नये पत्रकार पढ़ेंगे आउटर में, इंजीनियर भी होगें शहरबदर!
रायपुर मंगलवार 26 अक्टूबर 2010
नये पत्रकार पढ़ेंगे आउटर में,
इंजीनियर भी होगें शहरबदर!
कई दिनों से कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय को अमलेशर में शिफ्ट किया गया और सोमवार से वहां पढ़ाई भी शुरू हो गई। करोड़ों रूपये खर्च कर तैयार किये गये इस कैम्पस में मात्र सौ छात्र -छात्राएं हैं। जिन्हें अनेक बाधाओं को पार कर इस विश्वविद्यालय तक पहुंचना पड़ता है। इन बाधाओं में शराबी,जुआरी और अन्य समाजविरोधी तत्व भी हैं। अब तक यह विश्वविद्यालय कोटा में चल रहा था। यहां से हटाकर इसे अमलेशर ले जाने का सपना किसने देखा? यह तो पता नहीं, किंतु जिसने भी इस बुद्वि का इस्तेमाल किया। उसकी सोच की दाद दी जानी चाहिये कि वह छात्रों को मुश्किलों से जूझना सिखाकर ही पत्रकारिता की डिग्री लेेने के लिये मजबूर करेगा। वैसे यह एक पत्रकारिता विश्वविद्यालय का अकेला मामला नहीं है। शहर में यत्र तत्र फैले कॉलेजों का भी यही हाल है। जहां तक पहुंचने के लिये छात्रों को कई किस्म के पापड़ बेलने पड़ते हैं। रायपुर का मेडिकल कालेज पहले आज जहां आयुर्वेदिक कालेज है उसके बगल में अभी जहां डेंटल कालेज हैं, वहां लगा करता था। तत्कालीन मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्यामाचरण चाहते थे कि मेडिकल कॉलेज जेल रोड़ पर बने। उन्होंने उसे वहां बना दिया। जबकि उस समय विश्वविद्यालय के पास इतनी भूमि पड़ी थी कि एक अच्छा और भव्य मेडिकल कालेज इसके पा्रगंण में बन जाता। विश्वविद्यालय के आसपास का सारा क्षेत्र शिक्षा से संबन्धित संस्थानों से भरा पड़ा है। फिर योजनाकारों ने शैक्षणिक संस्थानों को क्यों अलग -अलग किया। विश्चविद्यालय के समीप ही इंजीनियरिंग कालेज जो अब एनआईटी है, सामने साइंस कॉलेज, पीछे छात्रों का छात्रावास, बाजू में आयुर्वेदिक कॅालेज, संस्कृत कॉलेज , यूटीडी जैसी सुविधाएं हैं, तो अन्य नई उदित होने वाली शौक्षणिक संस्थानों को शहर से बाहर क्यों किया गया?एनआईटी को भी शहर बदर कर दिया गया है। सरकार के शैक्षणिक संस्थानों और निजी शैक्षणिक संस्थानों में अंतर ही क्या रह गया। रायपुर शहर पहली बार पहुंचने वालों को अगर रविशंंकर विश्व विद्यालय प्रागंण या उसके आसपास ही सारे शिक्षण संस्थान एक साथ मिल जाते तो दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़़ता। एनआईटी का नया भवन शहर से बाहर बनाकर, उसे भी शहर बदर कर दिया गया है। कुछ ही दिनों में नई राजधानी में सारे सरकारी दफतर मंत्रालय आदि शिफट हो जायेंगें- इससे शहर की सड़कों पर भीड़ थोडी बहुत कम होगी। बड़े अधिकारियों का कुछ नहीं बिगडऩे वाला लेकिन तृतीय और चतुर्थ वर्ग कर्मचािरयों की क्या स्थिति होने वाली है? इसकी कल्पना की जा सकती है। हालांकि बड़े शहरों की तरह लोकल ट्रेन, सिटी बस सेवा आदि की योजना है। मगर इस नई व्यवस्था को झेलकर उसमें समा जाने में काफी मशक्कत करनी पड़ेगी। विशेषकर रायपुर में रहने वाली महिला कर्मचारियों के समक्ष तो बहुत बड़ी समस्या शुरू- शुरू के दिनों में आने वाली है।
नये पत्रकार पढ़ेंगे आउटर में,
इंजीनियर भी होगें शहरबदर!
कई दिनों से कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय को अमलेशर में शिफ्ट किया गया और सोमवार से वहां पढ़ाई भी शुरू हो गई। करोड़ों रूपये खर्च कर तैयार किये गये इस कैम्पस में मात्र सौ छात्र -छात्राएं हैं। जिन्हें अनेक बाधाओं को पार कर इस विश्वविद्यालय तक पहुंचना पड़ता है। इन बाधाओं में शराबी,जुआरी और अन्य समाजविरोधी तत्व भी हैं। अब तक यह विश्वविद्यालय कोटा में चल रहा था। यहां से हटाकर इसे अमलेशर ले जाने का सपना किसने देखा? यह तो पता नहीं, किंतु जिसने भी इस बुद्वि का इस्तेमाल किया। उसकी सोच की दाद दी जानी चाहिये कि वह छात्रों को मुश्किलों से जूझना सिखाकर ही पत्रकारिता की डिग्री लेेने के लिये मजबूर करेगा। वैसे यह एक पत्रकारिता विश्वविद्यालय का अकेला मामला नहीं है। शहर में यत्र तत्र फैले कॉलेजों का भी यही हाल है। जहां तक पहुंचने के लिये छात्रों को कई किस्म के पापड़ बेलने पड़ते हैं। रायपुर का मेडिकल कालेज पहले आज जहां आयुर्वेदिक कालेज है उसके बगल में अभी जहां डेंटल कालेज हैं, वहां लगा करता था। तत्कालीन मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्यामाचरण चाहते थे कि मेडिकल कॉलेज जेल रोड़ पर बने। उन्होंने उसे वहां बना दिया। जबकि उस समय विश्वविद्यालय के पास इतनी भूमि पड़ी थी कि एक अच्छा और भव्य मेडिकल कालेज इसके पा्रगंण में बन जाता। विश्वविद्यालय के आसपास का सारा क्षेत्र शिक्षा से संबन्धित संस्थानों से भरा पड़ा है। फिर योजनाकारों ने शैक्षणिक संस्थानों को क्यों अलग -अलग किया। विश्चविद्यालय के समीप ही इंजीनियरिंग कालेज जो अब एनआईटी है, सामने साइंस कॉलेज, पीछे छात्रों का छात्रावास, बाजू में आयुर्वेदिक कॅालेज, संस्कृत कॉलेज , यूटीडी जैसी सुविधाएं हैं, तो अन्य नई उदित होने वाली शौक्षणिक संस्थानों को शहर से बाहर क्यों किया गया?एनआईटी को भी शहर बदर कर दिया गया है। सरकार के शैक्षणिक संस्थानों और निजी शैक्षणिक संस्थानों में अंतर ही क्या रह गया। रायपुर शहर पहली बार पहुंचने वालों को अगर रविशंंकर विश्व विद्यालय प्रागंण या उसके आसपास ही सारे शिक्षण संस्थान एक साथ मिल जाते तो दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़़ता। एनआईटी का नया भवन शहर से बाहर बनाकर, उसे भी शहर बदर कर दिया गया है। कुछ ही दिनों में नई राजधानी में सारे सरकारी दफतर मंत्रालय आदि शिफट हो जायेंगें- इससे शहर की सड़कों पर भीड़ थोडी बहुत कम होगी। बड़े अधिकारियों का कुछ नहीं बिगडऩे वाला लेकिन तृतीय और चतुर्थ वर्ग कर्मचािरयों की क्या स्थिति होने वाली है? इसकी कल्पना की जा सकती है। हालांकि बड़े शहरों की तरह लोकल ट्रेन, सिटी बस सेवा आदि की योजना है। मगर इस नई व्यवस्था को झेलकर उसमें समा जाने में काफी मशक्कत करनी पड़ेगी। विशेषकर रायपुर में रहने वाली महिला कर्मचारियों के समक्ष तो बहुत बड़ी समस्या शुरू- शुरू के दिनों में आने वाली है।
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