छत्तीसगढ़ तपने लगा..भ्रीषण जल संकट की आहट



छत्तीसगढ़ तपने लगा..भ्रीषण जल संकट की आहट



मार्च की शुरूआत है... और अभी पीने व निस्तारी की समस्या ने पूरे छत्तीसगढ़ को घेर लिया है। आगे आने वाले दिनों में पानी  का संकट किस भीषणता की ओर पहुंंच जायेगा इसका अनुमान अभी से लगाया ंनहींजा सकता है. पारा बढ़ता चला जा रहा है- पोखर तालाब, नदी सब सूखने लगे हैं.पानी के बिना प्राणी जगत के बारे में सोचना गलत है. लोगों को अगर पानी भरपूर मिले तो उसे बर्बाद करने में कोई गुरेज नहीं करते.हम अपने नदियों, तालाबों, कुओं और बावडिय़ों को मारकर बोतलबंद पानी के सहारे जीने की आदत डाल रहे हैं. पानी का किफायती इस्तेमाल कभी भी हमारी परवरिश का हिस्सा नहीं रहा। हमारी दिनचर्या के प्रत्येक हिस्से में पानी कहीं न कहीं मौजूद रहता है। औद्योगिक क्रांति की दहलीज पर आगे बढ़ चुके छत्तीसगढ़ सहित देश के अधिकांश भाग असल में ग्रामीण परिवेश के आदि रहे हैं, जहां पीने के पानी से लेकर निस्तार तक के लिए लोग नदियों, कुंओं पर निर्भर हुआ करते थे, तकरीबन हर दो-तीन मकानों के बीच एक कुंआ हुआ करता था. गांव से एक किलोमीटर से भी कम दूरी पर बावडियां होती थीं, जिसका पानी पशुधन की प्यास बुझाने और निस्तार के काम आता था. आजकल पानी की जिक्र छिड़ते ही दो घटनाएं सहसा याद आ जाती हैं,एक पिछली गर्मियों की है, जब रायपुर रेलवे स्टेशन पर रेल प्रशासन और बोतलबंद पानी उत्पादक एक कंपनी की मिलीभगत से अप्रैल और मई की भीषण गर्मी में सारे वॉटर कूलर को बंद कर दिया गया, परेशान मुसाफिर अपनी प्यास बुझाने के लिए बोतलबंद पानी खरीदने को मजबूर हो गए, अखबारों में खबर छपी, खूब हंगामा हुआ और इस बदइंतजामी पर रोक लगी. पानी के लिये लड़ाई हर जगह आम बात है लड़ाई के साथ-साथ हत्या  के प्रयास और हत्या जैसी घटनाओं ने भी  पानी की महत्ता को सिद्व किया है.यह भी स्पष्ट है कि इस धरती के हर प्राणी के लिए पानी निहायत ही जरूरी है इसके बिना जीवन संभव नहीं बावजूद इसके, साफ-स्वच्छ पीने के पानी तक लोगों की पहुंच आसान नहीं है तो इसके लिये किसे जिम्मेदार ठहरायें?  जिनके पास आर्थिक सामर्थ्य है, वे कहीं बोतलों में तो कहीं बड़े-बड़े कैन में पानी खरीद लेते हैं उनके लिए निजी टैंकर का पानी भी उपलब्ध है। जिनकी सामर्थ्य नहीं है, उन्हें कुदरत के इस मुफ्त संसाधन तक पहुंचने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। हर साल गर्मी आते ही छत्तीसगढ़ के तकरीबन हर जिले में पानी के लिए मारामारी का यही नजारा देखने को मिलता है। लोग सरकार को, प्रशासन को कोसते हैं और बारिश आते ही सारी तकलीफें भूलकर फिर पानी बहाने लग जाते हैं। लेकिन साफ पेयजल के लिए इंतजार अब दो माह तक ही लंबा नहीं रहेगा। हम भूल गए कि धरती के 70 फीसदी हिस्से पर पानी होने के बाद भी उसका सिर्फ एक फीसदी हिस्सा ही इंसानी हक में है। नतीजतन स्थिति यह है कि जलस्रोत तेजी से सूख रहे हैं। छत्तीसगढ़ ही नहीं भारत के अन्य राज्यों औेर समूचे एशिया में यही स्थिति है. वास्तविकता यह भी है कि सरकारी सप्लाई पर आधारित पानी की उपलब्धता का हमारे दिल में शायद ही कोई सम्मान है शायद यही  कारण है कि हम आगे के दर्द की कल्पना किये बगैर आज अपने दैनिक जीवन में  लगातार पानी बर्बाद करते हैं कहीं टपकते नल के साथ तो कहीं गुसलखाने और रसोईघर से निकले पानी को यूं ही गवाकर हम घटते जा रहे बेशकीमती संसाधन के प्रति अनादर जताते हैं क्योंकि पानी का किफायती इस्तेमाल कभी भी हमारी परवरिश का हिस्सा नहीं रहा। आने वाले एक दशक में उद्योगों के लिए पानी की जरूरत 23 फीसदी के आसपास होगी तब खेती के लिए पानी के हिस्से में और कटौती करने की जरूरत पड़ेगी, क्योंकि तेजी से बढ़ रहे शहरीकरण के चलते गांवों के मुकाबले शहरों को पानी की दरकार कहीं ज्यादा होगी। बढ़ते तापमान और जल प्रबंधन की खामियों के चलते सिकुड़ती जल संरचनाओं से गर्मी में इतना पानी भाप बनकर नहीं उड़ पा रहा है कि बारिश अच्छी हो, इसी के साथ वनों के घटने,कांक्रीट की सड़के और कांक्रीट के आवासीय जंगल से भी पर्यावरण को जबरदस्त नुकसान उठाना पड़ रहा है।  औद्योगिक ईकाइयां कई घनमीटर साफ पानी का इस्तेमाल करती हैं, लेकिन मशीनों को ठंडा रखने के लिए इससे तीन गुना ज्यादा घनमीटर पानी इस्तेमाल में लाया जाता है, इस तरह कई लाख या करोड़ घनमीटर पानी उद्योगों को जा रहा है, अब यदि खेती के लिए उपलब्ध पानी में कटौती की जाए तो खाद्य संकट की स्थिति भी पैदा हो सकती है। जंगलों में अवैध कटाई व खनन गतिविधि से वन्य जीवों के कुदरती रहवास व संसाधनों को भी खतरा पैदा हो गया है याने पानी की बर्बादी  से इंसान ही  नहीं जानवर भी संकट में हैं बेवजह की ईको टूरिज्म गतिविधियों और जंगल के भीतर पर्यटक आवास केंद्रों की स्थापना से भी तापमान बढ़ा है। बांध बनाकर नदियों का रास्ता रोकने जैसी तरकीबों का भी तकनीकी खामियाजा लोगों को बाढ़ के रूप में झेलना पड़ रहा है। बरसात अच्छी हो तो भी पानी का सभी जगहों पर एक समान वितरण न होने से ज्यादातर इलाके प्यासे ही रह जाते हैं. भविष्य कितना कठिन है यह हमें उस समय देखना चाहिये जब पानी को यूं ही बर्बाद करते हैं- यह बताने की जरूरत नहीं कि जिंदगी कितनी कठिन हो जायेगीसरकारी मशीनरी कोभी अब चेत जाना चाहिए। उसे पानी को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी चाहिए, जो वह नहीं दे रही है।

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