इडली, दोसा सस्ता, समोसा,जलेबी,चाय क्यों नहीं?
मुख्यमंत्री डा.रमन सिंह ने इस बार आम लोगों के नाश्ते का विशेष ख्याल रखा है-इडली दोसा, पनीर को सस्ता कर दिया. मजा आ जाता यदि समोसा कचोड़ी जलेबी और चाय भी सस्ती हो जाती. जब रोटी दाल आम लोगों के हाथ से बाहर हो रही है तब कम से कम लोगों के चाय नाश्ते में बहुत बड़ी राहत ही कहा जायेगा. बहरहाल हम इतने पर ही संतोष कर लेते हैं .इडली दोसा,पनीर,घी, खोवा मोबाइल, स्टील आइटम,सायकिल की कीमत कम कैसे होगी? इस प्रश्न का उत्तर सीधा है कि सरकार ने अपने बजट में वेट को कम कर दिया. सरकार अगर सभी वर्ग को पूर्ण राहत देना चाहती तो पेट्रोल, डीजल पर भी वेट कम कर सकती थी, इससे पेट्रोल के दाम और गिर सकते थे किन्तु ऐसा नहीं किया. डॉ रमन सिंह ने बुधवार को विधानसभा में अपने कार्यकाल का दसवां बजट प्रस्तुत किया. इतने सालों तक बराबर बजट पेश करने के लिये मुख्यमंत्री वास्तव में बधाई के पात्र हैं. छत्तीसगढ़ की जनता ने उन्हें अभूतपूर्व स्नेह दिया है शायद इसी से अभिभूत होकर उन्होंने इस बार लोगों को एक के बाद एक बड़े तोहफे से लाद दिया. बजट में उन्होंने स्कूली शिक्षा, स्वास्थ्य और कृषि पर फोकस किया है यह होना भी चाहिये था, कुल बजट 73 हजार 996 करोड़ का है। बजट से एक दिन पूर्व एक समारोह में मुख्यमंंत्री ने कहा था कि छत्तीसगढ़़ का सरगुजा फलों के मामले में एक दिन कश्मीर-हिमाचल की तरह नाम कमायेगा. बजट में कृषको का विशेष घ्यान रखा गया है आशा की जा सकती है कि रवि और खरीफ फसल के साथ कृषकों को फलों की खेती के लिये प्रेरित किया जायेगा ताकि आगे आने वाले वर्षो में किसी भी प्राकृतिक मुसीबत में कृषकों को दूसरे विकल्प के रूप में फलों की खेती तो कम से कम उपलब्ध रहे..हमे गर्व है अपने राज्य पर कि हम देश में सबसे कम ऋण लने वाला अकेला प्रदेश बन गये है-हम इस मामले में इस बाबत भी भाग्यशाली है कि हमारा प्रदेश खनिज संपदा से भरपूर है अभी कुछ ही दिन पूर्व राज्य ने सोने की खदान नीलाम हुई हैॅ. किसानों के लिये फसल बीमा योजना के लिए 200 करोड़,बीज अनुदान के लिए 150 करोड़ का प्रावधान कर कृषकों के दर्द को कम करने का प्रयास किया है. छत्तीसगढ़ में बच्चों की शिक्षा को और कारगर बनाने का प्रयास भी बजट में किया गया है. छात्राओं के लिए स्नातक तक की शिक्षा निशुल्क करने से अब छात्राएं ग्रेजुएशन की तरफ नि:संकोच बिना किसी बाधा के आगे बढ़ सकेंगी.प्रदेश में विकास की गतिविधियों को आगे बढ़ाने की गरज से मुख्यमंत्री ने बजट में सड़के, रेल पातें बिछाने आदि के कार्य को बजट में शामिल किया है.पिछले बजट की तरह स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार हेतु बजट में काफी बड़ी रकम का प्रबंध किया है. गंभीर बीमारी होने पर पत्रकारों को 20 हजार की अतिरिक्त मदद, सीनियर सिटीजंस को 30 हजार की अतिरिक्त मदद,भोजन के लिए अस्पतालों में 100 रुपए प्रति प्लेट, संबन्धित लोगों को काफी राहत देगी वहीं नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में चार नई बटालियन का गठन व चार हजार जवानों की भर्ती से इस समस्या को खत्म करने में कितने हद तक कामयाबी मिलेगी यह देखना दिलचस्प होगा.सुकमा, बीजापुर जैसे आदिवासी क्षेत्र में एजुकेशन सिटी व जगदलपुर, मुंगेली शहरों में स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स तथा सरगुजा में साइंस सेंटर- इन शहरों के विकास में एक मील का पत्थर साबित हो सकती है. राजधानी रायुपर के मामले में सबकुछ आधा अधूरा सा है. राजधानी रायपुर के लिए पिछले साल बजट में की गई घोषणाओं में से ज्यादातर सालभर बाद भी कागजों से बाहर नहीं निकला हैं. कई प्रोजेक्ट के लिए विभागों ने शासन को प्रस्ताव ही नहीं दिया तो कई योजनाओं पर कागजी खाना-पूर्ति होकर रह गई। कहीं बजट का रोड़ा आ गया तो कहीं पर मामला तकनीकी वजहों में अटक गया। ज्यादातर वे ही घोषणाएं पूरी हुई हैं जिनपर शासन को नीतिगत निर्णय लेना था। साल 2016 की शुरुआत में जरूर कुछ योजनाओं पर काम शुरू हुआ है लेकिन उनके पूरे होने में भी कम से कम चार से छह महीने का वक्त लगेगा। इस बार का बजट पेश हो गया किन्तु पिछले बजट में की गई कुछ ही घोषणाओं पर काम शुरू हो पाया है। कुछ काम जरूर हो चुके हैं किन्तु इनसे शहर की तस्वीर में कोई बदलाव नहीं आया है गंदगी के मामले में छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर देश में छठवें स्थान पर है इस कलंक को दूर करने कोई ठोस प्रयास बजट में नहीं है. रायपुर, बिलासपुर व दुर्ग में 15 करोड़ की लागत से वर्किंग वुमन होस्टल की घोषणा की गई थी। किसी भी शहर में यह योजना सालभर में भी फ्लोर पर नहीं आ सकी है। रायपुर में तात्यापारा से शारदा चौक का चौड़ीकरण पुराने रायपुर शहर की सबसे ज्वलंत समस्या है इसपर बजट में कोईउल्लेख नहीं दिखा. यह मामला बजट के अभाव में ही कई सालों से अटका पड़ा है।
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