भ्रष्टों को सेवा से बर्खास्त करने में देरी क्यों? नये को मौका मिलना चाहिये!


एक अरब पच्चीस करोड़ की आबादी में सरकारी कर्मचारियों की संख्या आबादी के प्रतिशत से बहुत कम है, इनमें से अधिकांश जहां अपनी ईमानदारी से काम करते हैं किन्तु उनमें से बहुतों पर घूसखोरी, अनुपातहीन संपत्ति रखने, शराब पीकर कार्यालय आने, दुर्व्यवहार, यौन प्रताड़ना जैसे आरोप हंै लेकिन सरकार की ऐसे मामलों में कार्रवाई इतनी ढीली है कि ऐसे लोग अपने पदों पर बने रहते हैं जिससे नये और उत्साही लोगों को मौका नहीं मिलता. आजादी के बाद से अब तक यह सिलसिला चला आ रहा है. किसी भी पार्टी की सरकार ने इस मुद्दे पर कोई कदम नहीं उठाया. सबसे दिलचस्प बात तो यह है कि सरकारी तंत्र को चलाने वाले राजनीतिज्ञ भी जिन पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप होते हैं वे भी पद छोड़ने के लिये तैयार नहीं होते, या तो वे खुद अपने आपको ईमानदार समझते हैं या फिर उन्हें सरकार में बैठे लोगों का ही संरक्षण प्राप्त रहता है. अब व्यापम घोटाले में गंभीर आरोपों से लिप्त एक संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति का ही उदाहरण लीजिये- कुर्सी से ऐसे चिपके हुए हैं कि हटने का नाम ही नहीं ले रहे. जब सरकारी तंत्र का बड़ा हिस्सा ही इस प्रकार का अड़ियल रूख अख्तियार करता है और सरकारी तंत्र खामोश रहता है तो बाकी लोगों की क्या कहें? लेकिन सरकारी नौकरशाही से भ्रष्टाचार को तुरन्त खत्म किया जा सकता है, इसके लिये यह जरूरी है कि सरकार एक आदमी जो भ्रष्टाचार व अन्य बुराइयों में लिप्त है उसी को सब कुछ न माने, दूसरे को मौका देने की नीति अपनाएं. लाखों नये बेरोजगारों को इससे नौकरी मिलेगी. सरकारी नौकरी में लगाने से पहले यह जरूरी है कि उनपर ऐसी व्यवस्था लागू की जाये कि अगर वे किसी भी भ्रष्टाचार या अन्य किसी गलत कार्य में लिप्त पाये जाते हैं तो उनकी सेवा तत्काल समाप्त कर दूसरे व्यक्ति को मौका दिया जाये. देश में ऐसे एक नहीं करोड़ों लोग आज नौकरी के लिये भटक रहे हैं. देश की जड़ को हिलाकर रख देने वाला भ्रष्टाचार इस समय अधिक पनप रहा है, उसे खत्म करने के लिये जरूरी है कि सेवा में रहते या नई सेवा में आते समय दोनों ही स्थिति में उनसे वचन लिया जाये कि अगर वे कुछ गड़बड़ करते पकड़े जाते हैं तो उन्हें अपनी सेवा से तत्काल हाथ धोना पड़ेगा और उनकी जगह नये व्यक्ति को मौका दिया जायेगा, साथ ही उनकी अवैध कमाई पर मुकदमा भी चलेगा तथा अनुपातहीन संपत्ति को भी जप्त किया जायेगा. इसी प्रकार सेवा में रहते अपने सहयोगी से यौन प्रताड़ना का भी कोई मामला अगर सामने आता है तो ऐसे व्यक्ति को भी सेवा में रहने का कोई अधिकार नहीं रह जाता. यह बात भी समझ में नहीं आता कि गंभीर से गंभीर आरोप लगने के बाद भी किसी एक व्यक्ति को महिमामंडित कर सेवा में रहने क्यों दिया जाता है? तत्काल नौकरी से बर्खास्त करो. यह नीति जब तक अस्तित्व में नहीं आयेगी तब तक इस बात की संभावना कम ही है कि भ्रष्टाचार व यौन प्रताड़ना जैसे मामलों पर रोक लगेगी.

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