फैसला होकर ही रहेगा!
रायपुर, दिनांक 28 सितंबर
फैसला होकर ही रहेगा!
फैसला जो भी हो इसे टाला नहीं जाना चाहिये- सुप्रीम कोर्ट के मंगलवार को अयोध्या विवाद पर सुलह की अर्जी को खारिज करते वक्त दिये गये फैसले का सार कुछ यही था। इस महीने की चौबीस तारीख को इलाहाबाद उच्च न्यायालय को देश के सबसे पुराने अयोध्या राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर फैसला सुनाना था। लेकिन रमेश चंद त्रिपाठी ने सुप्रीम कोर्ट में यह कहते हुए याचिका लगाई कि मामले का हल आपसी समझौते से निकालने के लिये फैसले को टाला जाना चाहिये। किंतु सुप्रीम कोर्ट ने उनकी याचिका को खारिज कर दिया और हाइर्कोर्र्ट की बैंच से कहा कि- वह एक- दो दिन में इस मामले पर फैसला सुनाए। हाईकोर्ट का निर्णय इलाहाबाद हाईकोर्ट के बदले लखनऊ हाई कोर्ट की बैच में सुनाया जायेगा। सुप्रीम कोर्ट द्वारा याचिका खारिज करने के बाद इस विवादास्पद मसले पर फैसला शुक्रवार तीस सितंबर को आने की संभावना है। हाई कोर्ट के एक जज अक्टूबर में रिटायर हो रहे हैं। इसलिये भी यह जरूरी है कि फैसला तीस सितंबर से पहले हो जाए। अब सबकी निगाहें हाईकोर्ट के फैसले पर है? क्या होगा फैसला? निर्णय हिंदुओं के पक्ष में होगा या मुसलमानों के? फैसले के बाद दोनों पक्षों की प्रतिक्रिया क्या होगी? कई सवाल उठ खड़े हुए हैं। इस बीच यह भी निश्चित है कि हाईकोर्ट का निर्णय जो भी आये विवाद यहां से निकल कर सुप्रीम कोर्ट जाना ही है। यद्यपि दोनों पक्षों के कई बड़े- बड़े नेताओं व धार्मिक गुरुओं ने विश्वास दिलाया है कि अदालत के फैसले को स्वीकार कर लिया जायेगा। मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने जो निर्णय दिया उसका देश के दो बड़े राजनीतिक दलों कांग्रेस व भाजपा ने स्वागत किया है। मुस्लिमों के एक धार्मिक गुरु अंसारी ने तो यहां तक कह दिया कि हम अदालत का दर्जा काजी को देते हैं। वह जो भी फैसला देगा हमें मान्य होगा। कई हिन्दू धार्मिक नेताओं ने भी अदालत के फैसले को स्वीकार करने की बात कही है किंतु इस फैसले से दिल्ली में कामनवेल्थ गेम्स के प्रभावित होने अथवा खत्म होने की संभावना देश विदेश के टिप्पणीकारो ने की है हालाकि इसकी संभावना कम ही है। इलाहाबाद हाई कोर्ट की बैच क्या फैसला देगी?यह किसी को नहीं मालूम लेकिन इस विवाद पर एक नजर डालें तो यह अपने आप में एक अनोखा मामला है। जो शायद फैसले के बाद भी उलझा हुआ ही रहेगा। सन 1528 में मीर बाकी ने बाबर के नाम पर मस्जिद बन वाई जिसे लेकर कुछ हिंदुओं का दावा है कि मस्जिद भगवान राम की जन्म भूमि पर बना है। 1853 में इसको लेकर हिन्दू-मुस्लिम लड़ पड़े। अंग्रेजों ने इसपर फै सला दिया कि मुसलमान मस्जिद के अंदर और हिन्दू मस्जिद के बाहरी हिस्से में प्रार्थना करें। 1949 में मस्जिद में किसी ने भगवान राम की मूर्ति रख दी और यहां से विवाद कोर्ट में चला गया। 1989 में विश्व हिन्दू परिषद ने अपना अभियान तेज किया और विवादित स्थल के करीब राम मंदिर की नींव रखी। 6 दिसंबर को देशभर से जुटे कारसेवकों ने बाबरी मस्जिद को ढहा दिया। तब से लेकर अब तक यह मामला चर्चा का विषय है। देश में इस मुद्दे को लेकर जहां सांप्रदायिक दंगे हुए और सत्ता पर भाजपा काबिज भी हुई। भाजपा ने वायदा किया था कि वह सत्ता में आने के बाद राम मंदिर बनवा देगी, लेकिन उसने अपना वादा पूरा नहीं किया। जनता ने आगे आने वाले वर्षो में उसे सत्ता से बे दखल कर दिया। यह मामला अति संवेदनशील होने के बाद भी पुराना पड़ गया। जनता का उतना समर्थन इस विवाद पर अब शायद न मिले जितना पहले मिला था। फिलहाल सबकी नजर लखनऊ में हाईकोर्ट के फैसले पर है।
फैसला होकर ही रहेगा!
