चुभने लगा अपराधीकरण!
रायपुर दिनांक 5 अक्टूबर 20010
चुभने लगा अपराधी करण!
चुनाव आयोग द्वारा बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में राजनीतिक दलों ने राजनीति में अपराधी करण पर अंकुश लगाने की मांग की हैं। इस मांग पर विस्मय इस बात को लेकर है कि जिन पार्टियों ने पहले राजनीति का अपराधी करण को बढावा दिया वे ही अब इसपर अंकुश लगाने की मांग कर रहे हैं। विभिन्न दलों ने चुनाव आयोग के समक्ष राजनीति में अपराधी करण और चुनावों में धन के बढ़ते प्रभाव पर चिंता व्यक्त की। एक समय था जब राजनीतिक दलों ने अपने दरवाज़े खुले दिल से अपराधियों व धन कुबेरों के लिये खोल दिया। फिलहाल राजनीति के धार्मिकीकरण पर किसी ने कोई चिंता व्यक्त नहीं की लेकिन यह भी भविष्य में एक समस्या बन जा ये तो आश्चर्य नहीं करना चाहिये। पूर्व के वर्षो का इतिहास रहा है कि राजनीतिक दलों ने ही राजनीति में अपराधी प्रवृत्ति के लोगों को प्रश्रय दिया और धन कुबेरों को शामिल कर धन का खेल खेला लेकिन अब यही उनपर उलटा वार करने लगे। पिछले दो तीन दशक में राजनीति का जितना अपराधी करण हुआ तथा धनकुबेरों का वर्चस्व बना वह इससे पहले कभी नहीं हुआ। प्र्राय: सभी राजनीतिक दलों ने निर्वाचन आयोग से इन पर अंकुश लगाने के लिए प्रभावी कदम उठाने का आग्रह किया है। राजनीति का अपराधी करण, चुनावों में धन का बढ़ता प्रभाव और चुनाव के समय रकम लेकर रिपोर्ट प्रकाशित करने का मीडिया में चलन लोकतंत्र के लिए खतरा बनता जा रहा है। लिहाजा आयोग को इन प्रवृत्ति यों पर अंकुश लगाने के लिए असरदार कदम उठाने चाहिए। ईवीएम के सवाल पर भी नेताओं ने आयोग से बात की। कांग्रेस जहां चुनावों में इनके इस्तेमाल के पूरी तरह पक्ष में हैं जबकि ज्यादातर दलों का कहना है कि आयोग को ईवीएम की विश्वसनीयता को लेकर राजनीतिक हल कों में उठाए जा रहे सवालों का निराकरण करना चाहिए। चुनाव आयोग के समक्ष भाजपा ने प्रस्ताव रखा है कि अगर किसी व्यक्ति के खिलाफ हत्या, अपहरण, आतंकवाद से जुड़ी मादक पदार्थों की तस्करी और बलात्कार जैसे संगीन मामलों में अदालत में अभियोग तय किए जा चुके हैं तो उसे चुनाव लड़ने का अधिकार नहीं होना चाहिए । यह भी बात सामने आई कि अगर उम्मीदवारों का चुनाव खर्च सरकार वहन करे और लोकसभा तथा विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाएं- इससे चुनावों में धन का प्रभाव घटाने में मदद मिलेगी। शायद यह सुझाव सर्वाधिक महत्वपूर्ण है लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होना चाहिये। धन लेकर रिपोर्ट प्रकाशित करने के मीडिया में चलन को चताजनक बताया गया है। यह तो सीधा सीधा भ्रष्टाचार है। आयोग को पेड़ न्यूज़ को परिभाषित करने और इस प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने के उपाय सुझाने के लिए विशेषज्ञ समिति का गठन करना चाहिए जिसमें न्यायपालिका, राजनीतिक दलों और मीडिया के प्रतिनिधियों को शामिल कि या जा सकता हैं। बाम दलों का मानना है कि राजनीति के अपराधीकरण को रोकने के लिए पर्याप्त कानूनी प्रावधान पहले से मौजूद हैं। जरूरत सिर्फ इस बात की है कि इन कानूनों को ईमानदारी और असरदार ढंग से लागू किया जाए।
चुभने लगा अपराधी करण!
