यहां तो ऐसे कई माल्या है, अब क्या करेगी बैंक?
बैकों ने सफेद पोश लोगों को चुनचुनकर पैसा लुटाया अब एक माल्या भाग गया तो कई अन्य सामने आने लगे. देश के खजाने को चूना लगाने वालों की एक लम्बी फेहरिस्त है जिसकी जानकारी सरकार को भी है ओर बैंकों को भी परन्तु दोनों ही नि:सहाय होकर इस गुंताड़बुन में हैं कि केैसे भी इन डिफाल्टरों से पैसा वूसल हो जाये.प्राय: सभी बड़े लोन लेकर बैंक के डिफाल्टर सूची में नाम बनाने वाले आज ऐशों आराम की जिंदगी बिता रहे हैं और बैेंक है कि उनके पीछे पढऩे की जगह उन बेचारें दो तीन पांच दस लाख रूपये लेने वालों की सिर्फ एक किश्त नहीं पटने पर उनकी संपत्ति तक कुक्र्र करने के लिये कोर्ट में केस दायर कर उन्हें तंग कर रही है. जबकि इन छोटे छोटे डिफाल्टरों की करतूतों पर पर्दा डालकर उन बड़े डिफाल्टरों की करतूतों को एक तरह से छिपा दिया गया है. आगे आने वाले दिनों मेें जब पूरे मामले की जांच पड़ताल होगी तो बात शायद बंगलादेश की उस सादबर चोरी की तरह होगी जिसमें हाइकर्स ने करोड़ो डालर का एक ही समय में वारा न्यारा कर दुनिया की सबसे बड़ी चोरी का रिकार्ड बना दिया. देश में विजय माल्या एक अकेला बिसनेसमेन नहीं है जो बैेंक का पैसा हजम कर ऐशों आराम की जिंदगी बसर कर रद्दा हैं उसमें कई ऐसे सफेद पोश लोग हैं जो बैंक के लिये सरदर्द बने हुए है-मोसर बेयर इंडिया, महुआ,इंडियन टेक्रोमेक,आईसीएसए इंडिया, डेक्कन क्रानिकल, पिक्सोन मीडिया प्रायवेट लिमिटेड़, सूर्या फार्मा,मुरली इंडस्ट्रीज,वरूण इंडस्ट्रीज जैसी कंपनियां है जिनपर 646 करोड़ से लेकर डेढ हजार या उससे ज्यादा करोड़ रूपये तक का लोन हैं.पचास से ज्यादा बडे लोन डिफाल्टर हैं जो बैेंकों का पैसा हजम करके बैंक के लिये सरदर्द बने बैठे हैं.4056.28 बिलियन अर्थात करीब 40,528करोड़ रूपये का लोन बैंक कैसे वसूल कर पायेगा यह अब भी साफ नहीं हो पाया है. विजय माल्या की फरारी के बाद बैकों ने कुछ ऐसे एहतियाती कदम उठाये है जो यह दावा करते हैं कि माल्या जैसे डिफाल्टर अब बाजार से पैसे नहीं जुटा सकेंगे.डिफॉल्टर्स को रोकने के लिए सेबी ने अपना नियम बदल दिया है कहने का मतलब यह कि दूध का जला अब छाछ भी फूक फूक कर पीने लगा है सेबी ने अब विलफुल डिफॉल्टर यानी जानबूझकर बैंक का कर्ज नहीं चुकाने वालों के लिए सख्त कदम उठाने का ऐलान कर दिया ताकि फिर कोई माल्या जैसा व्यवसायी या उद्योगपति देश के हजारों करोड़ रुपए डुबोकर भाग न जाए. नए नियमों के तहत अब ऐसे डिफॉल्टर न तो शेयर या बांड के जरिए पब्लिक से पैसे जुटा सकेंगे और न ही किसी लिस्टेड कंपनी के बोर्ड में शामिल हो सकेंगे, साथ ही किसी दूसरी लिस्टेड कंपनी का कंट्रोल भी अपने हाथों में नहीं ले सकेंगे. ऐसे विलफुल डिफॉल्टरों को म्यूचुअल फंड या ब्रोकरेज फर्म खोलने की इजाजत भी नहीं होगी. उधर रिजर्व बैंक गवर्नर रघुराम राजन ने भी जानबूझकर कर्ज नहीं चुकाने वाले बकाएदारों को परिभाषित करने के लिए उचित प्रक्रिया का पालन करने की बात कही है. आरबीआई के मुताबिक सारे बैंकों का जो पैसा फंसा हुआ है, वो कुल कर्ज का 11.5प्रतिशत हैं यह रकम करीब 8 लाख करोड़ रु. है। रिजर्व बैंक के नियम के मुताबिक किसी विलफुल डिफॉल्टर को बैंक कर्ज नहीं देता पर ये लोग इक्विटी या डेट मार्केट से पैसे जुटा लेते हैं लोग इनके झांसे में भी आ जाते हैं इसलिए पूंजी बाजार में इन पर रोक की जरूरत थी,अब नया नियम लागू होने के बाद कोई ऐसा नहीं कर पाएगा. देश में 2,500 विलफुल डिफॉल्टर हैं और इनके पास सरकारी बैंकों का 64,335 करोड़ का कर्ज है। सरकारी बैंकों के कुल एनपीए का एक तिहाई सिर्फ 30 लोगों के पास है,एक साल पहले इन पर करीब 95 हजार करोड़ रुपए का कर्ज था। दिलचस्प बात तो यह कि सरकारी बैंक 2012 से 2015 के बीच 1.14 लाख करोड़ रु. के कर्ज राइट ऑफ कर चुकी हैं। यानी बैंकों को इसकी वसूली की उम्मीद नहीं.क्या सरकार जनता की कड़ी मेहनत का पैसा इन डिफाल्टरों से वापस अपने खजाने में वापस ला सकेगी?शायद ऐसा कुछ नहीं होगा. अगर उनकी मौजूद संपत्ति को नीलाम करने की प्रक्रिया अपनाई जाये तो संंभव है यह पैसा खजाने में कुछ हद तक जमा होगा लेकिन इसकी हिम्मत कौन करेगा?
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