यूं कब तक तोड़ते रहेंगे घोटाला भवनों को? सरकार जप्त करें
रायपुर दिनांक 21 जनवरी
यूं कब तक तोड़ते रहेंगे घोटाला
भवनों को? सरकार जप्त करें
जमीन घोटाला अब अन्य घोटालों की तरह आम हो गया है। देश का सर्वाधिक चर्चित जमीन घोटाला है मुम्बई का आदर्श सोसायटी मामला । इस घोटाले में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा। मामला सीबीाआई के हाथ में हैं और हाईकोर्ट ने एफआई्रआर दर्ज करने में देरी के लिये सीबीआई को फटकार लगाई है। सेना के पूर्व सेनाध्यक्ष दीपक कपूर सहित कुछ अन्य वरिष्ठ अधिकारियों के फलेट भी इस विवादास्पद सोसायटी में हैं। हाल ही केन्द्र सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने नियमों का हवाला देते हुए आदर्श घोटाले में लिप्त बहुमंजिले भवन को तीन महीने के भीतर गिरा देने का आदेश दिया है? सवाल यह है कि देश में भ्रष्टाचार या अवैध तरीके से बनने वाले ऐसे भवनों को क्या तोड़ देने से समस्या का समाधान निकल जायेगा? हम मानते हैं कि इसे बनाने में भ्रष्टाचार हुआ है। इसे बनने में देश का पैसा लगा है। बनाने वाले भी देश के लोग और इसमें लगा मटेरियल सीमेंट, और अन्य कच्चा माल भी देश का। विदेश से कोई चीज नहीं आई? क्या बिल्डिग़ं को तोड़ देने से भ्रष्टावार का अंत हो जायेगा और हां तो ऐसे सारे भवनो को तोड़ दिया जाना चाहिये। भ्रष्टाचारियो को सजा मिले यह प्रमुख उद्देश्य होना चाहिये- यह पहला अवसर नहीं है जब इस तरह भ्रष्ट या अवैध तरीके से बने भवनों को तोडने का फैसला लिया गया। देशभर में ऐसे कई भवनों को अवैध बताकर या कोई अन्य कारण बताकर तोड़ा गया। इन्दौर मे बने करोड़ों रूपये के भवनों को विस्फोट कर उड़ाया गया चूंकि इनका निर्माण अवैध तरीके से हुआ था। जब इन भवनों को बनाया जा रहा था तब सरकार कहां थी? क्यों नहीं इसपर संज्ञान लिया गया? क्यो भवनों के पूरा बनते तक चुप्पी साधी गई? स्थानीय लोगों व वहां काम कर रहे लोगों तथा संबन्धित सभी विभागों को इस बात की जानकारी रहती है कि जो कार्य हो रहा है वह गैर कानूनी व अवैघ है-उस समय इसे रोकने का आदेश क्यों नहीं दिया जाता ? भ्रष्टाचार या अवैध तरीके से निर्र्मित होने वाले हर गैर कानूनी कार्य में उपर से लेकर नीचे तक सभी संंबन्घित पक्षों का हाथ होता है। चाहे वह क्षेत्रीय जोन का स्वायत्त शासी कमीश्रर हो या मेयर अथवा इन सबके अधीन काम करने वाले कर्मचारी। प्रारंभिक सूचना देने वाले से लेकर सब ऐसे मामलो में दोषी होते हैं। एक सामूहिक जिम्मेदारी सभी लोगों पर निर्धारित कर यह व्यवस्था की जानी चाहिये कि जांच शुरू करते ही इन सबकी नौकरी खत्म की जाये ताकि यह जांच को किसी प्रकार प्रभावित न कर पायें। दूसरा सबसे महत्वपूर्ण कदम यही है कि ऐसे बने किसी भी भवन अथवा कालोनी को नेस्तनाबूत करने की जगह उसे राष्ट्रीय संपत्ति घोषित किया जाये। इसका उपयोग सरकार के किसी कार्यालय अथवा अन्य उपयोग के लिये किया जा सकता है। ऐसे भ्रष्टाचार में लिप्त लोगों को जेल भेजना तीसरा कदम होना चाहिये।
