गुरू की तपोभूमि में राहुल के कदम!







गुरू घासीदास की तपोभूमि गिरोधपुरी कांग्रेस की गुटबाजी का रणक्षेत्र बनकर क्या संदेश दे गई? यह तो भविष्य ही बतायेगा लेकिन राहुल गांधी गिरौधपुरी की इस धार्मिक नगरी की यात्रा में अपने आपकों राजनीति से बचाकर निकालने में सफल रहे. गिरौदपुरी में उन्होंने पदयात्रा की, जैतखंभ के दर्शन किए लेकिन कांग्रेसियों के बीच जमकर बवाल हुआ, अपमान हुआ,कहा-सुनी हुई और अपशब्दों का जमकर प्रयोग भी हुआ.छत्तीसगढ़ में जबर्दस्त गुटबाजी में उलझी कांग्रेस का यह रूप  जिसने भी देखा उसने यही  कहा कि क्या यह लोग इसी तरह फिर पार्टी को खड़ा करेंगे?राहुल गांधी की यात्रा को सफल बनाने यद्यपि कांग्रेसियों ने कोई कसर नहीं छोड़ी मगर अपने गुटबाजी की संस्कृति को रेखाकिंत कर मूल एजेण्डे को धराशायी करने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी.गिरोधपूरी में निर्मित हुए माहौल को सिलसिलेवार जोड़कर देखे तो अतीत की कुछ घटनाएं अपने आप पोल खोलकर रख देती है कि गुटबाजी का यह खेल छत्तीसगढ़ में परंपरागत ढंग से यूं ही चलता आ रहा है लेकिन अब इसका रूप काफी विकृत हो चला है जिसमें कुछ ऐसी मिलावट हो गई है जिसको सहन कर पाना शायद अबके वरिष्ठो के लिये संभव न हो.जब छत्तीसगढ़ मध्यप्रदेश के साथ जुड़ा हुआ था तब भी गुटबाजी थी और इसका कई सिरा या कहे लगाम वीसी शुक्ल, श्यामाचरण शुक्ल,अर्जुन सिंह, दिग्विजय ङ्क्षसंह जैसी बड़ी हस्तियों के हाथ में हुआ करती थी और इनके तीर जिस निशाने को भेदना चाहतें है वह इन हस्तियों की उंगलियां ही तय करती थी. पुराने लोग  गिरौधपुरी की घटना को देख व सुनकर अतीत की याद कर इस घटना को लेकर शायद जरा भी विचलित नहीं हुए होंगें चूंकि इसका तो एक इतिहास रहा है जब इशारों पर गाली गलौच मारपीट तोडफ़ोड़ सब शुरू हो जाती थी तथा कोई भी बडा नेता सारी मर्यादाओं को तोड़कर उसकी चपेट में आ जाता था.स्वंय दिग्विजय सिंह भी उस समय लपटे में आ गये थे जब छत्तीसगढ़ का नया मुख्यमंत्री चुनने के लिये वीसी शुक्ल के फार्म हाउस गये थे. मैं और मेरा परिवार की राजनीति ने भी छत्तीसगढ़ में कांगेे्रस को काफी नुकसान पहुंचाया है. इसी गुटबाजी का नतीजा था कि वीसी शुक्ल और श्यामाचरण शुक्ल जैसी हस्तियों को पार्टी के अंदर-बाहर का खेल खेलना पड़ा. अरविन्द नेताम, संत पवन दीवान जैसे लोग भी गुटबाजी का शिकार होकर कभी इधर कभी उधर की राजनीति में समा गये.असल बात तो यह है कि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस मजबूत होकर भी शक्तिविहीन है उसके पीछे उसकी झगडालू प्रवृत्ति है-कोई आगे बढ़ रहा है तो उसकी टांग खीचों के चक्कर में पिछले चुनावों में जीतकर भी कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा.यह किसी से छिपा नहीं है कि कांग्रेस के सारे निर्णय दिल्ली में हाईकमान के इशारे पर ही होता है किन्तु प्रदेश स्तर के नेता तो दिल्ली में पहुंचने वाले नेताओं के सामने भी अपना गुस्सा निकालकर अपने पैरों पर ही कुल्हाड़ी मार लेते हैं. पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के आगमन के समय तक बड़े बड़े नेताओं ने अपना असली चेहरा दिखाने में कोई कमी नहीं की थी. धार्मिक नगरी गिरौधपुरी में आयोजित कार्यक्रम के लिये संगठन के लोगों ने अजीत जोगी को न्यौता दिया था, वे वहां पहुंचे भी  मगर शायद झगड़े की शरूआत उस पोस्टर से हुर्ई जिसमें सिर्फ राहुल गांधी, भूपेश बघेल, टीएस सिंहदेव और रुद्र गुरु की फोटो लगी थी किन्तु अजीत जोगी की फोटो नहीं थी। जैसे ही अजीत जोगी अपने समर्थकों के साथ हैलीपैड के पास पहुंचे, समर्थकों ने जोगी के पक्ष में नारेबाजी शुरू कर दी और पदयात्रा मार्ग में लगे पोस्टरों को फाड़ दिया यह शायद इसलिये भी हुआ होगा चूंकि अजीत जोगी समर्थकों को लगा कि उन्हें यहां वेटेज नहीं दिया गया.गिरौदपुरी में एक दूसरे के खिलाफ नारेबाजी के साथ अपशब्दों का प्रयोग भी हुआ.हेलिपैड पर राहुल का स्वागत करने वालों की सूची में जोगी और उनके समर्थकों का नाम नहीं होना ही इस हंगामे की वजह माना गया है. जोगी और सतनामी समाज के धर्म गुरु रुद्र गुरु के बीच तू-तू, मैं-मैं यह दर्शाता है कि अब कांग्रेस में सीनियर जूनियर का भी कोई ख्याल नहीं रखता.बात यहां तक पहुंची कि रुद्र गुरु ने आरोप लगाया कि जोगी ने उन्हें अपशब्द कहे,अब इसका जवाब सतनामी समाज देगा. राहुल के कार्यक्रम के लिए अजीत जोगी को भी बाकायदा एआईसीसी से बुलावा था बावजूद इसके जोगी का नाम स्वागत करने वालों की सूची में नहीं होना गुटबाजी को साफ उजागर करता है.यह भी सोची समझी राजनीति का हिस्सा हो सकता है कि  गिरौदपुरी में बने हेलीपैड से भीतर जाने लगे तो उन्हें एसपीजी के लोगों ने रोका इस समय भी जोगी समर्थकों ने वहां नारेबाजी शुरू की. पदयात्रा के बाद राहुल ने जैतखंभ पहुंचकर गर्भगृह में दर्शन किए. दर्शन करने के बाद वे सतनामी समाज के धर्म गुरु विजय गुरु से मिलने उनके घर गए ,वहां बंद कमरे में राहुल ने उनसे मुलाकात की. सतनामी  समाज को अपने साथ मिलाये रखने में कांग्रेस की रणनीति का एक हिस्सा माना जा सकता है. सतनामी समाज अपना एक प्रतिनिधि राज्य सभा में चाहता है. राहुल गांधी यद्यपि  पत्रकारों से कुछ नहीं बोले लेकिन इतना जरूर कह गये कि वे सामाजिक व धार्मिक यात्रा पर यहां आए हैं, इसलिए कोई राजनीतिक बात नहीं करना चाहते. यह संकेत देता है कि गुटबाजी की पूरी खबर के बाद भी वे यही दिखाना चाहते थे कि वे सबसे अंजान हैं.












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