बाढ-सूखा, कब तक यह हमारी नियति बनी रहेगी?
रायपुर दिनांक 24 सितंबर 2010
बाढ-सूखा, कब तक यह
हमारी नियति बनी रहेगी?
यहां बैठे -बैठे यह सुन बड़ा अजीब सा लगता है कि दिल्ली में बाढ़ आई है यूपी अथवा बिहार में बाढ़ ने कहर ढा दिया है। चूंकि हमारा नगर या हमारा प्रदेश तो सूखा है। दिल्ली यूपी को बाढ़ कैसे बहाकर ले गई? यह सिलसिला आज से नहीं वर्षो से चला आ रहा है। प्रकृति के इस अजीब करिश्मे को जानने का प्रयास आज तक हमारे लोगों ने कभी नहीं किया और न ही इस स्थिति से निपटने की कोई बड़ी योजना योजना कारों ने तैयार की। देश में प्रकृतिजन्य कहर से हर साल करोड़ों रूपये की फसल और संपत्ति यूं ही बर्बाद हो जाती है। आज़ादी के बासठ साल बाद भी देश बाढ़ और सूखे की मार को झेल रहा है। हर साल बाढ़-सूखे पर करोड़ों रूपये का ख़र्चा... हर साल यही सिलसिला चलता है, लेकिन अब तक कभी ऐसी योजना तैयार नहीं हुई, जिससे इसका स्थाई हल निकाला जा सके । संसद में छोटे से छोटे मुद्दे पर लंबी बहस कर हंगामा करने वाले हमारे माननी यों ने भी कभी आम जनता से जुड़ी इन समस्याओं पर गौर नहीं किया। इसकी जरूरत भी उन्होंने महसूस नहीं की, चूंकि ऐसी समस्याओं से उनका कोई लेना- देना नहीं। बाढ़ आती है तो सरकारी खज़ाने से जनता के टैक्स का पैसा निकालकर लोगों को मदद पहुंचा दी जाती है। सूखा पड़ता है तो राहत कार्य के लिये करोड़ों यहां तक कि अरबों रूपये निकालकर पीड़ितों का मुंह बंद कर दिया जाता है। मगर कभी यह नहीं सोचा कि हम कब तक यूं ही सरकारी खज़ाने को बाढ़ और सूखे के नाम पर खाली करते रहेंगें? आज हरियाणा दिल्ली, पटना, यूपी के कई गांव- शहर सब पानी में डूबे हैं और छत्तीसगढ़ सहित कई प्रदेशों में अच्छा पानी बरस ने के बावजूद क ई बांधों में जरूरत के अनुसार पानी नहीं। नदी- नाले उफान पर आये और पानी बहकर चला गया। धरती को इतना पानी नहीं मिला कि वह ग्रीष्म ऋतु में लोगों को पानी पिला सकें । यूपीए सरकार ने देश की नदियों को एक दूसरे से जोड़ने की राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार की योजना को सिर्फ इसलिये रद्दी की टोकनी में फेंक दिया चूंकि इसे विपक्ष ने तैयार किया था। हम सभी के लिये यह विचारणीय प्रश्न है कि क्या देश की सभी नदियों को योजनाबध्द तरीके से आधुनिक तकनीक से जोड़ दिया जाता तो आज जो समस्या यमुना से पानी छोडऩे अथवा भारी बारिश के कारण विभिन्न नगरों में उपस्थित हुई है, वैसी समस्या उत्पन्न होती? कई राज्य ऐसे हैं जहां सूखे के दिनों में भी खूब पानी गिरता है और वहां की नदियों में इतना पानी भरता है कि वे उसे सम्हाल नहीं पाते। अगर इस पानी का रूख तकनीकी तरीके से दूसरे राज्यों की तरफ कर दिया जाता तो न कहीं सूखा होता और न बाढ़ आती...योजनाकारों और सरकार को कम से कम अब तो सबक लेना चाहिये कि देश में हर साल बाढ़ की स्थिति में जो पानी घर व खेतों में घुस जाता है। उसका रूख ऐसे राज्यों की तरफ किया जा ये जो सूखे से पीड़ित हों और पीने के पानी तक के लिये तरस जाते हैं।
बाढ-सूखा, कब तक यह
हमारी नियति बनी रहेगी?