यूं कब तक तोड़ते रहेंगे घोटाला
भवनों को? सरकार जप्त करें
जमीन घोटाला अब अन्य घोटालों की तरह आम हो गया है। देश का सर्वाधिक चर्चित जमीन घोटाला है मुम्बई का आदर्श सोसायटी मामला । इस घोटाले में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा। मामला सीबीाआई के हाथ में हैं और हाईकोर्ट ने एफआई्रआर दर्ज करने में देरी के लिये सीबीआई को फटकार लगाई है। सेना के पूर्व सेनाध्यक्ष दीपक कपूर सहित कुछ अन्य वरिष्ठ अधिकारियों के फलेट भी इस विवादास्पद सोसायटी में हैं। हाल ही केन्द्र सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने नियमों का हवाला देते हुए आदर्श घोटाले में लिप्त बहुमंजिले भवन को तीन महीने के भीतर गिरा देने का आदेश दिया है? सवाल यह है कि देश में भ्रष्टाचार या अवैध तरीके से बनने वाले ऐसे भवनों को क्या तोड़ देने से समस्या का समाधान निकल जायेगा? हम मानते हैं कि इसे बनाने में भ्रष्टाचार हुआ है। इसे बनने में देश का पैसा लगा है। बनाने वाले भी देश के लोग और इसमें लगा मटेरियल सीमेंट, और अन्य कच्चा माल भी देश का। विदेश से कोई चीज नहीं आई? क्या बिल्डिग़ं को तोड़ देने से भ्रष्टावार का अंत हो जायेगा और हां तो ऐसे सारे भवनो को तोड़ दिया जाना चाहिये। भ्रष्टाचारियो को सजा मिले यह प्रमुख उद्देश्य होना चाहिये- यह पहला अवसर नहीं है जब इस तरह भ्रष्ट या अवैध तरीके से बने भवनों को तोडने का फैसला लिया गया। देशभर में ऐसे कई भवनों को अवैध बताकर या कोई अन्य कारण बताकर तोड़ा गया। इन्दौर मे बने करोड़ों रूपये के भवनों को विस्फोट कर उड़ाया गया चूंकि इनका निर्माण अवैध तरीके से हुआ था। जब इन भवनों को बनाया जा रहा था तब सरकार कहां थी? क्यों नहीं इसपर संज्ञान लिया गया? क्यो भवनों के पूरा बनते तक चुप्पी साधी गई? स्थानीय लोगों व वहां काम कर रहे लोगों तथा संबन्धित सभी विभागों को इस बात की जानकारी रहती है कि जो कार्य हो रहा है वह गैर कानूनी व अवैघ है-उस समय इसे रोकने का आदेश क्यों नहीं दिया जाता ? भ्रष्टाचार या अवैध तरीके से निर्र्मित होने वाले हर गैर कानूनी कार्य में उपर से लेकर नीचे तक सभी संंबन्घित पक्षों का हाथ होता है। चाहे वह क्षेत्रीय जोन का स्वायत्त शासी कमीश्रर हो या मेयर अथवा इन सबके अधीन काम करने वाले कर्मचारी। प्रारंभिक सूचना देने वाले से लेकर सब ऐसे मामलो में दोषी होते हैं। एक सामूहिक जिम्मेदारी सभी लोगों पर निर्धारित कर यह व्यवस्था की जानी चाहिये कि जांच शुरू करते ही इन सबकी नौकरी खत्म की जाये ताकि यह जांच को किसी प्रकार प्रभावित न कर पायें। दूसरा सबसे महत्वपूर्ण कदम यही है कि ऐसे बने किसी भी भवन अथवा कालोनी को नेस्तनाबूत करने की जगह उसे राष्ट्रीय संपत्ति घोषित किया जाये। इसका उपयोग सरकार के किसी कार्यालय अथवा अन्य उपयोग के लिये किया जा सकता है। ऐसे भ्रष्टाचार में लिप्त लोगों को जेल भेजना तीसरा कदम होना चाहिये।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें