छत्तीसगढ़ के शहरों में चोर-पुलिस का हाईटेक ड्रामा, पिस रहे हैं लोग!
रायपुर दिनांक 7 जनवरी 2011
छत्तीसगढ़ के शहरों में चोर-पुलिस
का हाईटेक ड्रामा, पिस रहे हैं लोग!
लकड़ी चोर को चौकीदार ने चोरी करने से ललकारा तो उसने उसका हाथ ही काट डाला, यह घटना हुई कोरिया के बंैकुठपुर में। राजधानी रायपुर में एक चोर का साहस देखिये कि वह पूर्व पुलिसवाले के घर ही चोरी करने पहुंच गया। एक अन्य मामला आमानाका थानान्तर्गत पार्थिवी पैसिफिक और मारूती इनक्लेव कालोनी में हुआ जहां चोर या डकैत जो भी हो, विरोध करने पर चौकीदार को बंधक बना लिया। कालोनी वालों को तो छोडिय़े पुलिस वालों से ही भिड़ गये चोर। उन्हें पत्थर मारकर दौड़ाया। कलेक्टर ने एक चोर को जिला बदर किया है जिसपर चोरी के दस मामले हैं। ऐसे कितने ही चोर जगह जगह उत्पात मचाये हुए हैं। राजधानी रायपुर सहित पूरे छत्तीसगढ़ में चोरी अब एक व्यवसाय बनता जा रहा है। जिसमें बच्चों से लेकर युवा और अधेड़ तक शमिल हो गये हैं। जो पकड़ा गया वह चोर वरना ऐसे लोग अपना काम धडल्ले से किसी के भी घर को अपना निशाना बनाकर कर रहे हैं। पुलिस चोरों के इस बदलते रूख पर हाथ पर हाथ धरे बैठने के सिवा कुछ नहीं कर पा रही है। एक गिरोह नेस्तनाबूत हो जाता है तो उसकी तस्वीर पुलिसवालों के साथ फोटो सहित छप जाता है वरना चोर अपना काम कर रहे हैं। पुलिस ने चोरी के मामले में अपने हाथ खड़े कर दिये हैं। थक हारकर वह अब मोहल्ले वालों पर चोरी व अन्य अपराध रोकने की जिम्मेदारी थोपने के प्रयास में हैं। कुछ थाना क्षेत्रो में वहां के लोगों को लेकर बैठके भी हुई हैं। चोरी पकडऩे का काम पुलिस से ज्यादा आम लोग ज्यादा अच्छे से कर सकते हैं बशर्ते वे चौकस रहे किंतु आवेश में आकर लोग चोर की इतनी पिटाई कर देते हैं कि उसका दम ही निकल जाता है फिर शुरू होता है पुलिस का नया नाटक जिसमें चोर को पीटने वाले पिसते हैं। जब ऐसी स्थिति आती है तो नागरिक इस कार्य को स्वंय करने की जगह पुलिस के पाले में फेक देते हैं। आज की स्थिति यह है कि चोर अपना काम कर रहे हैं और पुलिस अपना। दोनों के कार्य करने के तरीके में इतना अंतर है कि चोर व अन्य अपराधी पुलिस से आगे निकल गये। चोरों के डर के मारे कोई भी अपना घर थोड़ी देर के लिये भी सूना छोड़कर नहीं जा सकता। चोरों को यह मालूम रहता है कि किसके घर में कितना माल मिलेगा। चोरी करने वाले घरों मेंं घुसते हैं और उनकी नजर घर पर रखे सामानों को छोड़कर नगदी और सोने, चांदी पर रहती है। चोरों में बड़े युवा चोरों के अलावा कुछ बच्चे भी शामिल हैं जो खुला दरवााजा देखकर आसानी से घुस जाते हैं और जो हाथ में मिला लेकर भाग जाते हैं। बड़ी चोरी हुई तो लोग पुलिस में रिपेार्ट दर्ज करा देते हैं मगर छोटी चोरी में लोग पुलिस के पास इसलिये रिपोर्ट लिखाने नहीं जाते क्योंकि वे जानते हैं कि इसका कोई संज्ञान पुलिसवाले लेेने वाले नहीं। चोरी व अपराध की अन्य वारदातों के परिपे्रक्ष्य में पुलिस का जो दबाव है वह चौक-चौराहों तक ही सीमित होकर रह गया है। घटनाएं अक्सर कालोनियों में और प्रमुख मार्ग में रात को सुनसान पड़ी दुकानों में होती हैं जहां चोर आसानी से अपना काम करके निकल जाते हैं। चोर कोई बाहरी दुनिया से आया व्यक्ति नहीं होता। समाज के भीतर ही वह मौजूद है पुलिस केकई लोग इन्हें जानते व पहचानते हैं जब तक यह मित्रता कायम रहेगी चोरी पर अंकुश नहीं लग सकता।
छत्तीसगढ़ के शहरों में चोर-पुलिस
का हाईटेक ड्रामा, पिस रहे हैं लोग!