चुनाव आयोग द्वारा बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में राजनीतिक दलों ने राजनीति में अपराधी करण पर अंकुश लगाने की मांग की हैं। इस मांग पर विस्मय इस बात को लेकर है कि जिन पार्टियों ने पहले राजनीति का अपराधी करण को बढावा दिया वे ही अब इसपर अंकुश लगाने की मांग कर रहे हैं। विभिन्न दलों ने चुनाव आयोग के समक्ष राजनीति में अपराधी करण और चुनावों में धन के बढ़ते प्रभाव पर चिंता व्यक्त की। एक समय था जब राजनीतिक दलों ने अपने दरवाज़े खुले दिल से अपराधियों व धन कुबेरों के लिये खोल दिया। फिलहाल राजनीति के धार्मिकीकरण पर किसी ने कोई चिंता व्यक्त नहीं की लेकिन यह भी भविष्य में एक समस्या बन जा ये तो आश्चर्य नहीं करना चाहिये। पूर्व के वर्षो का इतिहास रहा है कि राजनीतिक दलों ने ही राजनीति में अपराधी प्रवृत्ति के लोगों को प्रश्रय दिया और धन कुबेरों को शामिल कर धन का खेल खेला लेकिन अब यही उनपर उलटा वार करने लगे। पिछले दो तीन दशक में राजनीति का जितना अपराधी करण हुआ तथा धनकुबेरों का वर्चस्व बना वह इससे पहले कभी नहीं हुआ। प्र्राय: सभी राजनीतिक दलों ने निर्वाचन आयोग से इन पर अंकुश लगाने के लिए प्रभावी कदम उठाने का आग्रह किया है। राजनीति का अपराधी करण, चुनावों में धन का बढ़ता प्रभाव और चुनाव के समय रकम लेकर रिपोर्ट प्रकाशित करने का मीडिया में चलन लोकतंत्र के लिए खतरा बनता जा रहा है। लिहाजा आयोग को इन प्रवृत्ति यों पर अंकुश लगाने के लिए असरदार कदम उठाने चाहिए। ईवीएम के सवाल पर भी नेताओं ने आयोग से बात की। कांग्रेस जहां चुनावों में इनके इस्तेमाल के पूरी तरह पक्ष में हैं जबकि ज्यादातर दलों का कहना है कि आयोग को ईवीएम की विश्वसनीयता को लेकर राजनीतिक हल कों में उठाए जा रहे सवालों का निराकरण करना चाहिए। चुनाव आयोग के समक्ष भाजपा ने प्रस्ताव रखा है कि अगर किसी व्यक्ति के खिलाफ हत्या, अपहरण, आतंकवाद से जुड़ी मादक पदार्थों की तस्करी और बलात्कार जैसे संगीन मामलों में अदालत में अभियोग तय किए जा चुके हैं तो उसे चुनाव लड़ने का अधिकार नहीं होना चाहिए । यह भी बात सामने आई कि अगर उम्मीदवारों का चुनाव खर्च सरकार वहन करे और लोकसभा तथा विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाएं- इससे चुनावों में धन का प्रभाव घटाने में मदद मिलेगी। शायद यह सुझाव सर्वाधिक महत्वपूर्ण है लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होना चाहिये। धन लेकर रिपोर्ट प्रकाशित करने के मीडिया में चलन को चताजनक बताया गया है। यह तो सीधा सीधा भ्रष्टाचार है। आयोग को पेड़ न्यूज़ को परिभाषित करने और इस प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने के उपाय सुझाने के लिए विशेषज्ञ समिति का गठन करना चाहिए जिसमें न्यायपालिका, राजनीतिक दलों और मीडिया के प्रतिनिधियों को शामिल कि या जा सकता हैं। बाम दलों का मानना है कि राजनीति के अपराधीकरण को रोकने के लिए पर्याप्त कानूनी प्रावधान पहले से मौजूद हैं। जरूरत सिर्फ इस बात की है कि इन कानूनों को ईमानदारी और असरदार ढंग से लागू किया जाए।
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