सुविधा के नाम से बैंक काट रहे हमारी जेब!
हजारों लोगों को प्रतिदिन बैकों से कई तरह के काम रहते हैं लेकिन परेशानियां भी कोई कम नहीं! प्रायवेट और पब्लिक या सार्वजनिक बैंक बचत खातों में फंड कम होने, चेक रिटर्न होने, फोटो और साइन वेरीफिकेशन जैसे करीब 50 तरह के काम लोगों के बैंकों से पड़ते हैं उपर चार्ज भी ग्राहकों से ठोक बजाकर दम से लिया जा रहा हैं. फिक्स डिपॉजिट, चालू खाता, लोन अकाउंट के लिए चार्ज लेने के नियम अलग हैं.सार्वजनिक बैंकों की तुलना में निजी बैंक अधिक चार्जेस (ग्राहक शुल्क) वसूलते हैं. आम खाता धारकों के प्रति बैंकों का रवैया सख्त रहता हैं,जबकि कॉर्पोरेट अकाउंट्स खोलने, लोन लेने और वसूलने तक में कई सहूलियतों का दावा किया जाता हैं.दिलचस्प तथ्य यह है कि बैंकों के सख्त नियम होने के बावजूद वर्ष 2015 में ही सार्वजनिक बैंकों के विभिन्न कॉर्पोरेट अकाउंट्स के 88,552 करोड़ रु. के लोन डूब गए. लोन वसूली न हो पाने के पीछे कौन जिम्मेदार है? यह सब जानते हैं,हर साल ब्याज वसूली नहीं होने के कारण करीब साठ हजार करोड़ रूपये का नुकसान उठाना पड रहा है. अपनी गलती के लिये बैंक आम उपभोक्ताओं पर यूजर चार्जेस थोपता हैं. नियम यह कहता है कि आम ग्राहकों को भी कॉर्पोरेट की तरह ही सुविधा दी जाये लेकिन बैंक सामान्य ग्राहकों को रियायत नहीं देते, वहीं कंपनियों से लोन वसूलने में छूट देते हैं।आम आदमी को कॉर्पोरेट की तुलना में महंगा लोन मिल रहा है वहीं जब कॉर्पोरेट हाउस लोन की ईएमआई नहीं चुका पाते हैं तो फिर नयी बैलेंसशीट और कागजों के आधार पर वे लोन चुकाने की अवधि, किस्त की राशि आदि को फिर से तय कर लेते हैं साथ ही कंपनी काम कर सके इसके लिए भी अतिरिक्त लोन दे देते हैं. अंत में जब यही लोग लोन नहीं चुकाते हैं तो फिर एक मुश्त भुगतान की बात आती है जिसके तहत कभी-कभी तो पूरा ब्याज माफ कर दिया जाता है दूसरीओर आम आदमी के लिए भी नियम होने के बावजूद लोन लेने वाले व्यक्ति की कार, मकान, दुकान कुर्क करने की नौबत बहुत जल्द ही आ जाती है. छोटी-छोटी सेवाओं में होने वाली गलतियों के लिए बैंक आम आदमी की फजीहत कर डालता है उससे पैसा वसूलता है तथा उसके दिल में बैेंक के प्रति दुर्भावना भर देता है.वास्तविकता यह है कि जिस तरीके से सरकारी व निजी बैंक आम लोगों की जेब काट रहे है उससे तो यही लगता है कि आगे आने वाले समय में कई लोग बैंक से रिश्ता तोड़ लेंगेजो खबरे आ रही हैं वह काफी चौका देने वाली हैं. बैंक हमारा पैसा जमा करने की एवज में हमसे इतना ज्यादा पैसे की वसूली करता है कि जमा रकम का एक बड़ा हिस्सा यूं ही बैंक के खाते में चला जाता है यह चाहे मनी ट्रांसफर का मामला हो या एटीएम से हमारे खाते में जमा रकम से पैसा निकालने का अथवा चेक से लेन देन का.बैंक के किसी भी कामकाज में बस हाथ लगा दो तो आपका पैसा कटने लगता है.अगर हम अपने खाते में किसी कारणवश पैसा नहीं भर पाते तो उसका भी बड़ा खामियाजा हमें भुगतना पड़ता है.पांच वर्ष में ग्राहकों से लिए जाने वाले चार्जेस की संख्या दोगुनी हो गई.कहने का तात्पर्य यह है कि बैंक ग्राहकों से कतिपय सुविधाओं के नाम पर एक बड़़ी राशि ले रहा हैं-इस सम्बन्ध मे बैेंक का तर्क यह है कि हम जब सुविधा दे रहे हैं तब हमें उन सुविधाओं के लिये भी तो पैसा काटना ही पड़ेगा.वित्त राज्यमंत्री जयंत सिन्हा ने हाल ही में कहा था कि देश में विभिन्न बैकों द्वारा दिए जाने वाले लोन में से करीब आठ लाख करोड़ रुपए का लोन स्ट्रेस में है मतलब कि जिसकी वसूली में परेशानी आ रही है यूजर चार्जेस लेने के मामले में बैंक रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) और बैंकिंग कोड्स ऑफ स्टैंडर्ड बोर्ड ऑफ इंडिया (बीसीएसबीआई) के निर्देशों का भी उल्लंघन करते हैं. एसएमएस के लिए बैंक हर तीन महीने के दौरान 5 से 30 रुपए चार्ज वसूल करता है. बैंक अपने कार्यो के लिये पैसा ले उसमें किसी को ऐतराज नहीं होना चाहिये लेकिन ऐसे काम जिसमें कोई मेहनत ओर खर्च ही न हो उसपर भी लोगों से पैसा काट ले तो बात समझ में नहीं आती. ठीक है एसएमएस का चार्ज लगता है लेकिन बैंक ऐसे एसएमएस भी ग्राहको को भेजता है जिसकी जरूरत उपभोक्ताओं को नहीं होती फिर क्यों ऐसे एसएमएस भेजकर पैसे की वसूली की जाती है? बैेक के सुविधा देने के दावे को हम मान भी ले तो हर सुविधा, हर बिन्दू पर पैसे का सिद्वान्त आम लोगों पर लादने का ओचित्य क्या है? क्यों नहीं बैंकों की इस मनमानी पर कोई संस्था नियंत्रण रखती? लोन देते तक ग्राहक को इतनी लालच से लाद दिया जाता हे कि वह बेंक की इस मेहमाननवाजी के लिये उसके पैरो तले तक पडने तैयार हो जाते है लेकिन बाद में जरा सी चूक हुई तो उनका गुस्सा भी किसी राक्षस से कम नहीं होता. यह सब सिर्फ ऐसे लोगों के लिये रहता है जो बेचारे जरूरतमंद व जिनकी आय बहुत कम हैं. माल्या जैसे लोग हो तो फिर उनके लिये तो सब माफ....देश में बैंक व्यवसाय कुछ इसी प्रकार आगे बढ़ रहा है!
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