यहां बैठे -बैठे यह सुन बड़ा अजीब सा लगता है कि दिल्ली में बाढ़ आई है यूपी अथवा बिहार में बाढ़ ने कहर ढा दिया है। चूंकि हमारा नगर या हमारा प्रदेश तो सूखा है। दिल्ली यूपी को बाढ़ कैसे बहाकर ले गई? यह सिलसिला आज से नहीं वर्षो से चला आ रहा है। प्रकृति के इस अजीब करिश्मे को जानने का प्रयास आज तक हमारे लोगों ने कभी नहीं किया और न ही इस स्थिति से निपटने की कोई बड़ी योजना योजना कारों ने तैयार की। देश में प्रकृतिजन्य कहर से हर साल करोड़ों रूपये की फसल और संपत्ति यूं ही बर्बाद हो जाती है। आज़ादी के बासठ साल बाद भी देश बाढ़ और सूखे की मार को झेल रहा है। हर साल बाढ़-सूखे पर करोड़ों रूपये का ख़र्चा... हर साल यही सिलसिला चलता है, लेकिन अब तक कभी ऐसी योजना तैयार नहीं हुई, जिससे इसका स्थाई हल निकाला जा सके । संसद में छोटे से छोटे मुद्दे पर लंबी बहस कर हंगामा करने वाले हमारे माननी यों ने भी कभी आम जनता से जुड़ी इन समस्याओं पर गौर नहीं किया। इसकी जरूरत भी उन्होंने महसूस नहीं की, चूंकि ऐसी समस्याओं से उनका कोई लेना- देना नहीं। बाढ़ आती है तो सरकारी खज़ाने से जनता के टैक्स का पैसा निकालकर लोगों को मदद पहुंचा दी जाती है। सूखा पड़ता है तो राहत कार्य के लिये करोड़ों यहां तक कि अरबों रूपये निकालकर पीड़ितों का मुंह बंद कर दिया जाता है। मगर कभी यह नहीं सोचा कि हम कब तक यूं ही सरकारी खज़ाने को बाढ़ और सूखे के नाम पर खाली करते रहेंगें? आज हरियाणा दिल्ली, पटना, यूपी के कई गांव- शहर सब पानी में डूबे हैं और छत्तीसगढ़ सहित कई प्रदेशों में अच्छा पानी बरस ने के बावजूद क ई बांधों में जरूरत के अनुसार पानी नहीं। नदी- नाले उफान पर आये और पानी बहकर चला गया। धरती को इतना पानी नहीं मिला कि वह ग्रीष्म ऋतु में लोगों को पानी पिला सकें । यूपीए सरकार ने देश की नदियों को एक दूसरे से जोड़ने की राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार की योजना को सिर्फ इसलिये रद्दी की टोकनी में फेंक दिया चूंकि इसे विपक्ष ने तैयार किया था। हम सभी के लिये यह विचारणीय प्रश्न है कि क्या देश की सभी नदियों को योजनाबध्द तरीके से आधुनिक तकनीक से जोड़ दिया जाता तो आज जो समस्या यमुना से पानी छोडऩे अथवा भारी बारिश के कारण विभिन्न नगरों में उपस्थित हुई है, वैसी समस्या उत्पन्न होती? कई राज्य ऐसे हैं जहां सूखे के दिनों में भी खूब पानी गिरता है और वहां की नदियों में इतना पानी भरता है कि वे उसे सम्हाल नहीं पाते। अगर इस पानी का रूख तकनीकी तरीके से दूसरे राज्यों की तरफ कर दिया जाता तो न कहीं सूखा होता और न बाढ़ आती...योजनाकारों और सरकार को कम से कम अब तो सबक लेना चाहिये कि देश में हर साल बाढ़ की स्थिति में जो पानी घर व खेतों में घुस जाता है। उसका रूख ऐसे राज्यों की तरफ किया जा ये जो सूखे से पीड़ित हों और पीने के पानी तक के लिये तरस जाते हैं।
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