जिसके चलते एन आईटी प्रबंधन ने केन्द्रीय विधि मंत्री को तो कार्यक्रम का मुख्य अतिथि बनाया लेकिन प्रदेश के राज्यपाल जो कुलाधिपति भी हैं, मुख्य मंत्री तथा शिक्षा मंत्री को दीक्षांत समारोह में बुलाना उचित नहीं समझा। संदर्भ था प्रदेश के सबसे बड़े प्रोद्योगिकी महाविद्यालय के पहले दीक्षांत समारोह का जिसके आयोजन की तैयारी पिछले कुछ दिनों से चल रही थी। इस चर्चित दीक्षांत समारोह में न राज्य के राज्यपाल शामिल हुए न मुख्यमंत्री और न ही प्रदेश के शिक्षा मंत्री। क्यों हुआ ऐसा? क्या इन बड़ी हस्तियों को बुलाना उचित नहीं समझा गया? और ऐसा समझा गया तो क्या कारण थे? इस विवाद से बचने के लिये विधि मंत्री वीरप्पा मो इली को एक्ट का सहारा क्यों लेना पडा? क्या यह पहले से तय था या किसी का निर्देश था कि राज्यपाल या कुलाधिपति सहित प्रदेश सरकार के किसी भी व्यक्ति को इस कार्यक्रम में नहीं बुलाया जा ये? वीरप्पा मोइली ने इस संदर्भ में एन आईटी अधिनियम का हवाला देते हुए कहा है कि- एक्ट के तहत दीक्षांत समारोह में राज्यपाल या मुख्यमंत्री को बुलाने के लिये बाध्य नहीं है। किंतु क्या नैतिकता के नाते व उस स्थिति में जबकि यह दोनों हस्तियां प्रदेश में विशेष कर उस तिथि व समय पर जबकि कार्यक्रम चल रहा था तब मौजूद थे। तब उन्हें इस कार्यक्रम से दूर रखना उनका अपमान नहीं? कया इसका सीधा- सीधा अर्थ यह नहीं है कि आयोजकों ने इन प्रमुख हस्तियों की पूर्णत: उपेक्षा की?ं मुख्यमंत्री व उच्च शिक्षा मंत्री प्राय: हर कार्यक्रम के लिये सहज उपलब्ध रहते हैं। प्रदेश व राष्ट्रीय स्तर के इस कार्यक्रम में ऐसा कौन सा कारण बाधक बन गया, जो इस कार्यक्रम में इन हस्तियों की उपेक्षा की गई? हाल ही पत्रकारिता विश्वविद्यालय भवन शिलान्यास कार्यक्रम,जिसके मुख्य अतिथि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गड़करी थे- पूरी सरकार उमड़ पड़ी थी। वहीं प्रदेश के सबसे बड़े राष्ट्रीय प्रोद्योगिकी संस्थान के कार्यक्रम में प्रदेश के सारे नेताओं की अनुपस्थिति अपने आप में दिलचस्प बन पड़ी है। लोग संभावना भटगांव चुनाव को लेकर भी लगा रहे हैं कि नेताओं का हुजूम वहां व्यस्त रहा होगा, किंतु बड़े नेताओं के लिये इस कार्यक्रम में शामिल न होना एक यक्ष प्रश्न बना हुआ है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गड़करी द्वारा पत्रकारिता विश्वविद्यालय की नींव रखने के बारे में चर्चा रही कि इस कार्यक्रम में उनको बुलाकर इसे राजनीतिक रूप दिया गया। एनआईटी के कार्यक्रम में नेताओं की लुप्तता का कारण यही तो नहीं? क्या यह केन्द्र और राज्य के बीच खिंची तलवार की एक झलक तो नहीं थी? मगर इस संदेह को भी हम इसलिये मान नहीं सकते, क्योंकि फिलहाल केन्द्र और राज्य के बीच ऐसी कोई टकराव की स्थिति नहीं है। एनआईटी का अपना गौरवशाली इतिहास रहा है। 14 सिंतबर 1956 को भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने इंजीनियरिंग कालेज भवन की आधारशिला रखी थी और 14 मार्च 1963 को तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इसका उदघाटन किया था। सन् 2005 में इंजीनियरिंग कालेज को अपग्रेड कर एन आईटी किया गया। प्रथम दीक्षांत समारोह भी उसी गरिमा के साथ धूमधाम से आयोजित होगा, इसकी कल्पना सभी को थी लेकिन प्रबंधन से निराशा ही मिली। कुछ पुराने छात्रों को इस आयोजन में शामिल होने के लिये बुलाया गया और सिर्फ कुछ ही पल में कार्यक्रम कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली गई। गौरव बढ़ा या घटा?
एक्ट की बात सही, किंतु कौन से कारण थे
जो राज्यपाल सी एम को नहीं बुलाया गया?
