खंडपीठ देरी के लिये कौन जिम्मेदार?
रायपुर दिनांक 4 अक्टूबर
हाईकोर्ट की खंडपीठ रायपुर में स्थापित
करने मे देरी के लिये कौन जिम्मेदार?
वीरप्पा मो इली की पिछली रायपुर यात्रा में एक महत्वपूर्ण रहस्योद्धाटन हुआ कि राजधानी रायपुर में बिलासपुर उच्च न्यायालय की खंडपीठ स्थापना के लिये राज्य शासन की तरफ से कोई प्रस्ताव भेजा ही नहीं गया। केन्द्रीय विधि मंत्री मो इली से जब रायपुर के लोगों ने अनुरोध किया कि बिलासपुर उच्च न्यायालय की खंडपीठ रायपुर में स्थापित की जा ये तो उनका जवाब सुनकर सब चौक गये कि राज्य शासन प्रस्ताव प्रेषित करें तो वे उस संबंध में विचार करेंगे। इस बयान से यह रहस्योद्धाटन हुआ कि रायपुर में उच्च न्यायालय की खण्डपीठ स्थापना के संबंध में राज्य की अब तक की सरकारें ला परवाह रही। राज्य स्थापना को एक दशक बीतने को है लेकिन राज्य सरकार ने रायपुर में खंडपीठ के लिये कोई प्रस्ताव पारित नहीं किया जबकि अपनी सुविधाओं का विस्तार करने के लिये नई राजधानी और नये भवन सब आधुनिक ढंग से तैयार किये गये। आम आदमी के हित को मद्दे नजर रखते हुए अगर रायपुर मे खंडपीठ का प्रस्ताव भेज दिया जाता तो शायद अब तक यहां खंडपीठ की स्थापना हो जाती। राज्य स्थापना के पूर्व से रायपुर में हाई कोर्ट की ब्रांच की मांग की जाती रही है। इसके लिये सरकार ने जसवंत सिंह आयोग का गठन किया और उसने भी अपनी रिपोर्ट में रायपुर में हाईकोर्ट बैंच की अनुशंसा की लेकिन जब नये राज्य की राजधानी का मामला आया तो हाईकोर्ट बिलासपुर के हिस्से में चला गया और रायपुर को राजधानी से संतोष करना पड़ा। बिलासपुर को हाईकोर्ट मिला उसका रायपुर वासियों को कोई गिला शिकवा नहीं किंतु रायपुर में हाईकोर्ट बैंच की मांग उस समय से बलवती थी। राज्य सरकारों ने इस महत्वपूर्ण मुद्दे की क्यो अवहेलना की यह अपने आप में एक यक्ष प्रश्न है। क्या यह नौकरशाहों की एक चाल तो नहीं थी जिसके कारण यह प्रस्ताव केन्द्र को नहीं भेजा गया। सरकार के कई मुकदमे हाईकोर्ट बिलासपुर और जबलपुर में चल रहे हैं इसके लिये जो टीडीए मिलता है वह रायपुर मे हाईकोर्ट बैंच की स्थापना के बाद मिलना बंद हो जायगा। बिलासपुर में हाईकोर्ट की वजह से बहुत से सुदूर क्षेत्रो के कई पक्ष उपस्थिति दर्ज नहीं करा पाते। आज की स्थिति में बिलासपुर हाईकोर्ट मे अधिकतर मामले सुदूर क्षेत्रो के हैं जो लंबित पड़े हैं। अगर एक नजर हम देश के राज्यों पर डाले तो अधिकांश में हाईकोर्ट की खंडपीठ कायम है। उत्तर प्रदेश मे इलाहाबाद हाईकोर्ट की खंडपीठ से ही अयोध्या का मुकदमा सुनाने के लिये राजधानी लखनऊ भेजा गया। महाराष्ट्र और कई अन्य राज्यों में हाईकोर्ट के बैंच है तब रायपुर का अधिकार हर दृष्टि से बनता है। इस अधिकार को मांगने में जिन लोगों ने भी देर की उन्हे इस क्षेत्र की जनता कभी माफ नहीं कर सकती। अब जब केन्द्रीय विधि मंत्री ने स्वंय इस मामले में एक तरह से पहल की है तो सरकार को प्रस्ताव प्रेषित करने और उसके लिये रायपुर के राजकुमार कॉलेज भवन को अधिग्रहित कर वहां हाईकोर्ट की खंडपीठ स्थापित करने में किसी प्रकार की देरी नहीं करना चाहिये।
हाईकोर्ट की खंडपीठ रायपुर में स्थापित
करने मे देरी के लिये कौन जिम्मेदार?
