राज आस्था या सहानुभूति में से कौन सी लहर में बहेगा भटगांव!
रायपुर, 20 सितंबर।
राज आस्था या सहानुभूति में से कौन
सी लहर में बहेगा भटगांव!
राज आस्था और सहानुभूति के तराजू पर बैठी है इस समय भटगांव की जनता। भावना या सहानुभूति लहर में बहकर भाजपा को जिता ये या राजभवन की आस्था में डूब कर राज परिवार से खड़े हुए योद्धा को विजय दिला ये। यूं तो भटगांव के समर में कई योध्दा कूद पड़े हैं किंतु एक अक्टूबर को भटगांव की जनता को यह तय करना है कि उनका असली खेवनहार कौन होगा? कांग्रेस और भाजपा इस सीट के प्रबल दावेदार है। कांग्रेस को भरोसा है कि राज घराने से चुनाव मैदान में उतरे यूएस सिंह देव जीतेगें जबकि भाजपा का भरोसा रजनी त्रिपाठी पर है। पूर्व विधायक स्व. रविशंकर त्रिपाठी भटगांव में लोकप्रिय थे। यदि उनकी असमय मृत्यु से उपजी सहानुभूति लहर चली तो भटगांव सीट पर उनकी पत्नी रजनी त्रिपाठी विजयी होंगी। भावना, आस्था यह सब पहले होता था। आज का मतदाता बहुत समझदार और चालाक हो गया है। समय के साथ उसे जहां भूलने की आदत है वहीं उसने समय के साथ बदलना भी सीख लिया है। इसलिये यह कहना कि मतदाता को भावना की लहरें अपने साथ खींच ले जायेंगी या राजभवन की आस्था अपने साथ मिला लेगी, कहना ठीक नहीं। वैसे एक बात निश्चित है कि उपचुनावों में अक्सर सत्तारुढ़ पार्टी को लाभ मिलता है। सत्तारुढ़ पार्टी होने के कारण लोग पूर्व से ही यह आकलन भी कर लेते हैं कि सत्ता का प्रभाव कहीं न कहीं चुनाव में दिख ही जाता है। इसके चलते सत्तारुढ़ दल के प्रत्याशी की जीत निश्चित मानी जाती है। भटगांव में ऐसा कुछ हो जाये,तो कहा नहीं जा सकता, किंतु चुनाव में हम जैसा सोचते हैं होता नहीं। भटगांव में दोनों प्रत्याशियों की समानता के चलते चुनाव रोचक हो गया है। चूंकि यहां कांग्रेस के अब तक के कार्यो का आकलन इस चुनाव में होना है। तो डा.रमन सहित संगठन के कई धुरन्धरों की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी है। कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने भाजपा के नये छत्तीसगढ़ प्रभारी जे.पी. नड्डा भटगांव पहुंचे, तो चुनाव की कमान मुख्यमंत्री ने अप्रत्यक्ष रूप से अपने हाथ में ले ली। बृजमोहन अग्रवाल इस चुनाव के संचालक हैं। मुख्यमंत्री ने आम सभा को संबोधित कर चुनावी शंखनाद कर दिया है। चुनाव दंगल में मुख्यमंत्री ने बड़ी संख्या में कैबिनेट मंत्रियों को उतार दिया है। कैबिनेट मंत्री लता उसेण्डी, विक्रम उसेण्डी, केदार कश्यप, हेमचंद यादव सहित अन्य कई मंत्री भटगांव की जनता को रजनी के पक्ष में करने कोशिश कर रहे हैं। जातिगत आधार पर मंत्रियों को काम बांटा गया है। कई भाजपा विधायक भटगांव में नजर आ रहे हैं। कहा जा सकता है कि भटगांव उप चुनाव जीतने के लिए सत्तारुढ़ दल ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। पिछले चुनाव में भाजपा से रूठकर चले गये शिव प्रताप सिंह और उनके पुत्र विजय को भाजपा में फिर शामिल कर लिया गया है। संचालक बृजमोहन अग्रवाल बनाये गए हैं। कांग्रेस इस सीट को भाजपा से छीनने पूरी कोशिश में हैं। कांग्रेस के अध्यक्ष एवं नेता प्रति पक्ष तथा विधायकों की एक पूरी फौज भाजपा के खिलाफ मोर्चे पर है। यूएस और रजनी दोनों एक तुला पर है। इसमें जिस किसी का भी पलड़ा अगले दस दिनों में भारी होगा भटगांव का सिकंदर वही होगा।
राज आस्था या सहानुभूति में से कौन
सी लहर में बहेगा भटगांव!
