बुलेट ट्रेन से पहले...स्वच्छता,सुरक्षा, सुविधा पर कौन ध्यान देगा?
स्पेन से बुलेट ट्रेन कल इंडिया पहुंच जायेगी लेकिन छत्तीसगढ़ एक्सपे्रस के यात्री परेशान हैं कि उनकी ट्रेन में इतनी गंदगी है कि उसमें बैठना तो क्या घुसना भी मुश्किल है. रेलवे अब भी कुछ न कुछ बहाना बनाकर जहां यात्रियों से ज्यादा पैसे वसूलने की तैयारी में हैं वही जिन सुविधाओं की बात कर रही है वह इतनी बदतर है कि लोगों का विश्वास ही रलवे पर से उठने लगा है. अभी कुछ दिन पहले ही जहां एक ट्रेन की बोगी में चूहा मरने के बाद निकली बदबू से हंगामा हुआ था तो छत्तीसगढ़ से चलने वाली ट्रेन ने तो रेलवे की स्वच्छता के सारे दावों की पोल ही खोलकर रख दी.यात्रियों का तो यहां तक कहना है कि पूरे छत्तीसगढ़ जोन में कई ट्रेनों में साफ-सफाई हो ही नहीं रही है. शिकायत पर तत्काल कार्रवाही के दावे भी खोखले साबित हो रहे हैं.सफाई के मामले में रेलवे जितना दोषी है उससे कई गुना ज्याद यात्री भी दोषी है जिनके आचरण के कारण ही ज्यादातर कोचों में गंदगी बिखरी पड़ी रहती है. कूपे में कोई गुटखा, पान, स्नेक्स आदि खाकर फेंक देता है तो सीटों के बीच भी में मिट्टी और धूल तक को कोई साफ करने वाला नहीं रहता. कोच के अटेंडर से इसकी शिकायत करने के बाद भी वह अपनी असमर्थता प्रकट कर देता है.सफाई का हाल कुछ यूं हैं तो आरक्षित व सामान्य यात्रियों की सुरक्षा का भी कोई सही इंतजाम अभी तक नहीं हो पाया है. प्रचार बहुत किया जा रहा है कि महिलाओं की सुरक्षा के लिये हेल्प लाइन और फोर्स आदि लगी है लेकिन न किसी को सुरक्षा मिल रही है और न ही किसी कि सुनवाई हो रही है. यह इसी से स्पष्ट हो रहा है कि एक महिला को लूटने वाले पर किसी प्रकार की कार्रवाही नहीं हुई ऊपर से महिला को उससे डरकर ट्रेन से कूदना पड़ा. यह महिला अस्पताल में जीवन और मृत्यु से गुजर रही है. अपराधी अपराध करते समय किसी से पूछकर नहीं करते लेकिन ऐसा न हो इसक ी व्यवस्था ट्रेनों में करने की जिम्मेदारी रेल्वे की है. रेलवे कानून बनाकर उन्हें उनकी किस्मत पर छोड़ देता है. जैसे सेल्फी का मामला है- सेल्फी लेने वाला रेलवे को बताकर थोडी लेगा-कानून बन गया कि चलती ट्रेनों में मोबाइल से सेल्फी खींचना अपराध है इस अपराध को देखने वाले कितने आरपीएफ के जवान डिब्बों में तैनात रहेंगे, यह भी रेलवे को स्पष्ट करने की जरूरत है. ठीक है एक दो सपड़ में आयेंगे- जुर्माना भी भरेंगें जेल भी जायेंगे लेकिन क्या हर समय ऐसे लोगों पर निगरानी रहेगी? क्या रेलवें ने अपनी हर ट्रनों में सीसीटीवी लगा रखा है? यह सही है कि सेल्फी लेने की वजह से दुर्घटनाएं हो रही है कि न्तु इसके साथ- साथ कई तरह के अपराध भी हो रहे हैं. असल में आज की परिस्थिति यही कह रही है कि यात्रियों की पूर्ण सुरक्षा के लिये हर ट्रेन मे सीसीटीवी होनी चाहिये तथा हर ट्रेन में सुरक्षा के लिये पर्याप्त स्टाफ व अधिकारी भी होने चाहिये.सेल्फी पर कदम उठाने का निर्णय सराहनीय है मगर कथनी और करनी में अंतर भी नहीं होना चाहिये चूंकि मुंबई-हावड़ा एक्सप्रेस से 4 अप्रैल को राजनांदगांव निवासी रजनीश कुमार ,15 अप्रैल को कवर्धा निवासी श्याम कुमार की लोकल ट्रेन मेें दुर्ग से रायपुर आते समय सेल्फी खीचने के चक्कर में हादसा हो चुका है.दूसरी तरफ रेलवे बुलेट ट्रेन की बात कर रही है जो कहीं भी आम आदमी के लिये न होकर सिर्फ खास आदमी के लिये बन रही है.एक बुलेट ट्रेन रोज 88 हजार से 1.18 लाख लोगों को सफर कराएगी तब जाकर रेलवे बुलेट ट्रेन का लोन चुका पाएगी। क्या इस गरीब देश में गरीब यात्रियों के बीच यह संभव हो पायेगा?एक बुलेट ट्रेन 200 किलोमीटर प्रतिदघंटे की रफतार से दौडऩे वाली- कल आने वाली है-कितना पैसा हमें देना पड़ेगा और क्या यह सफल होगा? यह सब अभी गर्त में हैं चूंकि अब तक हमारे देश की तो कोई भी गतिमान ट्रेन इंडियन टे्रेकों पर डेढ़ सौ किलोमीटर से ऊपर नहीं दौड पाई है. अहमदाबाद की एक रिपोर्ट के अनुसार मुंबई और अहमदाबाद के बीच प्रस्तावित बुलेट ट्रेन अगर रोजाना 100 फेरे लगाए तो ही आर्थिक दृष्टि से फायदेमंद होगी. रेलवे को कर्ज और ब्याज समय पर चुकाने के लिए परिचालन शुरू होने के 15 वर्ष बाद तक 300 किलोमीटर की यात्रा के लिए टिकट का मूल्य 1500 रूपया निर्धारित करना होगा और प्रतिदिन 88,000-118,000 यात्रियों को ढोना होगा-क्या यह संभव है? जापान ने 15 वर्ष का कर्ज अवकाश दिया है इसलिए रेलवे के लिए राजस्व की चिंता 16वें वर्ष से शुरू होगी.अभी जब बुलेट ट्रेन नहीं चल रही है तब जो किराया आम आदमी दे रहा है वह इतना ज्यादा है तो उसके लिये बुलेट ट्रेन तो संभवत: उसी प्रकार है जैसे चांद पर सफर कराने ले जाने की बात-हम अगर बुलेट ट्रेन मंगाकर चला भी लेंगे तो क्या रेलवे मांग के अनुसार यात्रियों को जुटा पायेगा? चूंकि किराया इतना ज्यादा है कि उसे यात्रियों को फेरे ज्यादा बढ़ाने के बाद भी आकश्रित करना आसान नहीं होगा.
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