दबा-दबा उत्सव, मीरा कुमार से उद्घाटन क्यों नहीं कराया गया?

रायपुर बुधवार। दिनांक 27 अक्टूबर 2010

दबा-दबा उत्सव, मीरा कुमार से
उद्घाटन क्यों नहीं कराया गया?
राज्योत्सव की तैयारियों में कम से कम एक महीने का समय लगा। इस दौरान रायपुर शहर की सड़कों का डामरीकरण तो नहीं हुआ, हां यह कहा जा सकता है कि पेचिंग हुई। कुछ सड़कों के डामरीकरण का कार्य शुरू किया गया था। जिसे एक रोज दोपहर हुई तो बारिश ने चौपट कर दिया। उसके बाद डामरीकरण की पोल खुल गई और निगम आयुक्त ने डामरीकरण पर रोक लगा दी। महापौर कहती हं कि राज्य शासन ने उन्हें सड़क बनाने पैसा ऐन समय पर दिया। वरना वे सड़कों को चकाचक कर देती! रायपुर में जंग लगे स्ट्रीट लाइट के खम्बों का रंग रोगन हुआ। वह भी एक कोट से, तो डिवाइडरों पर लगे सूखे फूल पौधों को हटाकर कहीं -कहीं दूसरे पौधे लगाये गये। राज्योत्सव हर साल मनाया जाता है, इसका रूप अब बदलता जा रहा है। फायदा किसे हो रहा है? यह तो किसी को नहीं मालूम, लेकिन यह जरूर कहा जा सकता है कि राजधानी रायपुर दीपोत्सव से पहले रंगारंग दिखने लगी। बालीवुड अभिनेता सलमान खान को कमर मटकाने के लिये कितना पैसा दिया गया? यह तो हमें नहीं मालूम, लेकिन मुश्किल से दस मिनट के कार्यक्रम को देखने उन युवाओं की संख्या ज्यादा थी,जो सलमान खान की बॉडी देखना चाहते थे। छत्तीसगढ़ राज्य स्थापना दिवस के रूप में आयोजित होने वाला यह कार्यक्रम अपने भारी खर्च के कारण चर्चा का विषय बनता जा रहा है। वहीं इस आयोजन में छत्तीसगढ़ के माटी पुत्रों, कलाकारों व राज्य के लिये अपनी पूरी ताकत लगा देने वालों की घोर उपेक्षा होने लगी है। सबसे पहला सवाल यह है कि छत्तीसगढ़ राज्योत्सव की उपयोगिता किस हद तक है? यह आयोजन सिर्फ मनोरंजन और मेले के चंद दिन बनकर रह गया है। जबकि इस आयोजन के लिये हर साल करोड़ों रूपये खर्च होने लगा है। यह किसी से छिपा नहीं है कि बालीवुड कलाकारों को कार्यक्रमों में बुलाने का खर्च लाखों में होता है। अगर इतना पैसा पुराने रायपुर शहर के विकास कार्यो को तेजी से कर हर साल दीवाली के पहले तैयार कर लोगों के सिपुर्द कर दिया जाता, तो शायद इस उत्सव से ज्यादा इन दिनों की चर्चा होती। छत्तीसगढ़ के लोक कलाकार इस आयोजन से दरकिनार कर दिये गये हैं। छत्तीसगढ़ी या हिन्दी के गायक कलाकारों की जगह पॉप सिंगर,पंजाबी सिंगर और अन्य इसी प्रकार के लोगों को बुलाकर इस अंचल के प्रतिभाओं की उपेक्षा की गई। छत्तीसगढ़ी नाचा,गम्मत ,लोकसंगीत से परहेज क्यों किया जा रहा है? सवाल यह भी उठता है कि छत्तीसगढ़ी भाषा के कार्यक्रमों का राज्योत्सव से गायब होने पर छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग और छत्तीसगढ़ी भाषा के लिये हल्ला मचाने वालों ने मौन क्यों साध रखा ? क्या छत्तीसगढ़ में कलाकारों की कमी थी, जो बाहर से आयातित कर कलाकारों को बुलाया जाता है? छत्तीसगढ़ में जनाब शेख हुसैन को लोग मोहम्मद रफी की आवाज का द्योतक मानते हैं। निर्मला ठाकुर को छत्तीसगढ़ की लता मंगेशकर के रूप में जाना जाता है। अनसूइया, कविता वासनिक, लक्ष्मण मस्तूरिया को कार्यक्रम से क्यों दूर रखा गया? राज्यपाल शेखर दत्त उद्घाटन के लिये उचित व्यक्ति थे, लेकिन उद्घाटन समारोह के दिन लोकसभाध्यक्ष मीरा कुमार के राष्ट्रकुल संसदीय सम्मेलन में आने का कार्यक्रम पहले से तय था। उनसे एप्रोच की जाती, तो समय निकालकर इस आयोजन का उद्घाटन कर सकती थीं। लेकिन, उनसे शायद इस मामले में बात ही नहीं की गई। बहरहाल, छत्तीसगढ़ राज्योत्सव पूरे छत्तीगढ़ का न होकर यह सिर्फ राजधानी तक ही सिमटकर रह गया है। जबकि इसका पूरा फायदा छत्तीसगढ़ के हर नागरिक को किसी न किसी रूप में मिलना चाहिये। जिस समय साइंस कालेज में कार्यक्रम चल रहा था। उस समय रायपुर की सड़कों का नजारा रोजमर्रे जैसा था। साइंस कालेज में भीड़ थी किंतु यह भीड़ कार्यक्रम में नेताओं का भाषण सुनने के लिये नहीं, वरन् अभिनेता को देखने के लिये थी। अभिनेता यहां पहुंचे भी तो सिर्फ एक उद्योगपति का प्रमोषन करने के लिये। इससे कम से कम यह अंदाज तो लगाया जा सकता है कि राज्योत्सव कितना सिमटता जा रहा है।

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