वीरप्पा मो इली की पिछली रायपुर यात्रा में एक महत्वपूर्ण रहस्योद्धाटन हुआ कि राजधानी रायपुर में बिलासपुर उच्च न्यायालय की खंडपीठ स्थापना के लिये राज्य शासन की तरफ से कोई प्रस्ताव भेजा ही नहीं गया। केन्द्रीय विधि मंत्री मो इली से जब रायपुर के लोगों ने अनुरोध किया कि बिलासपुर उच्च न्यायालय की खंडपीठ रायपुर में स्थापित की जा ये तो उनका जवाब सुनकर सब चौक गये कि राज्य शासन प्रस्ताव प्रेषित करें तो वे उस संबंध में विचार करेंगे। इस बयान से यह रहस्योद्धाटन हुआ कि रायपुर में उच्च न्यायालय की खण्डपीठ स्थापना के संबंध में राज्य की अब तक की सरकारें ला परवाह रही। राज्य स्थापना को एक दशक बीतने को है लेकिन राज्य सरकार ने रायपुर में खंडपीठ के लिये कोई प्रस्ताव पारित नहीं किया जबकि अपनी सुविधाओं का विस्तार करने के लिये नई राजधानी और नये भवन सब आधुनिक ढंग से तैयार किये गये। आम आदमी के हित को मद्दे नजर रखते हुए अगर रायपुर मे खंडपीठ का प्रस्ताव भेज दिया जाता तो शायद अब तक यहां खंडपीठ की स्थापना हो जाती। राज्य स्थापना के पूर्व से रायपुर में हाई कोर्ट की ब्रांच की मांग की जाती रही है। इसके लिये सरकार ने जसवंत सिंह आयोग का गठन किया और उसने भी अपनी रिपोर्ट में रायपुर में हाईकोर्ट बैंच की अनुशंसा की लेकिन जब नये राज्य की राजधानी का मामला आया तो हाईकोर्ट बिलासपुर के हिस्से में चला गया और रायपुर को राजधानी से संतोष करना पड़ा। बिलासपुर को हाईकोर्ट मिला उसका रायपुर वासियों को कोई गिला शिकवा नहीं किंतु रायपुर में हाईकोर्ट बैंच की मांग उस समय से बलवती थी। राज्य सरकारों ने इस महत्वपूर्ण मुद्दे की क्यो अवहेलना की यह अपने आप में एक यक्ष प्रश्न है। क्या यह नौकरशाहों की एक चाल तो नहीं थी जिसके कारण यह प्रस्ताव केन्द्र को नहीं भेजा गया। सरकार के कई मुकदमे हाईकोर्ट बिलासपुर और जबलपुर में चल रहे हैं इसके लिये जो टीडीए मिलता है वह रायपुर मे हाईकोर्ट बैंच की स्थापना के बाद मिलना बंद हो जायगा। बिलासपुर में हाईकोर्ट की वजह से बहुत से सुदूर क्षेत्रो के कई पक्ष उपस्थिति दर्ज नहीं करा पाते। आज की स्थिति में बिलासपुर हाईकोर्ट मे अधिकतर मामले सुदूर क्षेत्रो के हैं जो लंबित पड़े हैं। अगर एक नजर हम देश के राज्यों पर डाले तो अधिकांश में हाईकोर्ट की खंडपीठ कायम है। उत्तर प्रदेश मे इलाहाबाद हाईकोर्ट की खंडपीठ से ही अयोध्या का मुकदमा सुनाने के लिये राजधानी लखनऊ भेजा गया। महाराष्ट्र और कई अन्य राज्यों में हाईकोर्ट के बैंच है तब रायपुर का अधिकार हर दृष्टि से बनता है। इस अधिकार को मांगने में जिन लोगों ने भी देर की उन्हे इस क्षेत्र की जनता कभी माफ नहीं कर सकती। अब जब केन्द्रीय विधि मंत्री ने स्वंय इस मामले में एक तरह से पहल की है तो सरकार को प्रस्ताव प्रेषित करने और उसके लिये रायपुर के राजकुमार कॉलेज भवन को अधिग्रहित कर वहां हाईकोर्ट की खंडपीठ स्थापित करने में किसी प्रकार की देरी नहीं करना चाहिये।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें