वरना आज भाटापारा कल छत्तीसगढ़ पटरी पर दिखेगा!

रायपुर दिनांक 22 सितंबर

रेलवे वक्त के साथ चले वरना आज भाटापारा
कल छत्तीसगढ़ पटरी पर दिखेगा!
जन सुविधाओं की उपेक्षा सरकार के साथ- साथ देश को भी महंगी पड़ सकती है। यह बात भाटापारा में सर्वदलीय मंच के रेले रो को आंदोलन ने सिद्ध कर दिया है। पखवाड़े भर पहले भाटापारा सर्वदलीय मंच ने रेलवे को आगाह कर दिया था कि अगर भाटापारा में सुविधा बढ़ाने के मामले में उनकी मांगों को अन देखा किया गया तो उसका परिणाम बुरा होगा। रेलवे ने जनता की बातों को गंभीरता से नहीं लिया और लोग पटरी पर उतर आये। इस छोटे से आंदोलन ने थोड़ी ही देर में जहां हावड़ा-मुम्बई ट्रेन सेवा को अस्त व्यस्त कर दिया वहीं रेलवे को इससे भारी नुकसान हुआ। देश की महत्वपूर्ण यात्री ट्रेनें इसी मार्ग से चलती है। जबकि हावड़ा-मुम्बई के बीच का यह महत्वपूर्ण ट्रेक है। हजारों यात्री इस रेल मार्ग से निकलने वाली लम्बी दूरी की ट्रेनों में सफर करते हैं। भाटापारा में हुए आंदोलन से इस रूट के यात्रियों को जहां अपनी यात्रा में और घंटे जोड़ने पड़े वहीं कई मालगाडिय़ों को भी घंटों इस रूट पर रूकना पड़ा। आंदोलन से एक बात यह साफ हुई कि सरकार आंदोलन या तोडफ़ोड की भाषा ही समझती है। हड़ताल, आंदोलन किसी को पसंद नहीं लेकिन जन सुविधाओं की अवहेलना होने लगे तो इसका दूसरा उपाय क्या हो सकता है। रेलवे का बिलासपुर जोन यात्री व माल ढोने के मामले में आज से नहीं राज्य बनने से पहले अग्रणी रहा है। यहां से पहले जहां चावल रेक में भर- भरकर विदेशों को निर्यात होता था। वहीं आज भी कोयला, लोहा, खनिज, एल्यूमीनियम तथा अन्य कीमती वस्तुओं को दूसरे राज्यों के साथ विदेशों को भी भेजा जाता है। इसके बावजूद भाटापारा सहित पूरे छत्तीसगढ़ के लोगों की छोटी सी मांग को मंज़ूर करने या उसपर किसी प्रकार का आश्वासन देने में रेल प्रशासन ने कई साल लगा दिये। रेल सुविधाओं में बढ़ोत्तरी की मांग इस अंचल के नागरिक वर्षो से करते आ रहे हैं किन्तु यहां जो सुविधाऐं प्रदान की जाती है। वह एक तरह से भीख दे रहे हैं जैसी दी जाती है। जब इस प्रदेश से भारी राजस्व केन्द्र के खजाने में जाता है, तो उसे सुविधाएँ बढाऩे में क्या तकलीफ़? कोलकाता, पटना, उत्तर प्रदेश से अब तक रेल मंत्री बनते आये हैं। इन रेल मंत्रियों का अपने राज्य के सिवा किसी दूसरे राज्य से कोई लेना- देना नहीं। बजट में जितनी भी सुविधाएँ बढ़ती हैं, वे सारी की सारी इन मंत्रियों के क्षेत्र की होती हैं जबकि सर्वाधिक आय केन्द्र की झोली में डालने वाले छत्तीसगढ़ का हाल यह है कि उसे छोटी- छोटी सुविधा के लिये भी आंदोलन का रास्ता अख्तियार करना पड़ता है। अगर छत्तीसगढ में भाटापारा जैसा संगठित आदोलन रेलवे सुविधाओं में बढ़ोत्तरी को लेकर होता है। तो इसका खामियाजा रेलवे को भुगतना पड़ सकता है। अत: रेलवे को इस छोटे पैमाने पर हुए किंतु गंभीर आंदोलन से सबक लेना चाहिये कि वह इस अंचल को कम से कम जानबूझकर तो सुविधाओं से वंचित न करें वरना आज भाटापारा तो कल छत्तीसगढ़ पटरियों पर दिखाई देगा।

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