ट्रेनों में यात्रियों की सुरक्षा...क्यों बेबस है रेलवे पुलिस?
इसमे संदेह नहीं कि रेल मंत्री सुरेश प्रभु पूर्ण ईमानदारी और निष्ठा से रेलवे को ऊंचाइयों तक पहुंचाने में ऐड़ी चोटी एक कर रहे हैं. यात्री ज्यादा से ज्यादा अच्छी आधुनिक सुविधाओं का उपयोग कर सके इसके लिये उन्होंने सरकारी प्रयास में कोई कमी नहीं छोड़ी है. उनकी मंशा भी ट्रेनों में यात्रा करते समय वातावरण घर जैसा लगे इसका ख्याल रखा जा रहा है इस कड़ी में ट्रेनों में पूर्ण साफ सफाई रहे, ट्रेने समय पर आना- जाना करें और यात्रियों को पूर्ण पूर्ण सुरक्षा मिले जिससे यात्री अपने गंतव्य तक पहुंच जाये लेकिन क्या नोकरशाही या प्रशासनिक व्यवस्था इसे हकीकत में बदलने का प्रयास कर रही है? ऐसा लगता है कि इसमें बहुत बड़ी बाधा हमारे कतिपय यात्रियों के आचरण से भीे है जो इसे सफल नहीं होने दे रही. यात्रा के दौरान यात्री ट्रेन को राष्ट्र की संपत्ति न समझ इसे किसी ऐसी वस्तु समझ कर उपयोग कर फेक रहे हैं जिसका बाद में कोई उपयोग नहीं है. यात्रा दूसरों के लिये भी सुविधाजनक व सुगम हो सकें इसके लिये यह जरूरी है कि यात्री ट्रेन का उपयोग यात्रा के दौरान दूसरे लोगों की सुविधा का ध्यान रखकर उपयोग अपने घर की वस्तु समझ करें। राष्ट्रीय संपत्ति के प्रति लोगों में जो जज्बा कुछ विदेशी राष्ट्रों में हैं उसे यहां कायम करने की जरूरत है. टायलेट को गंदा कर छोड़ देना, बोगी से उतरने से पहले बुरा हाल कर देना, रेलवे संपत्ति को चुराकर ले जाना जैसी बाते कतिपय लोगों की फितरत बन गई है. एक यात्रा पर जाने वाले यात्री के बाद दूसरा आता है तो उसे नाक बंद कर ही बोगी में प्रवेश करना पड़ता है. कुछ दिन पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वाराणसी दिल्ली के बीच एक ऐसी आधुनिक सुविधा संपन्न ट्रेन को विदा किया जो शायद इस देश में पहली बार पटरियों पर उतरी. स्वाभाविक है कि इस ट्रेन में ऐसे लोग ही पहले यात्रा करने चढे होंगे जो साफ सुथरे अच्छे कपड़े पहने व पैसे वाले हो लेकिन ट्रेन के चलने के बाद जो तस्वीरें मीडिया ने दिखाई वह यहीं इंगित करती है कि हमारे देश में अभी कतिपय लोगों को ऐसी सुविधाएं उपलब्ध कराने के पहले अलग से ट्रेनिगं मिलनी चाहिये. अपने सहयात्रियों को तो लोग पहले दुश्मन समझकर ही गाडियों पर चढ़ते है और फिर कहीं अपनी सीट पर कोई धोखे से भी बैठ गया तो उसे भला बुरा करने उसके साथ मारपीट करने यहां तक कि उसे ट्रेने से धक्का देकर नीचे फेकने जैसी हरक त कर बैठते हैं. एक ताजा मामला रेल बजट पेश करने के चौबीस घंटे के भीतर रेलवे के सुरक्षा के दावे की सारी पोल खोल रहा है-बिलासपुर/रायपुर. दुर्ग-अंबिकापुर एक्सप्रेस की जनरल बोगी में सफर कर रही महिला यात्री को बोगी में ही सफर कर रहे 6 युवक पूरी रात अपनी हरकतों से परेशान करते रहे। परेशान होकर पति ने हेल्पलाइन नंबर 182 में मदद मांगी। आरपीएफ स्कार्टिंग पार्टी ने मौके पर पहुंचकर आरोपियों को कब्जे में लिया पर छेडख़ानी के बजाय आरोपियों के खिलाफ शांति भंग करने का अपराध दर्ज कर कार्रवाई की । जब ऐसे मामलों में यात्रियों को पक्की व ठोस सुरक्षा मुहैया नहीं होगी तो लोगों का ट्रेनों में यात्रा पर से विश्वास उठ जायेगा. अक्सर होता है. असल में लम्बी दूरी की ट्रेनें एक बड़े शहर के रूप में कई यात्रियों को लेकर आगे बढ़ती है इन यात्रियों को पूर्ण सुरक्षा के लिये न केवल सशस्त्र गार्ड की तैनाती होनी चाहिये बल्कि एक पुलिस थाने की व्यवस्था गार्ड के डिब्बे के साथ-साथ होनी चाहिये. ऐसे पूरे मामले के निपटारे के लिये मजिस्ट्रेटों की भी तैनाती जरूरी है तभी इस प्रकार के मामलों से यात्रियों को बचाया जा सकेगा.
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