काली कमाई खदान की रेंज से 'खाखी कैसे गायब रहती है?
इसमें दो मत नहीं कि छत्तीसगढ़ की एसीबी एक के बाद एक काली कमाई के धनकुबेरों को खोज खोज के बाहर निकाल रही है लेकिन आम लोगों में कई प्रश्न इन छापों के बाद उत्पन्न होते हैं जिसका जिक्र हम आगे करेंगे, पहले यह बता दे कि पिछले एक शनिवार को छोड़कर उस शनिवार एंटी करप्शन ब्यूरो (एसीबी) ने रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग-भिलाई, रायपुर और कोरबा में अफसरों के क ई ठिकानों पर एक साथ ताबड़तोड़ छापे मारकर कई करोड़ की काली कमाई का भंडाफोड़ किया था बिलासपुर में तो छापा पडऩे के बाद पीएमजीएसवाय के ईई ने भ्रष्टाचार के 40 लाख बचाने के लिए पूरे पैसे पिलो में भरा और बाहर फेंक दिया- हम यह बता दे कि एसीबी छत्तीसगढ़ सरकार का एक उपक्रम हैं जो सिर्फ पुलिस वालों को मिलाकर बनाया गया है, इस विभाग के अधिकारियों को शिकायत मिलती है तो बाहर सेे और टीम लेकर छापे की कार्रवाही होती है शनिवार इस विभाग का पसंदीदा दिन है अधिकांश छापे के लिये इसी दिन को चुना जाता है अंक भी शायद यह चुनकर रखते हैं पिछले छापे में आठ अधिकारियों की अलग अलग टीम थी इस बार जब छत्तीसगढ़ के रायपुर, बिलासपुर, अम्बिकापुर, कोरिया और रायगढ़ समेत कई जिलों में छापा पड़ा तो भी 9 अधिकारियों की टीम ने 13 अलग-अलग ठिकानों पर शनिवार की सुबह दस्तक दी.संदेह नहीं कि छापेमारी में करोड़ों की काली कमाई उजागर हो सकती है.इस बार छापा शिक्षा, विपणन ,सिंचाइ्र,खाद्य विभाग के अफसरों तथा पटवारी के ठिकानों पर पड़ा.हम यह पहले भी कह चुके हैं कि छत्तीसगढ़ में जिस प्रकार कोयले, हीरे,सोना बाक्साइट, एलूमीनियम आदि की खदाने हैं ठीक उसी प्रकार काली कमाई केे कुबेरों का बड़ा खदान है कोयले की खदान में तो सौ साल से ज्यादा का कोयला नहीं हो सकता लेकिन इन कुबेरो के पास कई पीडियों के लिये धन सुरक्षित है. एसीबी के छापों की बात करें तो वे अपने हिसाब से तो सब ठीक कर रहे हैं लेकिन लोगों की नजर में सब ठीक ठाक नहीं चल रहा. सवाल यह उठा रहे हैं? पहली बात तो यह कि राज्य बनने और राज्य बनने के बाद के पूर्व के वर्षो में एसीबी के जितने भी छापे पड़े हैं, वह सब ऐेसे लोगों के ठिकानों पर पड़े है जहां के लोगों के बारे में सार्वजनिक तौर पर लोगों को मालूम है कि यह पैसा कमाते हैं किन्तु जिस विभाग से एसीबी के लोगों ताल्लुख है अर्थात खाखी उसपर उसकी नजर क्यों नहीं पड़ती? क्या यह विभाग पूर्णत: दूध का धुला साफ सुथरा है कइयों की अकूट संपत्ति और भ्रष्ट आचरण तो किसी से छिपा भी नहीं है.दूसरी सबसे महत्पपूण्र्ण बात यह कि एसीबी अपने छापों की कार्रवाही की सूचना तो तत्काल मीडिया तक किसी न किसी माध्यम से पहुंचा देती है लेकिन कार्रवाही का फालोअप क्या हुआ यह क्यों छिपाकर रखा जाता है?. या तो आप कार्रवाही के बाद खूब प्रचार प्रसार के बाद फाइलों को लटकारक रख देतेे हैं या फिर कोई कार्रवाही न कर पाने के काराण आप अपनी कार्यशैली का खुलासा करना ही नहीं चाहते. कई अफसर, बाबू, पटवारी जिनपर कार्रीवाही होती है वे भ्रष्ट आचरण के बाद भी विभाग में ही क्यों बने रहते हैं? क्यों नहीं इनकी सेवाएं तत्काल खत्म कर दी जाती? जब सरकारी पैसा चुराया गया है तो उनपर चोरी का जुर्म भी लगाकर क्यों नहीं जेलों में ठूसा जाता? क्यों उनकी संपत्ति जप्त कर इसका सार्वजनिक विवरण पेश किया जाता?. हम कह सकते हैं कि इन सब सवालों का जवाब इस विभाग के पास यही होगा कि कानून के दायरें में जो बाते हैं वही हम कर रहे हैं? सरकार को इस बात की सिफारिश तो की जा सकती है कि ऐसे लोगों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाही कर उसे सार्वजनिक किया जाये ताकि दूसरे लोगों में भी डर बना रहेे. आज की स्थिति में जब किसी के यहां छापा पड़ता है तो कुछ समय के लिये उसके सामने तो अंधेरा छा जाता है लेकिन अन्य लोगों के सामने वह हीरो और पैसे वाला व्यक्ति के रूप में प्रसिद्व हो जाता है.अब यह बात किसी से छिपी नहीं है कि सरकार के प्राय: हर विभाग- चाहे उनमें से कुछ में तो भ्रष्टाचार की कोई गुंजाइश नहीं है फिर भी लोग रेत से तेल निकालने का काम कर रहे हैं ऐसे में यह जरूरी है कि सरकार को एसीबी जैसी संस्था को ज्यादा से ज्यादा ताकतवर बनाये.जिसकों सीबीआई की तरह अधिकार प्राप्त हो तथा इसमे ऐसे अधिकारियों व कर्मचारियों की नियुक्ति की जाये जिनका सरकारी काम करते हुए रिकार्ड कभी खराब न रहा हो. पुलिस के अलावा अन्य विभागों के कर्मचारियों को भी इसमें डेपुटेशन पर रखा जाना चाहिये जो अपने विभाग के बारे में पूर्ण जानकारी रखते हो.इस मौके पर हम मध्यप्रदेश के पूर्व राज्यपाल केएम चांडी के उस बयान को इंगित करना चाहते हैं जिसमें उन्होंने कहा था ''भ्रष्टाचार में लिप्त सरकारी सेवक को जत्काल सेवा से बर्खास्त कर देना चाहिये तथा सरकार को उसकी पूरी संपत्ति भी तत्काल जप्त कर लेना चाहिये.ÓÓ
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