फैसला जो भी हो इसे टाला नहीं जाना चाहिये- सुप्रीम कोर्ट के मंगलवार को अयोध्या विवाद पर सुलह की अर्जी को खारिज करते वक्त दिये गये फैसले का सार कुछ यही था। इस महीने की चौबीस तारीख को इलाहाबाद उच्च न्यायालय को देश के सबसे पुराने अयोध्या राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर फैसला सुनाना था। लेकिन रमेश चंद त्रिपाठी ने सुप्रीम कोर्ट में यह कहते हुए याचिका लगाई कि मामले का हल आपसी समझौते से निकालने के लिये फैसले को टाला जाना चाहिये। किंतु सुप्रीम कोर्ट ने उनकी याचिका को खारिज कर दिया और हाइर्कोर्र्ट की बैंच से कहा कि- वह एक- दो दिन में इस मामले पर फैसला सुनाए। हाईकोर्ट का निर्णय इलाहाबाद हाईकोर्ट के बदले लखनऊ हाई कोर्ट की बैच में सुनाया जायेगा। सुप्रीम कोर्ट द्वारा याचिका खारिज करने के बाद इस विवादास्पद मसले पर फैसला शुक्रवार तीस सितंबर को आने की संभावना है। हाई कोर्ट के एक जज अक्टूबर में रिटायर हो रहे हैं। इसलिये भी यह जरूरी है कि फैसला तीस सितंबर से पहले हो जाए। अब सबकी निगाहें हाईकोर्ट के फैसले पर है? क्या होगा फैसला? निर्णय हिंदुओं के पक्ष में होगा या मुसलमानों के? फैसले के बाद दोनों पक्षों की प्रतिक्रिया क्या होगी? कई सवाल उठ खड़े हुए हैं। इस बीच यह भी निश्चित है कि हाईकोर्ट का निर्णय जो भी आये विवाद यहां से निकल कर सुप्रीम कोर्ट जाना ही है। यद्यपि दोनों पक्षों के कई बड़े- बड़े नेताओं व धार्मिक गुरुओं ने विश्वास दिलाया है कि अदालत के फैसले को स्वीकार कर लिया जायेगा। मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने जो निर्णय दिया उसका देश के दो बड़े राजनीतिक दलों कांग्रेस व भाजपा ने स्वागत किया है। मुस्लिमों के एक धार्मिक गुरु अंसारी ने तो यहां तक कह दिया कि हम अदालत का दर्जा काजी को देते हैं। वह जो भी फैसला देगा हमें मान्य होगा। कई हिन्दू धार्मिक नेताओं ने भी अदालत के फैसले को स्वीकार करने की बात कही है किंतु इस फैसले से दिल्ली में कामनवेल्थ गेम्स के प्रभावित होने अथवा खत्म होने की संभावना देश विदेश के टिप्पणीकारो ने की है हालाकि इसकी संभावना कम ही है। इलाहाबाद हाई कोर्ट की बैच क्या फैसला देगी?यह किसी को नहीं मालूम लेकिन इस विवाद पर एक नजर डालें तो यह अपने आप में एक अनोखा मामला है। जो शायद फैसले के बाद भी उलझा हुआ ही रहेगा। सन 1528 में मीर बाकी ने बाबर के नाम पर मस्जिद बन वाई जिसे लेकर कुछ हिंदुओं का दावा है कि मस्जिद भगवान राम की जन्म भूमि पर बना है। 1853 में इसको लेकर हिन्दू-मुस्लिम लड़ पड़े। अंग्रेजों ने इसपर फै सला दिया कि मुसलमान मस्जिद के अंदर और हिन्दू मस्जिद के बाहरी हिस्से में प्रार्थना करें। 1949 में मस्जिद में किसी ने भगवान राम की मूर्ति रख दी और यहां से विवाद कोर्ट में चला गया। 1989 में विश्व हिन्दू परिषद ने अपना अभियान तेज किया और विवादित स्थल के करीब राम मंदिर की नींव रखी। 6 दिसंबर को देशभर से जुटे कारसेवकों ने बाबरी मस्जिद को ढहा दिया। तब से लेकर अब तक यह मामला चर्चा का विषय है। देश में इस मुद्दे को लेकर जहां सांप्रदायिक दंगे हुए और सत्ता पर भाजपा काबिज भी हुई। भाजपा ने वायदा किया था कि वह सत्ता में आने के बाद राम मंदिर बनवा देगी, लेकिन उसने अपना वादा पूरा नहीं किया। जनता ने आगे आने वाले वर्षो में उसे सत्ता से बे दखल कर दिया। यह मामला अति संवेदनशील होने के बाद भी पुराना पड़ गया। जनता का उतना समर्थन इस विवाद पर अब शायद न मिले जितना पहले मिला था। फिलहाल सबकी नजर लखनऊ में हाईकोर्ट के फैसले पर है।
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