राज आस्था और सहानुभूति के तराजू पर बैठी है इस समय भटगांव की जनता। भावना या सहानुभूति लहर में बहकर भाजपा को जिता ये या राजभवन की आस्था में डूब कर राज परिवार से खड़े हुए योद्धा को विजय दिला ये। यूं तो भटगांव के समर में कई योध्दा कूद पड़े हैं किंतु एक अक्टूबर को भटगांव की जनता को यह तय करना है कि उनका असली खेवनहार कौन होगा? कांग्रेस और भाजपा इस सीट के प्रबल दावेदार है। कांग्रेस को भरोसा है कि राज घराने से चुनाव मैदान में उतरे यूएस सिंह देव जीतेगें जबकि भाजपा का भरोसा रजनी त्रिपाठी पर है। पूर्व विधायक स्व. रविशंकर त्रिपाठी भटगांव में लोकप्रिय थे। यदि उनकी असमय मृत्यु से उपजी सहानुभूति लहर चली तो भटगांव सीट पर उनकी पत्नी रजनी त्रिपाठी विजयी होंगी। भावना, आस्था यह सब पहले होता था। आज का मतदाता बहुत समझदार और चालाक हो गया है। समय के साथ उसे जहां भूलने की आदत है वहीं उसने समय के साथ बदलना भी सीख लिया है। इसलिये यह कहना कि मतदाता को भावना की लहरें अपने साथ खींच ले जायेंगी या राजभवन की आस्था अपने साथ मिला लेगी, कहना ठीक नहीं। वैसे एक बात निश्चित है कि उपचुनावों में अक्सर सत्तारुढ़ पार्टी को लाभ मिलता है। सत्तारुढ़ पार्टी होने के कारण लोग पूर्व से ही यह आकलन भी कर लेते हैं कि सत्ता का प्रभाव कहीं न कहीं चुनाव में दिख ही जाता है। इसके चलते सत्तारुढ़ दल के प्रत्याशी की जीत निश्चित मानी जाती है। भटगांव में ऐसा कुछ हो जाये,तो कहा नहीं जा सकता, किंतु चुनाव में हम जैसा सोचते हैं होता नहीं। भटगांव में दोनों प्रत्याशियों की समानता के चलते चुनाव रोचक हो गया है। चूंकि यहां कांग्रेस के अब तक के कार्यो का आकलन इस चुनाव में होना है। तो डा.रमन सहित संगठन के कई धुरन्धरों की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी है। कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने भाजपा के नये छत्तीसगढ़ प्रभारी जे.पी. नड्डा भटगांव पहुंचे, तो चुनाव की कमान मुख्यमंत्री ने अप्रत्यक्ष रूप से अपने हाथ में ले ली। बृजमोहन अग्रवाल इस चुनाव के संचालक हैं। मुख्यमंत्री ने आम सभा को संबोधित कर चुनावी शंखनाद कर दिया है। चुनाव दंगल में मुख्यमंत्री ने बड़ी संख्या में कैबिनेट मंत्रियों को उतार दिया है। कैबिनेट मंत्री लता उसेण्डी, विक्रम उसेण्डी, केदार कश्यप, हेमचंद यादव सहित अन्य कई मंत्री भटगांव की जनता को रजनी के पक्ष में करने कोशिश कर रहे हैं। जातिगत आधार पर मंत्रियों को काम बांटा गया है। कई भाजपा विधायक भटगांव में नजर आ रहे हैं। कहा जा सकता है कि भटगांव उप चुनाव जीतने के लिए सत्तारुढ़ दल ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। पिछले चुनाव में भाजपा से रूठकर चले गये शिव प्रताप सिंह और उनके पुत्र विजय को भाजपा में फिर शामिल कर लिया गया है। संचालक बृजमोहन अग्रवाल बनाये गए हैं। कांग्रेस इस सीट को भाजपा से छीनने पूरी कोशिश में हैं। कांग्रेस के अध्यक्ष एवं नेता प्रति पक्ष तथा विधायकों की एक पूरी फौज भाजपा के खिलाफ मोर्चे पर है। यूएस और रजनी दोनों एक तुला पर है। इसमें जिस किसी का भी पलड़ा अगले दस दिनों में भारी होगा भटगांव का सिकंदर वही होगा।
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