स्मार्ट कार्ड से इलाज पर इन्श्योरेंस कपंनी की तलवार!
स्मार्ट कार्ड से इलाज पर इन्श्योरेंस कपंनी की तलवार!
सरकार द्वारा प्रदत्त सुविधाओं पर इस बार हमला किया है- इन्श्योरेंस कंपनियों ने एक फरमान जारी कर अस्पतालों से कहा है कि वह स्मार्ट कार्ड से टीबी, मलेरिया व किडनी फेल मरीज को उनसे (इन्श्योरेंस कंपनियों)से अनुमति लिये बगैर भर्ती न करें.अब तक डेंगू, टीबी, मलेरिया, अस्थमा, हायपर टेंशन और किडनी फेल के मरीज को स्मार्ट कार्ड दिखाने पर तत्काल प्रायवेट अस्पतालों में भर्तीकर इलाज किया जाता था लेकिन अब नया आदेश प्रायवेट अस्पतालों को इन्श्योरेंस कंपनी वालों से पहुंचा है, जिसमें कहा गया है कि अगर वे स्मार्ट कार्ड धारी मरीज को भर्ती करना चाहते हैं तो पहले उनसे अनुमति ले, उसके बाद ही इलाज शुरू करें अर्थात अब से अनुमति लेने तक मरीज अस्पताल के दरवाजे पर यूं ही इलाज के लिये तड़पता रहेगा. इंश्योरेंस कंपनी ने ऐसी 52 बीमारियों की सूची जारी की है, जिसके इलाज के पहले अस्पताल प्रबंधन को अनुमति लेनी होगी. इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) को इश्योरेंस कंपनी का यह आदेश बिल्कुल पसद नहीं आया है. स्मार्ट कार्ड से इलाज की मानीटरिंग के लिए इंश्योरेंस कंपनी ने हर पंजीकृत अस्पताल में पहले से अपना प्रतिनिधि बिठा रखा है, ये प्रतिनिधि इलाज कराने वाले मरीजों पर नजर रखते हैं,इनके परिजनों से पूछते हैं कि अस्पताल प्रबंधन ने कहीं उनसे पैसा तो नहीं लिया, साथ ही अस्पताल से ही टोल फ्री नंबर पर अधिकारियों से बात कराते हैं इतनी कड़ी निगरानी की जा रही है तो नया फरमान जारी करने की क्या जरूरत पड़ी? स्वाभाविक है कि कोई भी ऐसे फरमान को पसंद नहीं करेगा. इंश्योरेंस कंपनी के बाद अस्पतालों में मरीज को मिलने वाली इस महत्वपूर्ण सुविधा पर एक तरह से विराम लग जायेगा. मरीज जहां क्या करें क्या न करें कि स्थिति में आ जायेगा वहीं दूसरी ओर अस्पताल प्रबंधन भी अपने यहां पहुंचे मरीज के इलाज में ऊ हा पोह की स्थिति में आ जायेगा. आदेश मिलने के बाद से अस्पतालों में यह हालात निर्मित होने शुरू भी हो गये हैं.अब प्रतिक्रिया स्वरूप डाक्टर और अस्पताल प्रबंधन इंश्यारेंस कंपनी के फरमान के खिलाफ खुलकर सामने आ गये हैं.डेंगू, मलेरिया, टीबी, किडनी मेल, मस्तिष्क ज्वर, अस्थमा, ब्रोंकाइटिस समेत जिन 52 बीमारियों के इलाज के पहले कंपनी से अनुमति लेना अनिवार्य किया गया है, वह गलत ह,ै वैसे मरीज गंभीर स्थिति में इलाज के लिए पहुंचते हैं, उस समय उन्हें तुरंत भर्ती करना जरूरी होता है। ऐसी दशा में मरीजों को भर्ती करने के लिए अनुमति लेते तक तो उस मरीज के जीवित रहने की ंसंभावना कम हो जाती है. वास्तविकता यह है कि अपने आपको सुरक्षित करने के लिये कंपनियों ने यह कदम उठाया है ,इसमें उन्होने मरीजों के जीवन संघर्ष का कोई ख्याल नहीं रखा. प्राइवेट अस्पताल हो या सरकारी अस्पताल कहीं भी मरीज को उसकी हालत देखकर तुरंत भर्ती करना होता है. स्मार्ट कार्ड के बारे में तो इलाज शुरू करने के बाद पूछा जाता है. इंश्योरेंस कंपनी ने तो तुरंत आनन फानन में यह आदेश निकाल दिया उसने कहीं इस बात का ध्यान नहीं रखा कि इसके रिफरकेशन क्या होंगे.इन्श्योंरेंस कंपनी का आदेश बारह घंटे के भीतर ही मिल जायेगा इसकी कोई गारंटी नहीं है-एक मरीज की जिंदगी हर पल कीमती होती है इस दौरान लोग अस्पताल को स्मार्ट कार्ड दिखयेगा? डाक्टर इलाज करेगा या कंपनी के आदेश का इंतजार करेगा या मरीज को भगवान भरोसे छोड़ दिया जायेगा? कुछ भी कहे कपनियों को सिर्फ अपने व्यवसाय की ङ्क्षचता है इसके लिये वे चाहे तो जितने लोगों के भविष्य के साथ खिलवाड़़ कर सकते हैं. राज्य सरकार ने लाखों लोगों को स्मार्ट कार्ड जारी किया है. इस आदेश के विरूद्व तत्काल कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई तो लाखों लोगों की जान सासंत में पड़ जायेगी. इंश्यारेंस कंपनी ने मरीजों की हिस्ट्री देखकर 12 घंटे के भीतर अनुमति देने का निर्णय लिया है। डाक्टरों के अनुसार इतना समय बहुत ज्यादा है। मरीजों के इलाज के लिए इतना लंबा समय इंतजार नहीं किया जा सकता। मरीजों को तुरंत इलाज देना जरूरी होता है।जचकी के बाद मांगी जा रही सोनोग्राफी इंश्योरेंस कंपनी अब डिलीवरी के बाद महिलाओं की सोनोग्राफी रिपोर्ट भेजने को कह रही है। डॉक्टरों का तर्क है कि कई बार महिलाएं लेबर पेन के साथ आती है। ऐसे में उनकी सोनोग्राफी करने के बजाय सीधे लेबर रूम में लेकर जाते हैं। सोनोग्राफी टेस्ट नहीं किया जाता। ऐसे में कंपनी को सोनोग्राफी की रिपोर्ट नहीं भेजी जा सकती। हाल ही में कंपनी ने डिलीवरी के ऑपरेशन का फोटो खींचकर भेजने का फरमान जारी किया था। डॉक्टरों के विरोध के बाद कंपनी को यह फरमान वापस लेना पड़ा था। हर अस्पताल में कंपनी का प्रतिनिधि स्मार्ट कार्ड से इलाज की मानीटरिंग के लिए इंश्योरेंस कंपनी ने हर पंजीकृत अस्पताल में अपना प्रतिनिधि बिठाकर रखा है। ये प्रतिनिधि इलाज कराने वाले मरीजों पर नजर रखते हैं। इनके परिजनों से पूछते हैं कि अस्पताल प्रबंधन ने कहीं पैसा तो नहीं लिया। साथ ही अस्पताल से ही टोल फ्री नंबर पर अधिकारियों से बात कराते हैं। प्र्राइवेट अस्पताल के संचालकों का कहना है कि जब इतनी कड़ी निगरानी की जा रही है तो नया फरमान जारी करने की क्या जरूरत है।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें