अब तक तीन! सरकारी विभागों में घोटालों को दबाने का नया खेल,
अब तक तीन! सरकारी
विभागों में घोटालों
को दबाने का नया खेल,
'आग लगा दो, सबूत नष्ट कर दोÓ- घपले, घोटालेबाजों की छत्तीसगढ़ में यह कोई नई परंपरा नहीं है,कई सालों से ऐसा होता आया है, इससे पूर्व रायपुर के राजकुमार कालेज के सामने जब आरटीओ दफतर था, उसे भी आग के हवाले किया जा चुका है लेकिन इस एक वर्ष दौरान तीन घटनाओं ने तो एक नया रिकार्ड कायम किया है.मलाई से भरपूर विभागों में एक के बाद एक अग्रिकांड से प्रशासनिक हलकों में तहलका मचना स्वाभाविक है साथ ही अब विभागों में कार्यरत कतिपय कर्मचारियों के चरित्र पर भी संदेह की परत चढ़ गई है. सिंचाई विभाग के जिस कमरे में आग लगी थी उसमें कई सालों का रिकार्ड जमा था जो जल गया या जलाकर राख कर दिया गया. आग लगने के लिये सीधे-सीधे शार्ट सर्किट को जिम्मेंदार बताकर अधिकारी व कर्मचारी अपना पल्ला झाड़ लेते हैं. कोई जवाबदारी लेने को तैयार नहीं.सिंचाई विभाग में आग कैसे लगी, इसमें कौन लोग मिले हुए हैं इसकी जांच चल ही रही थी कि डायवर्सन विभाग में आग लग गई. और इसकी आग ठंड भी नहीं हुई कि संस्कृति विभाग आग की चपेट में आ गया .यहां शक की सुई कैशियर डिपार्टमेंट के बाबू पर टिकी हुई है जो यहां देर रात तक कार्य करते मिला जबकि इस दफतर में तैनात चौकीदार के अनुसार बाबू देर रात तक आफिस में था और फाइले टटोल रहा था, उसके आफिस से निकलने के बाद ही धुआं उठा और आग लग गई.एक साधारण आदमी भी बता सकता है कि सरकारी दफतरों में होने वाली आगजनी की घटनाओं में कथित रूप से संबन्धित लोग ही इनवोल्व रहते हैं फिर भी अब तक ऐसा कोई मामला उजागर नहीं हुआ जिसमें किसी पर कार्यवाही हुई हो. संस्कृति विभाग में लगी आग में 2010 से 2014 के बीच की सारी फाइलों के जलने की संभावना व्यक्त की गई अर्थात इस दौरान जो भी फाइले जमा की गई थी वे सब स्वाहा हो गई. घपले घोटालों का अंतिम संस्कार कर दिया गया. आगजनी की घटनाओं के बाद पुलिस में रिपोर्ट दर्जर् होती है विभागीय जांच होती है किन्तु आज तक ऐसा कोई मामला सामने नहीं आया जिसमें किसी विभागीय कर्मचारी को आगजनी के आरोप में सजा दी गई हो.आग की आंच जैसे ही ठण्डी होती है दूसरा मामला सामने आ जाता है. सरकारी विाभागों को अपनी गोपनीय फाइलों को रखने की पृथक व्यवस्था करनी होगी साथ ही ऐसे कुछ कर्मचारियों की गतिविधियों पर भी निगाह रखनी होगी तभी इस तरह की घटनाओं पर रोक लग सकती है वरना अग्रिकांड के लिये गठित जांच कमेेटियों का दायरा इतना बढ़ जायेगा कि उनके लिये एक अलग से विभाग बनाना पड़ेगा.
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