लकड़ी चोर को चौकीदार ने चोरी करने से ललकारा तो उसने उसका हाथ ही काट डाला, यह घटना हुई कोरिया के बंैकुठपुर में। राजधानी रायपुर में एक चोर का साहस देखिये कि वह पूर्व पुलिसवाले के घर ही चोरी करने पहुंच गया। एक अन्य मामला आमानाका थानान्तर्गत पार्थिवी पैसिफिक और मारूती इनक्लेव कालोनी में हुआ जहां चोर या डकैत जो भी हो, विरोध करने पर चौकीदार को बंधक बना लिया। कालोनी वालों को तो छोडिय़े पुलिस वालों से ही भिड़ गये चोर। उन्हें पत्थर मारकर दौड़ाया। कलेक्टर ने एक चोर को जिला बदर किया है जिसपर चोरी के दस मामले हैं। ऐसे कितने ही चोर जगह जगह उत्पात मचाये हुए हैं। राजधानी रायपुर सहित पूरे छत्तीसगढ़ में चोरी अब एक व्यवसाय बनता जा रहा है। जिसमें बच्चों से लेकर युवा और अधेड़ तक शमिल हो गये हैं। जो पकड़ा गया वह चोर वरना ऐसे लोग अपना काम धडल्ले से किसी के भी घर को अपना निशाना बनाकर कर रहे हैं। पुलिस चोरों के इस बदलते रूख पर हाथ पर हाथ धरे बैठने के सिवा कुछ नहीं कर पा रही है। एक गिरोह नेस्तनाबूत हो जाता है तो उसकी तस्वीर पुलिसवालों के साथ फोटो सहित छप जाता है वरना चोर अपना काम कर रहे हैं। पुलिस ने चोरी के मामले में अपने हाथ खड़े कर दिये हैं। थक हारकर वह अब मोहल्ले वालों पर चोरी व अन्य अपराध रोकने की जिम्मेदारी थोपने के प्रयास में हैं। कुछ थाना क्षेत्रो में वहां के लोगों को लेकर बैठके भी हुई हैं। चोरी पकडऩे का काम पुलिस से ज्यादा आम लोग ज्यादा अच्छे से कर सकते हैं बशर्ते वे चौकस रहे किंतु आवेश में आकर लोग चोर की इतनी पिटाई कर देते हैं कि उसका दम ही निकल जाता है फिर शुरू होता है पुलिस का नया नाटक जिसमें चोर को पीटने वाले पिसते हैं। जब ऐसी स्थिति आती है तो नागरिक इस कार्य को स्वंय करने की जगह पुलिस के पाले में फेक देते हैं। आज की स्थिति यह है कि चोर अपना काम कर रहे हैं और पुलिस अपना। दोनों के कार्य करने के तरीके में इतना अंतर है कि चोर व अन्य अपराधी पुलिस से आगे निकल गये। चोरों के डर के मारे कोई भी अपना घर थोड़ी देर के लिये भी सूना छोड़कर नहीं जा सकता। चोरों को यह मालूम रहता है कि किसके घर में कितना माल मिलेगा। चोरी करने वाले घरों मेंं घुसते हैं और उनकी नजर घर पर रखे सामानों को छोड़कर नगदी और सोने, चांदी पर रहती है। चोरों में बड़े युवा चोरों के अलावा कुछ बच्चे भी शामिल हैं जो खुला दरवााजा देखकर आसानी से घुस जाते हैं और जो हाथ में मिला लेकर भाग जाते हैं। बड़ी चोरी हुई तो लोग पुलिस में रिपेार्ट दर्ज करा देते हैं मगर छोटी चोरी में लोग पुलिस के पास इसलिये रिपोर्ट लिखाने नहीं जाते क्योंकि वे जानते हैं कि इसका कोई संज्ञान पुलिसवाले लेेने वाले नहीं। चोरी व अपराध की अन्य वारदातों के परिपे्रक्ष्य में पुलिस का जो दबाव है वह चौक-चौराहों तक ही सीमित होकर रह गया है। घटनाएं अक्सर कालोनियों में और प्रमुख मार्ग में रात को सुनसान पड़ी दुकानों में होती हैं जहां चोर आसानी से अपना काम करके निकल जाते हैं। चोर कोई बाहरी दुनिया से आया व्यक्ति नहीं होता। समाज के भीतर ही वह मौजूद है पुलिस केकई लोग इन्हें जानते व पहचानते हैं जब तक यह मित्रता कायम रहेगी चोरी पर अंकुश नहीं लग सकता।
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