जब ऊपरी लेवल पर ही नैतिकता, जिम्मेंदारी खत्म हो रही है तब आगे तो खाई ही खाई है!
जी हां नैतिकता, जिम्मेंदारी,संस्कृति, परंपराएं यह सब अब जिम्मेंदार और सत्ता में बैठे लोगों की डिक्शनरी से गायब हो चुके हैं.कुर्सी और सत्ता में चिपके रहने पर ही लोग अपनी भलाई समझने लगे हैं चाहे वह बड़े से बड़ा घोटाला हो, भीषण प्लेन दुर्घटना हो या ट्रेन दुर्घटना अथवा किसी अबला पर सामूहिक दुष्कर्म, किसी को कोई फरक नहीं पड़ता.असल में नैतिकता का पाठ जिन्हें सिखाना है वे स्वयं जब कुर्सी छोड़ने के लिये तैयार न हो तो हम किसी छोटे- बड़े को दोष क्यों दें? बड़े से बड़े घोटाले आज प्रकाश में आ रहे हैं.नौकरशाह और संबन्धित मंत्रीगण लोगों को नैतिकता का पाठ पढ़ाकर एक दूसरे पर जिम्मेंदारी थोपकर अपनी गर्दन बचाने की फिराक में हैं कोई नैतिकता का नाम लेकर के न पद छोड़ता है और न ही जिम्मेंदारी लेता है. छत्तीसगढ़ में नान घोटाला हो या मध्यप्रदेश में व्यापम घोटाला किसी बड़े अधिकारी और संबन्धित मंत्री ने न कभी अपनी नैतिक जिम्मंदारी ली और न ही पद छोड़कर एक उदाहरण पेश करने का साहस किया. ऐसे में सारी व्यवस्था में बैठे लोग आम जनता, जिनके लिये वे काम करते हैं विश्वास खोने लगे हैं. यह स्थिति पूर्व में यूपीए सरकार के समय भी थी और अब एनडीए सरकार का भी यही हाल है.यूपीए के शासन काल में भ्रष्टाचार, जिसमें स्पेक्ट्रम, कोलगेट जैसे गंभीर मामलों पर पूरी सरकार में से कोई भी ऐसा सामने नहीं आया जिसने नैतिकता के नाम से अपने पद से इस्तीफा दिया हो जबकि कांग्रेेस और पुरानी एनडीए सरकार के समय कई ऐसे उदाहरण थे जिसमें एक बड़ा मामला अगर सामने आ जाता तो संबन्धित मंत्री कुर्सी छोड़कर घर बैठ जाते थे.लालबहादुर शास्त्री, ललित नारायण मिश्र, माधव राव सिंधिया,अटल बिहारी बाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी जैसे उस समय के मंत्रियों को लोग आज भी याद करते हैं जिन्होंने रेल दुर्घटनाओं और घोटालों की जिम्मेंदारी अपने ऊपर लेते हुुए पदत्याग किया.अटल बिहारी का गुजरात मामले पर राजधर्म की सीख को भी लोग भूल गये जबकि हवाला मामले में लालकृष्ण आडवाणी ने उस समय पद पर रहना उचित नहीं समझा था जब तक उनके ऊपर से यह दाग नहीं मिटा. इधर एनडीए को सत्ता में आये अभी एक साल ही हुए हंै कि कई घपले,घोटाले, रेल दुर्घटनाएं, हवाई दुर्घटनाएं, अन्य बड़े बड़े हादसे हो गये किसी को कोई फरक नहीं पड़ा.जनता स्वयं यह महसूस करने लगी है कि सारी गड़बड़ियों का घड़ा अभी से भरने लगा है तो आगे क्या होगा? सबसे बड़ी बात तो यह है कि शीर्ष में बैठे लोग आंख मूंदकर सारी गड़बडियों को देख रहे हैं और उन्हें आगे और गड़बडियां करने का मौका दे रेहे हैं. मध्यप्रदेश में व्यापम, महाराष्ट्र में भू खरीदी छत्तीसगढ़ में नान घोटाला,केन्द्र में ललित मोदी विवाद, शिक्षा मंत्री की फर्जी डिग्री ,राजस्थान की मुख्यमंत्री बसुन्धरा राजे और
केन्द्र में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का कथित रूप से ललित गेट में इन्वोलमेंट यह सब कुछ ऐसे मामले हैं जो जनता की नजरों में न केवल है बल्कि इस पर घरों में तक बहस हो रही है.व्यापम घोटाले में रोज एक के बाद एक कथित रूप से शामिल लोगों की मौत का गंभीर रहस्य छाए होने के बाद भी इस पर जो टिप्पणियां शासन पक्ष के लोगों की तरफ से आ रही है वह न केवल चिंतनीय है बल्कि गंभीर भी है. इन सब पर शीर्ष स्तर में बैठी कमान की खामोशी और निर्णय लेने की क्षमता में कमी के कारण देश की संपूर्ण व्यवस्था पर सवाल उठने लगे हैं।
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