बस्तर में अब आगे हवार्ई लड़ाई के संकेत!




नक्सलवाद को छत्तीसगढ़ से जड़मूल खत्म करने सरकार एक से एक प्रयोग कर रही है इस कड़ी में आगे आने वाले समय  में नक्सलियों पर आसमान से वार शुरू हो जाये तो आश्चर्य नहीं करना. इस बात के  संकेत अब मिलने लगे हैं. अब तक नक्सलियों को समझाने बुझाने और मुठभेड़ कर उनके ठिकानों को ध्वस्त करने का प्रयास सराकरी तौर पर किया जाता रहा है लेकिन अब हवा में निगरानी रखने के लिये हवाई पट्टी के रास्ते नकसलियों के मुकाम तक पहुंचने की तैयारी हो रही  है- इसका आभास भी होने लगा है- पुलिस और वायुसेना का संयुक्त प्रशिक्षण अभी  कुछ दिन पूर्व हुआ था. अब छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित बस्तर के इंद्रावती टाइगर रिज़र्व के भीतर हवाई पट्टी बनाने की खबर ने सभी को चौका दिया है-नक्सलियों में जहां इससे गुस्सा हैं वहीं केन्द्र सरकार की मंज़ूरी मिल जाने से प्रदेश  सरकार ने भी अब कमर कस ली है.देश के किसी टाइगर रिज़र्व में हवाई पट्टी की मंज़ूरी का यह पहला मामला है.वन विभाग भी यह कहने में संकोच नहीं कर रहा है कि पट्टी का इस्तेमाल माओवादियों के खिलाफ़ चलाए जा रहे ऑपरेशन में किया जाएगा.सरकार जहां अपने निश्चय के प्रति दृढ है तो वहीं उसके लिये चुनौती भी है कि वह किस प्रकार इस अहम कार्य को अंजाम देगी. राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड की 37वीं बैठक में इंद्रावती टाइगर रिज़र्व के बफऱ क्षेत्र में इस हवाई पट्टी के निर्माण को मंज़ूरी देने के बाद हर कोई यह मानता है कि बस्तर के विकास के लिये और नक्सल उन्न्मूलन  के लिये उठाया गया यह एक महत्वपूर्ण कदम है किन्तु समस्या यही है कि प्राय: हर रोज नक्सली उत्पात औा बमों से गूंजने वाले इस क्षेत्र में बाघों के जंगल में सरकार इस काम को कैसे पूरा करेगी? 39.604 हेक्टेयर क्षेत्र में बनने वाली इस हवाई पट्टी के लिये ऐसे वक्त में मंज़ूरी मिली है, जब राज्य बनने के बाद पहली बार पिछले महीने ही वन विभाग के कैमरा ट्रैप में इस इलाक़े में बाघ की तस्वीर क़ैद की गई है.वहीं मानवाधिकार संगठनों का आरोप है कि सरकार इस हवाई पट्टी का निर्माण बस्तर में वायु सेना के हमलों के लिए कर सकती है. इन संगठनों का कहना है कि ऐसा होने पर लाखों निर्दोष आदिवासी मारे जाएंगे.बस्तर में पिछले कई सालों से माओवादी आंदोलन के कारण सुरक्षा बलों और माओवादियों के बीच ख़ूनी संघर्ष होते रहे हंै.दिलचस्प तथ्य यह भी है कि भारत में औसतन प्रति एक लाख लोगों की सुरक्षा के लिए पुलिस की संख्या 139 के आसपास है लेकिन बस्तर के सात जि़लों में यह आंकड़ा 1774 से भी अधिक है. विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार अफग़़ानिस्तान में चल रहे युद्ध के दौरान 2011 में वहां 73 लोगों पर एक जवान की तैनाती थी लेकिन बस्तर में 56 लोगों पर सुरक्षा बल के एक जवान की मौजूदगी है. टाइगर रिजर्व के भीतर हवाई पट्टी निर्माण को मंज़ूरी के बाद इस संख्या के और अधिक बढऩे की संभावना व्यक्त की है.सरकारी सूत्रों  के दावे में  भी यह साफ झलकता है कि क्षेत्र में नक्सलियों के खिलाफ गतिविधि को और बढ़ाना मुख्य उद्देश्य है.यह काम  सुरक्षाबलों को अधिक से अधिक मदद पहुंचाकर किया जायेगा. सरकार की इन कोशिशों पर मानवाधिकार  संगठन संदेह व्यक्त करते हैं कि पट्टी  बनाने के पीछे महज़ सुरक्षाबलों को मदद पहुंचाने भर का मामला नहीं है बल्कि यह संकेत दे रहा है कि इससे बस्तर में अब संघर्ष और तेज होगा.पीयूसीएल और मानवाधिकार संस्थाओं को संदेह है कि सराकर द्वारा बनाई जा रही हवाई पट्टी बस्तर के आम लोगों के लिए नहीं होकर पिछले कुछ सालों में जिस तेज़ी से अर्धसैनिक बलों की टुकडयि़ां इस इलाक़े में तैनात की गई हैं वह सेना द्वारा हेलिकॉप्टरों से हमलों का पूर्वाभ्यास किया गया है उसको कार्यरूप में परिणित करने  का एक उपक्रम है. दुनिया भर के अनुभव बताते हैं कि इस तरह के हमलों में सर्वाधिक गऱीब और मज़बूर लोग मारे जाते हैं. ऐसा कहने वालों को आशंका है कि  बस्तर की यह हवाई पट्टी लाखों निर्दोष आदिवासियों के लिये जानलेवा साबित हो सकती है.दूसरी ओर पुलिस के एक आला अधिकारी इस आशंका पर  अपना  तर्क देते हंै कि अपने ही लोगों के खि़लाफ़ हवाई हमला करने की इजाज़त भारतीय क़ानून नहीं देता. इसलिए इस तरह की आशंकाओं में कोई दम नहीं हैं.हवाईपट्टी बनाने की अनुमति के बाद  यह सवाल भी गरमा गया है ेकि सरकारी तौर पर की जाने वाली गतिविधियों से वन्य प्राणियों  का क्या होगा? बस्तर में अब एक नया  आंदोलन सामजिक संगठनों की तरफ से शुरू हो जाये तो आश्चर्य  नहीं करना चाहिये.कुछ लोग तो यह भी कहने लगे है कि  वन्यजीव और जंगल की अनदेखी कर इस तरह टाइगर रिज़र्व के भीतर हवाई पट्टी बनाने का सरकारी फ़ैसला क़ानून के खिलाफ़ है.

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