सरकार की दूरगामी योजनाएं लेकिन वर्तमान को कौन देखेगा, महंगाई फिर बेलगाम!
या तो हमे जल्दी भूल जाने की आदत है या फिर हम अपने पर होने वाले जुल्म का प्रतिकार ही नहीं करते. हमारी खामोशी सामने वाले को हमारे ऊपर और जुल्म ढहाने का मौका देती है. सत्ता में आने से पूर्व सरकारें हमसे कितने लुभावने वादे करती है हम यह कर देंगे वो कर देंगे मगर हकीकत यही है कि ऊं ची कुर्सियों से चिपकने के बाद वे न यह करते हैं और न वे करते हैं! मंहगाई,भ्रष्टाचार और विदेशों में जमा कालेधन की वापसी का लुभावना नारा देकर सरकार सत्ता में आई. यह सरकार भी भूल गई और हम भी भूलने लगे.वास्तविकता यही थी कि जनता पूर्ववर्ती सरकार की चुप्पी और मंहगाई, भ्रष्टाचार तथा कालाधन वापस लाने में असफलता को लेकर आम जनता को नाराज कर चुकी थी.वर्तमान सरकार ने सौ दिन पूरे होने के बाद भी आम इंसान को सपने दिखाने के सिवा कोई राहत देने का प्रयास किया हो यह दिखाई नहीं दे रहा. शुरू-शुरू में जब पेट्रोल, डीजल के भाव गिरे तो जनता ने यह महसूस किया कि वास्तव में सरकार अपने वादों के प्रति कटिबद्व है लेकिन बाद में पता चला कि यह सब अंतर्राष्ट्रीय कीमतों में घट बढ़ से हो रहा है.जो भाव आज पेट्रोल डीजल के हैैं वह नई सरकार बनते समय भी लगभग उतनी ही थी. सरकार ने बजट पेश करते हुए लुभावने सपने दिखाये, पहले रेल किराये, रेल भाड़े में आगे पीछे सब ओर से बढ़ौत्तरी की फिर सुविधा देने के बाद लगातार वृद्वि पर वृद्वि ने लोगों की कमर ही तोड़कर रख दी. महिलाओं को सुरक्षा देने के सपने सब धरे के धरे रह गये. कहीं कभी किसी महिला को ट्रेन से उठाकर फेक दिया जाता तो कहीं गुण्डे ट्रेन में चढ़कर दुर्व्यवहार करते. लूटपाट, डकैती की घटनाओं ने रेल के सफर को कठिन बना दिया. ट्रेनों में न सुविधाएं बढ़ी न भीड़ घटी और न रेल की स्पीड बढ़ी. इधर पेट्रोलियम पदार्थों के दामों में वृद्धि का नतीजा यह हुआ कि ट्रांसपोर्ट किराया बढ़ गया.बस किराया भी बढ़ा दिया गया वहीं सर्विस टैक्स ने लोगों का जीना हराम कर दिया. राजस्व के अनेक साधन होते हुए भी सरकारें सर्विस टैक्स से लाभ कमाने में लगी है-यहां तक कि दिल्ली की आम आदमी पार्टी ने भी सर्विस टैक्स के मामले में जनता पर रहम नहीं किया. वस्तुओं के भावों में अनाप- शनाप वृद्धि से लोगों की रसोई का बुरा हाल हो गया. गैस, बिजली तो पहले ही महंगी कर दी गई. आम आदमी का रोटी दाल सब्जी खाना भी महंगा हो गया. हर दृष्टि से देखा जाये तो आज के हालात में वही अपना जीवन बसर कर पा रहा है जिसके पास मासिक आमदनी तीस चालीस हजार रूपये से ऊपर है वरना मध्यम दर्जे के किसी व्यक्ति को परिवार चलाना मुश्किल है-वह बच्चों की फीस, कपड़े,इलाज,बिजली,टेलीफोन, मोबाइल जैसे रोजमर्रा के खर्चे आदि सभी के लिये अपने आपको असहाय महसूस कर रहा है.सरकार दूरगामी योजनाओं की ही बात कर रही है किन्तु वर्तमान की चिंता नहीं है .इसमें दो मत नहीं कि दूरगामी योजनाएं होनी चाहिये लेकिन वर्तमान को कौन देखगा? सवाल आज सबके सामने यही है।
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