राज्यपाल, मुख्यमंत्री और प्रदेश के नेताओं को एन आईटी के कार्यक्रम में क्यों नहीं बुलाया गया? कौन से ऐसे कारण थे जिसके चलते एन आईटी प्रबंधन ने केन्द्रीय विधि मंत्री को तो कार्यक्रम का मुख्य अतिथि बनाया लेकिन प्रदेश के राज्यपाल जो कुलाधिपति भी हैं, मुख्य मंत्री तथा शिक्षा मंत्री को दीक्षांत समारोह में बुलाना उचित नहीं समझा। संदर्भ था प्रदेश के सबसे बड़े प्रोद्योगिकी महाविद्यालय के पहले दीक्षांत समारोह का जिसके आयोजन की तैयारी पिछले कुछ दिनों से चल रही थी। इस चर्चित दीक्षांत समारोह में न राज्य के राज्यपाल शामिल हुए न मुख्यमंत्री और न ही प्रदेश के शिक्षा मंत्री। क्यों हुआ ऐसा? क्या इन बड़ी हस्तियों को बुलाना उचित नहीं समझा गया? और ऐसा समझा गया तो क्या कारण थे? इस विवाद से बचने के लिये विधि मंत्री वीरप्पा मो इली को एक्ट का सहारा क्यों लेना पडा? क्या यह पहले से तय था या किसी का निर्देश था कि राज्यपाल या कुलाधिपति सहित प्रदेश सरकार के किसी भी व्यक्ति को इस कार्यक्रम में नहीं बुलाया जा ये? वीरप्पा मोइली ने इस संदर्भ में एन आईटी अधिनियम का हवाला देते हुए कहा है कि- एक्ट के तहत दीक्षांत समारोह में राज्यपाल या मुख्यमंत्री को बुलाने के लिये बाध्य नहीं है। किंतु क्या नैतिकता के नाते व उस स्थिति में जबकि यह दोनों हस्तियां प्रदेश में विशेष कर उस तिथि व समय पर जबकि कार्यक्रम चल रहा था तब मौजूद थे। तब उन्हें इस कार्यक्रम से दूर रखना उनका अपमान नहीं? कया इसका सीधा- सीधा अर्थ यह नहीं है कि आयोजकों ने इन प्रमुख हस्तियों की पूर्णत: उपेक्षा की?ं मुख्यमंत्री व उच्च शिक्षा मंत्री प्राय: हर कार्यक्रम के लिये सहज उपलब्ध रहते हैं। प्रदेश व राष्ट्रीय स्तर के इस कार्यक्रम में ऐसा कौन सा कारण बाधक बन गया, जो इस कार्यक्रम में इन हस्तियों की उपेक्षा की गई? हाल ही पत्रकारिता विश्वविद्यालय भवन शिलान्यास कार्यक्रम,जिसके मुख्य अतिथि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गड़करी थे- पूरी सरकार उमड़ पड़ी थी। वहीं प्रदेश के सबसे बड़े राष्ट्रीय प्रोद्योगिकी संस्थान के कार्यक्रम में प्रदेश के सारे नेताओं की अनुपस्थिति अपने आप में दिलचस्प बन पड़ी है। लोग संभावना भटगांव चुनाव को लेकर भी लगा रहे हैं कि नेताओं का हुजूम वहां व्यस्त रहा होगा, किंतु बड़े नेताओं के लिये इस कार्यक्रम में शामिल न होना एक यक्ष प्रश्न बना हुआ है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गड़करी द्वारा पत्रकारिता विश्वविद्यालय की नींव रखने के बारे में चर्चा रही कि इस कार्यक्रम में उनको बुलाकर इसे राजनीतिक रूप दिया गया। एनआईटी के कार्यक्रम में नेताओं की लुप्तता का कारण यही तो नहीं? क्या यह केन्द्र और राज्य के बीच खिंची तलवार की एक झलक तो नहीं थी? मगर इस संदेह को भी हम इसलिये मान नहीं सकते, क्योंकि फिलहाल केन्द्र और राज्य के बीच ऐसी कोई टकराव की स्थिति नहीं है। एनआईटी का अपना गौरवशाली इतिहास रहा है। 14 सिंतबर 1956 को भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने इंजीनियरिंग कालेज भवन की आधारशिला रखी थी और 14 मार्च 1963 को तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इसका उदघाटन किया था। सन् 2005 में इंजीनियरिंग कालेज को अपग्रेड कर एन आईटी किया गया। प्रथम दीक्षांत समारोह भी उसी गरिमा के साथ धूमधाम से आयोजित होगा, इसकी कल्पना सभी को थी लेकिन प्रबंधन से निराशा ही मिली। कुछ पुराने छात्रों को इस आयोजन में शामिल होने के लिये बुलाया गया और सिर्फ कुछ ही पल में कार्यक्रम कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली गई। गौरव बढ़ा या घटा?
ऐसा भी होता है .
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